यदि शनि की महादशा में शनि की अंतदंशा हो तो यह अशुभ परिणाम देने वाली मानी जाती है । इसके कारण धनहानि, पदावनति, राजदंड एवं अपयश आदि की संभावना रहती है । स्वास्थ्य खराब, घर में कलह, पत्नी से अनबन तथा प्रियजन आदि का वियोग संभव है । किन्तु उच्च या स्वगृही शनि होने पर मुकदमे र्म विजय, सम्मान-प्राप्ति तथा विदेश यात्रा के अवसर प्राप्त होते हैं । यदि शनि की महादशा में बुध की अंतर्दषा आ जाती है तो बहुत शुभ एवं सौभाग्यदायिनी समझी जाती है । उसके प्रभाव से धन- धान्य की वृद्धि, समाज में प्रतिष्ठा हैं जनता में सम्मान, स्वास्थ्य-लाभ तथा परिवारिक सुख को प्राप्ति होती है । बुध के नीचस्थ होने की स्थिति में अथवा अशुभ ग्रहों के मध्य में होने की स्थिति में उपयुक्त फल प्रतिकूल रहेगा । शनि की महादशा में केतु को अंतर्दशा अशुभ मानी जाती है। इसके प्रभाव से धन वाहन एवं सम्मान की हानि, पारिवारिक कलह, भाई से विरोध, स्त्री पक्ष तथा समाज में अप्रतिष्ठा और अपयश आदि मिलने की आशंका रहती है । यदि केतु अन्य ग्रहों के मध्य में हो या शुक्र अन्य ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो उपर्युक्त प्रभाव अनुकूल हो जाता है । शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा सामान्य फल देने वाली होती है । यदि ऐसा शनि उच्च का, स्वगृही अथवा मूलत्रिक्रोषास्थ हो तो शुभ फल प्रदान करता है । इसके प्रभाव से धन प्राप्ति के अवसर आते हैं और उच्च पद की प्राप्ति होती है । राजसम्मान, समाज में प्रतिष्ठा, व्यापार में उन्नति तथा घर में उल्लास का वातावरण बन जाता है । यदि शुक्र बारहवें घर में हो तो विदेश यात्रा का उत्साह होता है और पर्याप्त धन मिलता है । किंतु आठवें घर में स्थित शुक्र प्रतिकूल प्रभाव देने वाला हो जाता है, जो परेशानी का कारण बनता है । शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा का आना शुभ सूचक होता है । इसके प्रभाव से व्यापार विस्तार में सफलता मिलती है | यदि जातक नौकरी पर हो तो अच्छे वेतनमान पर उसकी पद-वृद्धि होती है । समाज में प्रतिष्ठा और सुयश आदि के साथ जनसंपर्क बढ़ने लगता है । किंतु अशुभ ग्रहों से दृष्ट सूर्य प्रतिकूल परिणाम देने वाला हो जाता है। यदि सूर्य षष्ठ या अष्टम भावस्थ हो तो जातक को उदर संबंधी कोई रोग हो सकता है ।शनि की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा अच्छी नहीं मानी जाती । इसके प्रभाव से शरीर में कोई रोग हो जाता है | यह रोग उदर से संबंधित हो सकता है । स्वास्थ्य की खराबी के साथ-साथ मानसिक विकार की उत्पत्ति भी संभव है । यदि चंद्रमा शुभ स्थान पर हो तो अनुकूल फल देने वाला होता है । शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा बहुत शुभ होती है । इससे व्यापार में उन्नति, अधिक लाभ, नौकरी में वेतन-वृद्धि, घर-वहान आदि की प्राप्ति, उद्योग आदि में उत्पादन-वृद्धि, मुकदमे में जीत तथा राज्य द्वारा लाभ होता है। किंतु अशुभ, नीच या वक्री मंगल बहुत हानिकारक होता है । उससे शारीरिक मानसिक पीडा होती है । शत्रु प्रबल होकर षडूयंत्र रचने लगते हैं 1
शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा अशुभ मानी गई है। इसके कारण स्वास्थ्य नष्ट होता है तथा व्यय अधिक बढ़ जाता है, इसलिए मानसिक आशांति उत्पन्न होती है । इससे व्यापार में हानि तथा नौकरी में अवनति भी संभव है । व्यर्थ यात्रा का प्रसंग भी आ जाता है । र्कितु राहु के शुभ स्थान पर होने अथवा शुभ ग्रह द्वारा देखे जाने की स्थिति में अनुकूल प्रभाव पड़ता है । उपरोक्त स्थिति धनागम में उत्पन्न बाधाएं दूर होती हैं और व्यय घट जाता है । शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा शुभ होती है । ऐसे में धन-संतान लाभ एवं विवाह या पुत्रोत्पत्ति आदि मंगल कार्य चलते रहते हैं । यदि गुरु स्वगृही या उच्च का हो तो अधिक शुभ होता है । उसके कारण समी कार्य पूर्ण होते । विवेक जाग्रत होकर धर्मकार्य, दानधर्म एवं तीर्थाटन आदि के अवसर प्राप्त होते है |किंतु अस्त, वक्री या पापग्रस्त गुरु प्रतिकूल प्रभाव वाला हो जाता है ।
शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा अशुभ मानी गई है। इसके कारण स्वास्थ्य नष्ट होता है तथा व्यय अधिक बढ़ जाता है, इसलिए मानसिक आशांति उत्पन्न होती है । इससे व्यापार में हानि तथा नौकरी में अवनति भी संभव है । व्यर्थ यात्रा का प्रसंग भी आ जाता है । र्कितु राहु के शुभ स्थान पर होने अथवा शुभ ग्रह द्वारा देखे जाने की स्थिति में अनुकूल प्रभाव पड़ता है । उपरोक्त स्थिति धनागम में उत्पन्न बाधाएं दूर होती हैं और व्यय घट जाता है । शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा शुभ होती है । ऐसे में धन-संतान लाभ एवं विवाह या पुत्रोत्पत्ति आदि मंगल कार्य चलते रहते हैं । यदि गुरु स्वगृही या उच्च का हो तो अधिक शुभ होता है । उसके कारण समी कार्य पूर्ण होते । विवेक जाग्रत होकर धर्मकार्य, दानधर्म एवं तीर्थाटन आदि के अवसर प्राप्त होते है |किंतु अस्त, वक्री या पापग्रस्त गुरु प्रतिकूल प्रभाव वाला हो जाता है ।
Pt.P.S.Tripathi
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