Wednesday, 4 May 2016

वर्ण कट गुण मिलान अंक :1



वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का अभ्युदय हुआ जिसके अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया। समाज में संतुलन एवं व्यवस्था सुनिष्चित करने के उद्देष्य से प्रत्येक वर्ण को एक खास प्रकार का उत्तरदायित्व सौंपा गया। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के शरीर के विभिन्न अंगों से चारों वर्णों की उत्पत्ति हुई है। इसी के कारण इन चारों वर्णों को भिन्न एवं असमान सामाजिक दर्जा प्रदान किया गया है। अवरोही क्रम में सामाजिक हैसियत एवं दर्जे के अनुसार ये वर्ण हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मणों की उनके कन्धे से क्षत्रियों की, जाँघों से वैश्यों की तथा चरणों से शूद्रों की, उत्पत्ति हुई है। चूँकि ब्राह्मणों की, उत्पत्ति शरीर के सबसे ऊपरी भाग मुख से हुई है अतः ब्राह्मणों को समाज में सर्वोच्च दर्जा प्रदान किया गया तथा इन्हें समाज को शिक्षा प्रदान करने तथा धार्मिक संस्कारों तथा कत्र्तव्यों के निष्पादन का उत्तरदायित्व सौंपा गया। सामाजिक सोपान की दूसरी श्रेणी में क्षत्रियों को रखा गया तथा उन्हें योद्धा तथा राजा के रूप में समाज की सुरक्षा का दायित्व मिला। सामाजिक सोपान की तीसरी श्रेणी में वैश्य थे जिन्हें समाज में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का दायित्व तथा शूद्रों की सहायता से कृषि कार्य सम्पन्न करवाने का जिम्मा सौंपा गया। सामाजिक सोपान में शूद्रों को सबसे निम्न स्थिति प्रदान की गयी तथा उन्हें अपने से ऊपर के तीनों वर्णों की सेवा दास तथा सेवक के रूप में करने का उत्तरदायित्व मिला। उन्हें मजदूर के रूप में खेतों में तथा दूसरे अन्य निम्न स्तर के कार्य करने पड़ते थे।
वर्ण व्यवस्था के ही अनुरूप ज्योतिष में भी सभी 12 राशियों को चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में विभाजित किया गया है। इस प्रकार भचक्र की तीन-तीन राशियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र हैं। इन्हें आगे दी गई सारणी में वर्गीकृत किया गया है:
ज्योतिष में किसी भी व्यक्ति के वर्ण का निर्धारण उसके चन्द्र राशि/जन्म राशि के आधार पर होता है। जिनकी जन्म राशि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन है, उनका वर्ण ब्राह्मण है। इसी प्रकार से दूसरे वर्णों का आकलन किया जाता है। वर्ण किसी व्यक्ति का व्यवहार एवं दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है। कुण्डली में जातक का ब्राह्मण वर्ण उसके सम्मानजनक व्यक्तित्व तथा दूसरों के साथ उसके साहचर्य को प्रदर्शित करता है। क्षत्रिय शक्ति एवं सत्ता, वैश्य स्वार्थपरता तथा शूद्र वर्ण व्यक्ति की निम्न एवं तुच्छ सोच को दर्शाता है। इस प्रकार से वर एवं कन्या के वर्ण का निर्धारण करने के पश्चात उनका गुण मिलान किया जाता है। वर्णकूट मिलान मे वर का वर्ण सदैव कन्या के वर्ण से उत्तम होना चाहिए। यदि वर का वर्ण कन्या के वर्ण से उत्तम होता है तो गुण मिलान में 1 अंक (गुण) प्रदान किया जाता है तथा इसे अति उत्तम मिलान की संज्ञा दी जाती है। वर एवं कन्या दोनों के वर्ण एक ही होने पर भी पूरा 1 अंक दिया जाता है तथा इसे भी वर्णकूट मिलान में अतिउत्तम मिलान माना जाता है।
जब कन्या का वर्ण वर से उत्तम होता है तो मिलान में 0 अंक दिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्ण भावी दम्पत्तियों के स्वभाव एवं व्यवहार को दर्शाता है। वर का स्वभाव एवं व्यवहार कन्या की तुलना में ज्यादा अच्छा तथा अधिक उत्तरदायी होना चाहिए। यदि वर का स्वभाव एवं व्यवहार अच्छा एवं उत्तरदायित्वपूर्ण होगा तो उसे कन्या पर नियंत्रण स्थापित करने में आसानी होगी जिससे कि कन्या के मन में बड़ों के प्रति आदर एवं सम्मान तथा छोटों के प्रति प्रेम की भावना विकसित हो सके।

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