पेट की मांसपेशियां कमजोर हो जाने वाली जगह से आंतें बाहर निकल आने की समस्या हर्निया कहलाती है। इस स्थिति में हर्निया की जगह एक उभार हो जाता है। मनुष्य के शरीर के अंदर कुछ अंग खोखले स्थानों में मौजूद होते हैं। इन खोखले स्थानों को बॉडी केविटी कहते हैं। दरअसल बॉडी केविटी चमड़ी की झिल्ली से ढकी होती है। जब इन केविटी की झिल्लियां कभी-कभी फट जाती हैं तो अंग का कुछ भाग बाहर निकल जाता है। इस विकृति को ही हर्निया कहा जाता है।लंबे समय तक खांसी या भारी सामान उठाने के कारण मांसपेशियों के कमजोर हो जाने की वजह से हर्निया के होने की संभावना ज्यादा होती है। हालांकि हर्निया के कोई खास लक्षण नहीं होते, लेकिन कुछ लोग में सूजन और दर्द की शिकायद हो सकती है। इस प्रकार का दर्द खड़े होने, मांसपेशियों में खिंचाव होने या कुछ भारी सामान उठाने पर बढ़ सकता है। ज्योतिष के अनुसार काल पुरुष की कुंडली में आंत का संबंध षष्ठ भाव और कन्या राशि से है। कन्या राशि का स्वामी बुध होता है और षष्ठ भाव का कारक ग्रह मंगल होता है। इसलिए षष्ठ भाव, षष्ठेश, षष्ठकारक मंगल, बुध, लग्न-लग्नेश जब दुष्प्रभावों में रहते हैं, तो आंतों से संबंधित रोग होते हैं, जिनमें हर्निया रोग भी शामिल है। शरीर में हर्निया उदर के ऊपरी भाग से ले कर उदर के निचले भाग तक कहीं भी हो सकती है। काल पुरुष की कुंडली में पंचम और सप्तम भाव भी शामिल हैं। इसलिए इन भावों के स्वामी और कारक ग्रहों का निर्बल होना उदर में उस स्थान को दर्शाते हैं, जिस भाग में हर्निया होती है। हर्निया रोग आंत के उदर की दीवार के कोटर से बाहर निकलने से होता है, जिसे आंत का उतरना भी कहते हैं। उदर की दीवार की निर्बलता के कारण आंत अपने स्थान (कोटर) से बाहर निकल कर नीचे की तरफ उतर जाती है। ऐसा उपर्युक्त भाव, राशि एवं ग्रहों के दुष्प्रभाव और निर्बलता के कारण होता है। जब इन ग्रहों की दशा-अंर्तदशा रहती है और संबंधित ग्रह का गोचर विपरीत रहता है, तो हर्निया, अर्थात 'आंत का उतरना' रोग होता है।
मेष लग्न : मंगल षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट या युक्त हो, बुध, शुक्र सप्त भाव में हों और राहु से दृष्ट हों, सूर्य अष्टम भाव में रहे, तो हर्निया रोग नाभि के निचले भाग में होता है।
वृष लग्न : शुक्र अष्टम भाव में हो, गुरु षष्ठ भाव में केतु से युक्त हो, मंगल द्वादश भाव में हो, बुध सूर्य से अस्त हो कर पंचम भाव में हो, तो हर्निया के कारण उदर की शल्यचिकित्सा होती है।
मिथुन लग्न : बुध अष्टम भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट, गुरु षष्ठ भाव में अस्त, सूर्य सप्तम भाव में, मंगल एकादश, द्वादश या लग्न में स्थित हो, तो आंत उतरने का रोग होता है।
कर्क लग्न : बुध लग्न में, सूर्य द्वादश भाव में, चंद्र षष्ठ, या अष्टम भाव में केतु से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में शनि के प्रभाव में हो, तो आंत उतर कर अंड कोश में घुस जाने से यह रोग होता है।
सिंह लग्न : सूर्य लग्नेश पंचम भाव में हो, बुध षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट, या युक्त हो, शुक्र सप्तम भाव में केतु से युक्त हो, मंगल भी सप्तम भाव में शतभिषा नक्षत्र म ें हा,े ता े जातक की नाभि क े कछु नीचे हर्निया हो जाता है।
कन्या लग्न : लग्नेश और षष्ठेश दोनों सप्तम भाव में हों और मंगल एकादश भाव में, गुरु दशम, या षष्ठ भाव में, केतु षष्ठ भाव में हो, तो जातक को नाभि हर्निया होता है। नाभि के पास पेट फूला रहता है, जिसकी बाद में शल्यचिकित्सा करवानी पड़ती है।
तुला लग्न : लग्नेश सप्त भाव, या षष्ठ भाव में हो, मंगल लग्न में हो, गुरु षष्ठ भाव में बुध से युक्त हो, केतु सप्तम भाव (भरणी नक्षत्र) में हो, तो जातक को हर्निया रोग होता है, जिससे
जातक की मृत्यु भी हो सकती है।
वृश्चिक लग्न : लग्न का उदय अनुराधा नक्षत्र में हो, मंगल षष्ठ भाव में भरणी नक्षत्र में रहे और गुरु से युक्त हो, बुध लग्न में उदय रहे, शुक्र सूर्य से अस्त रहे, तो कई बार पेट में चोट लगने के कारण जातक के उदर की दीवारों में निर्बलता आ जाती है, जिससे जातक को हर्निया जैसे रोग का शिकार होना पड़ता है।
धनु लग्न : शुक्र सप्तम भाव में राहु या केतु से युक्त, या दृष्ट हो, बुध अष्टम में, शनि षष्ठ भाव में मंगल से युक्त हो, लग्नेश अष्ट भाव में सूर्य से अस्त हो, तो जातक वंक्षण हर्निया होने से तकलीफ पाता है।
मकर लग्न : गुरु लग्न में, बुध, केतु से युक्त षष्ठ भाव में, शनि अष्टम भाव में बाल अवस्था में सूर्य से अस्त हो, मंगल द्वादश भाव में हो, तो जातक को हर्निया होता है।
कुंभ लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में गुरु से युक्त हो, बुध सप्तम भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो, शुक्र अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो और लग्न पर मंगल की दृष्टि होने से हर्निया रोग होने की संभावना रहती है।
मीन लग्न : शनि और शुक्र षष्ठ भाव में युति बना रहे हों और राहु-केतु के दुष्प्रभाव में हों, मंगल द्वादश या लग्न भाव में हो, बुध-चंद्र पंचम भाव में होने से हर्निया रोग होता है।
मेष लग्न : मंगल षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट या युक्त हो, बुध, शुक्र सप्त भाव में हों और राहु से दृष्ट हों, सूर्य अष्टम भाव में रहे, तो हर्निया रोग नाभि के निचले भाग में होता है।
वृष लग्न : शुक्र अष्टम भाव में हो, गुरु षष्ठ भाव में केतु से युक्त हो, मंगल द्वादश भाव में हो, बुध सूर्य से अस्त हो कर पंचम भाव में हो, तो हर्निया के कारण उदर की शल्यचिकित्सा होती है।
मिथुन लग्न : बुध अष्टम भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट, गुरु षष्ठ भाव में अस्त, सूर्य सप्तम भाव में, मंगल एकादश, द्वादश या लग्न में स्थित हो, तो आंत उतरने का रोग होता है।
कर्क लग्न : बुध लग्न में, सूर्य द्वादश भाव में, चंद्र षष्ठ, या अष्टम भाव में केतु से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में शनि के प्रभाव में हो, तो आंत उतर कर अंड कोश में घुस जाने से यह रोग होता है।
सिंह लग्न : सूर्य लग्नेश पंचम भाव में हो, बुध षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट, या युक्त हो, शुक्र सप्तम भाव में केतु से युक्त हो, मंगल भी सप्तम भाव में शतभिषा नक्षत्र म ें हा,े ता े जातक की नाभि क े कछु नीचे हर्निया हो जाता है।
कन्या लग्न : लग्नेश और षष्ठेश दोनों सप्तम भाव में हों और मंगल एकादश भाव में, गुरु दशम, या षष्ठ भाव में, केतु षष्ठ भाव में हो, तो जातक को नाभि हर्निया होता है। नाभि के पास पेट फूला रहता है, जिसकी बाद में शल्यचिकित्सा करवानी पड़ती है।
तुला लग्न : लग्नेश सप्त भाव, या षष्ठ भाव में हो, मंगल लग्न में हो, गुरु षष्ठ भाव में बुध से युक्त हो, केतु सप्तम भाव (भरणी नक्षत्र) में हो, तो जातक को हर्निया रोग होता है, जिससे
जातक की मृत्यु भी हो सकती है।
वृश्चिक लग्न : लग्न का उदय अनुराधा नक्षत्र में हो, मंगल षष्ठ भाव में भरणी नक्षत्र में रहे और गुरु से युक्त हो, बुध लग्न में उदय रहे, शुक्र सूर्य से अस्त रहे, तो कई बार पेट में चोट लगने के कारण जातक के उदर की दीवारों में निर्बलता आ जाती है, जिससे जातक को हर्निया जैसे रोग का शिकार होना पड़ता है।
धनु लग्न : शुक्र सप्तम भाव में राहु या केतु से युक्त, या दृष्ट हो, बुध अष्टम में, शनि षष्ठ भाव में मंगल से युक्त हो, लग्नेश अष्ट भाव में सूर्य से अस्त हो, तो जातक वंक्षण हर्निया होने से तकलीफ पाता है।
मकर लग्न : गुरु लग्न में, बुध, केतु से युक्त षष्ठ भाव में, शनि अष्टम भाव में बाल अवस्था में सूर्य से अस्त हो, मंगल द्वादश भाव में हो, तो जातक को हर्निया होता है।
कुंभ लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में गुरु से युक्त हो, बुध सप्तम भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो, शुक्र अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो और लग्न पर मंगल की दृष्टि होने से हर्निया रोग होने की संभावना रहती है।
मीन लग्न : शनि और शुक्र षष्ठ भाव में युति बना रहे हों और राहु-केतु के दुष्प्रभाव में हों, मंगल द्वादश या लग्न भाव में हो, बुध-चंद्र पंचम भाव में होने से हर्निया रोग होता है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
No comments:
Post a Comment