अगर तृतीय भाव बलवान हो, तृतीय भाव में कोई ग्रह बली होकर स्थित हो, तृतीयेश स्वराशि या उच्च राशि में हो तो जातक सफल लेखक होता हैं।
किसी जातक के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु ज्योतिष शास्त्र में जन्मांग का अध्ययन कर बताया जा सकता हैं कि जातक का सम्पूर्ण जीवन कैसा रहेगा। जन्मांग के बारह भाव भित्र भित्र कारकों हेतु निर्धारित हैं। इन कारको एवं उसके स्वामी ग्रह की स्थिति ही उस कारक के बारे में सफल फलादेश देने में समर्थ हैं। जन्मांग के तृतीय भाव से किसी जातक की लेखनी शक्ति के बारे में जाना जा सकता है। बुध को क्षण प्रतिक्षण मानव मस्तिष्क में आने वाले विचारों को सुव्यवस्थित रूप से अभिव्यक्ति का कारक ग्रह माना जाता है तो शुक्र को आर्थिक क्षमता का। जन्मांग में पंचम भाव से जातक की बो़द्धिक एंव तार्किक शक्ति, किसी विषय वस्तु को समझने की शक्ति, ज्ञान व विवेक का विचार किया जाता है। इस प्रकार जन्मांग के तृतीय भाव, तृतीयेश, पंचम भाव, पंचमेश, बुध व शुक्र की स्थिति के आधार पर जातक की लेखनी शक्ति के बारे में जाना जाता हैं किसी भी प्रकार के लेखन हेतु स्मरण शक्ति एंव लेखन अभिव्यक्ति के साथ उसकी मानसिक एकाग्रता एंव उसे आत्मसात करने की क्षमता भी आवश्यक है। इसलिए जन्मांग का चतुर्थ भाव भी महत्वपूर्ण है। चतुर्थ भाव हृदय का कारक भाव भी माना जाता है। इसलिए कोई जातक किस विषय में लेखन पूर्णतया लगन से कर पायेगा। इसके लिये चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का अध्ययन भी आवश्यक है। चतुर्थ भाव जातक मे किस विषय का लेखन आन्तरिक मनोभावों से प्रेरित होगा। यदि चतुर्थ भाव पर क्रुर ग्रहों का प्रभाव अधिक बन रहा हो तो जातक क्रांतिकारी विचार अर्थात हिंसात्मक एवं प्रतिक्रियात्मक लेखन में पुर्ण रूचि रखता हैं। लेकिन शुभ प्रभाव होने पर शांतिपूर्ण जीवन को ईश्वर का वरदान मानकर उसके अनुसार चलने की हिमायत का पक्षधर लेखन करता है। उसके लेखन में शांति, सद्भाव, प्रेम, सुख दुःख को जीवन का अंग मानने का भाव रहता है। लेकिन विपरीत होने पर हमेंशा प्रतिक्रियात्मक विचारों का लेखन करने में रूचि रखता हैं। ईश्वर की बनाई सृष्टि में गलत हस्तक्षेप करने की विचार क्षमता रखता है। यह भी देखा गया है। कि वैज्ञानिक क्रियाकलापों, महत्वपूर्ण खोजों एवं उनके अनुसंधान पर शनि मंगल एवं राहु जैसे ग्रह लेखन क्षमता में निखार लाते है। इस प्रकार क लेखन के लिये अष्टम भाव एवं भावेश का अध्ययन भी आवश्यक होता है।
जन्मांग का तृतीय भाव बलवान हो, तृतीय भाव में कोई ग्रह बली होकर स्थित हो, तृतीय स्वराशि या उच्च राशि में हो तो जातक सफल लेखक होता है। तृतीय भाव एवं तृतीयेश पर शुभग्रहों का युति या अन्य प्रभाव हो तो जातक लेखक तो बन सकता है पर शुक्र का बलवान एवं शुभ स्थित होना ही उसे सफल लेखक की संज्ञा दे सकता है क्योंकि शुक्र की बलवान स्थिति ही उसे धन एवं मान-सम्मान की प्राप्ति करा सकती हैं। वर्तमान में वही लेखक सफल माना जाता है जिसकी कृतियां पाठक का पूर्णतया मनोंरजन एवं ज्ञान की प्राप्ति कराएं। साथ ही जनमानस में भी उस कृति को पढने की जागृत होती रहे। किसी कृति के जितने पाठक अधिक होंगे उसमें से जितने पाठक उस कृति से संतुष्ट होंगे एवं लेखक को भी कृति से अप्रत्याशित धन की प्राप्ति हो जाए वही सफल लेखक बन सकता है।जन्मांग में तृतीय भाव, तृतीयेश के साथ चतुर्थेश एवं पंचमेश की बली स्थिति भी आवश्यक है। चतुर्थेश एवं पंचमेश मे परस्पर योग हो दोनों षडबली होकर स्थिति हो, पंचमेश का लग्नेश से संबंध हो, लग्नेश पूर्णतया बली होकर शुभ भाव में स्थित हो तो सफलता का प्रतिशत बढ जाता है। किसी जातक के जीवन में लग्न एवं लग्नेश का बली होना उसकी आकर्षण क्षमता में वृद्धि करता है। लग्न-लग्नेश के बली होने एवं शुभ ग्रहों के युति प्रभाव में होने पर जातक का व्यक्तित्व निखरता है। उसके व्यक्तित्व में निखार ही उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सीढी दर सीढी सफलता की प्राप्ति कराता है। लग्न भाव तृतीय भाव से एकादश भी बनता है। एकादश भाव अर्थात उसके लेखन से कितना लाभ प्राप्त होगा उसके बारे में जानकारी देने का भाव है। इसलिए लग्न एवं लग्नेश का बली होना ही उसकी लेखन क्षमता की कसौटी का सशक्त माध्यम बनता है।इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम भाव व इसके स्वामी ग्रह जन्मांग में जितने बलवान होकर स्थित होंगे, उसी तारतम्य से जातक को लेखन अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान होगा। इसलिए सफल लेखक हेतु इन सभी कारक ग्रहों बलवान होना, शुभ स्थिति मे होंना, नीच एवं अस्त ग्रहों के प्रभाव में न होंना एवं उचित समय पर आना ही किसी जातक को सफल लेखक बनाने हेतु उत्तम अवसर प्रदान करता है। सफल लेखक बनने हेतु यदि आप भी प्रयत्नशील है तो अपने जन्मांग का विश्लेषण कर जाने कि कौनसा ग्रह प्रतिकुल परिणाम दे रहा है। उस ग्रह का वैदिक उपाय कर लेने पर उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं।
किसी जातक के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु ज्योतिष शास्त्र में जन्मांग का अध्ययन कर बताया जा सकता हैं कि जातक का सम्पूर्ण जीवन कैसा रहेगा। जन्मांग के बारह भाव भित्र भित्र कारकों हेतु निर्धारित हैं। इन कारको एवं उसके स्वामी ग्रह की स्थिति ही उस कारक के बारे में सफल फलादेश देने में समर्थ हैं। जन्मांग के तृतीय भाव से किसी जातक की लेखनी शक्ति के बारे में जाना जा सकता है। बुध को क्षण प्रतिक्षण मानव मस्तिष्क में आने वाले विचारों को सुव्यवस्थित रूप से अभिव्यक्ति का कारक ग्रह माना जाता है तो शुक्र को आर्थिक क्षमता का। जन्मांग में पंचम भाव से जातक की बो़द्धिक एंव तार्किक शक्ति, किसी विषय वस्तु को समझने की शक्ति, ज्ञान व विवेक का विचार किया जाता है। इस प्रकार जन्मांग के तृतीय भाव, तृतीयेश, पंचम भाव, पंचमेश, बुध व शुक्र की स्थिति के आधार पर जातक की लेखनी शक्ति के बारे में जाना जाता हैं किसी भी प्रकार के लेखन हेतु स्मरण शक्ति एंव लेखन अभिव्यक्ति के साथ उसकी मानसिक एकाग्रता एंव उसे आत्मसात करने की क्षमता भी आवश्यक है। इसलिए जन्मांग का चतुर्थ भाव भी महत्वपूर्ण है। चतुर्थ भाव हृदय का कारक भाव भी माना जाता है। इसलिए कोई जातक किस विषय में लेखन पूर्णतया लगन से कर पायेगा। इसके लिये चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का अध्ययन भी आवश्यक है। चतुर्थ भाव जातक मे किस विषय का लेखन आन्तरिक मनोभावों से प्रेरित होगा। यदि चतुर्थ भाव पर क्रुर ग्रहों का प्रभाव अधिक बन रहा हो तो जातक क्रांतिकारी विचार अर्थात हिंसात्मक एवं प्रतिक्रियात्मक लेखन में पुर्ण रूचि रखता हैं। लेकिन शुभ प्रभाव होने पर शांतिपूर्ण जीवन को ईश्वर का वरदान मानकर उसके अनुसार चलने की हिमायत का पक्षधर लेखन करता है। उसके लेखन में शांति, सद्भाव, प्रेम, सुख दुःख को जीवन का अंग मानने का भाव रहता है। लेकिन विपरीत होने पर हमेंशा प्रतिक्रियात्मक विचारों का लेखन करने में रूचि रखता हैं। ईश्वर की बनाई सृष्टि में गलत हस्तक्षेप करने की विचार क्षमता रखता है। यह भी देखा गया है। कि वैज्ञानिक क्रियाकलापों, महत्वपूर्ण खोजों एवं उनके अनुसंधान पर शनि मंगल एवं राहु जैसे ग्रह लेखन क्षमता में निखार लाते है। इस प्रकार क लेखन के लिये अष्टम भाव एवं भावेश का अध्ययन भी आवश्यक होता है।
जन्मांग का तृतीय भाव बलवान हो, तृतीय भाव में कोई ग्रह बली होकर स्थित हो, तृतीय स्वराशि या उच्च राशि में हो तो जातक सफल लेखक होता है। तृतीय भाव एवं तृतीयेश पर शुभग्रहों का युति या अन्य प्रभाव हो तो जातक लेखक तो बन सकता है पर शुक्र का बलवान एवं शुभ स्थित होना ही उसे सफल लेखक की संज्ञा दे सकता है क्योंकि शुक्र की बलवान स्थिति ही उसे धन एवं मान-सम्मान की प्राप्ति करा सकती हैं। वर्तमान में वही लेखक सफल माना जाता है जिसकी कृतियां पाठक का पूर्णतया मनोंरजन एवं ज्ञान की प्राप्ति कराएं। साथ ही जनमानस में भी उस कृति को पढने की जागृत होती रहे। किसी कृति के जितने पाठक अधिक होंगे उसमें से जितने पाठक उस कृति से संतुष्ट होंगे एवं लेखक को भी कृति से अप्रत्याशित धन की प्राप्ति हो जाए वही सफल लेखक बन सकता है।जन्मांग में तृतीय भाव, तृतीयेश के साथ चतुर्थेश एवं पंचमेश की बली स्थिति भी आवश्यक है। चतुर्थेश एवं पंचमेश मे परस्पर योग हो दोनों षडबली होकर स्थिति हो, पंचमेश का लग्नेश से संबंध हो, लग्नेश पूर्णतया बली होकर शुभ भाव में स्थित हो तो सफलता का प्रतिशत बढ जाता है। किसी जातक के जीवन में लग्न एवं लग्नेश का बली होना उसकी आकर्षण क्षमता में वृद्धि करता है। लग्न-लग्नेश के बली होने एवं शुभ ग्रहों के युति प्रभाव में होने पर जातक का व्यक्तित्व निखरता है। उसके व्यक्तित्व में निखार ही उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सीढी दर सीढी सफलता की प्राप्ति कराता है। लग्न भाव तृतीय भाव से एकादश भी बनता है। एकादश भाव अर्थात उसके लेखन से कितना लाभ प्राप्त होगा उसके बारे में जानकारी देने का भाव है। इसलिए लग्न एवं लग्नेश का बली होना ही उसकी लेखन क्षमता की कसौटी का सशक्त माध्यम बनता है।इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम भाव व इसके स्वामी ग्रह जन्मांग में जितने बलवान होकर स्थित होंगे, उसी तारतम्य से जातक को लेखन अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान होगा। इसलिए सफल लेखक हेतु इन सभी कारक ग्रहों बलवान होना, शुभ स्थिति मे होंना, नीच एवं अस्त ग्रहों के प्रभाव में न होंना एवं उचित समय पर आना ही किसी जातक को सफल लेखक बनाने हेतु उत्तम अवसर प्रदान करता है। सफल लेखक बनने हेतु यदि आप भी प्रयत्नशील है तो अपने जन्मांग का विश्लेषण कर जाने कि कौनसा ग्रह प्रतिकुल परिणाम दे रहा है। उस ग्रह का वैदिक उपाय कर लेने पर उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं।
No comments:
Post a Comment