Saturday, 24 October 2015

वृद्धि श्राद्ध से पायें समृद्धि

हिन्दूधर्म की मान्यता अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को आर्शीवाद लेना प्रमुख कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही आज यह सुखी जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। वेदों में वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है इसीलिए आवश्यक है -श्राद्ध और साथ ही जीवन में किसी प्रकार के वृद्धिकार्य जैसेे विवाहादि संस्कार, पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश इत्यादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है, जिससे जीवन में जो समृद्धि प्राप्त होती है वह चिरस्थायी बनी रहे और निरंतर वृद्धि प्राप्त होती रहे इस हेतु वृद्धि श्राद्ध किये जाने का विधान है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

No comments: