वश्य का शाब्दिक अर्थ होता है नियंत्रण में रहना। कुंडली मिलान में संभावित दंपत्ति अर्थात् वर एवं कन्या की राशियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है तथा देखा जाता है कि किसकी राशि किसके नियंत्रण अथवा वश में है है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि वर एवं कन्या में से विवाहोपरान्त कौन अधिक वर्चस्वशाली रहेगा। सभी राशियों को निम्नलिखित पांच समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
1. चतुष्पाद (पशु) : पालतू पशु जो सिर्फ स्वयं के में सोचता है |
2. द्विपाद : समाज एवं दूसरों के बारे में भी सोचता है |
3 जलचर : हमेशा बेचैन एवं व्यग्र रहता है |
4 वनचर : एकान्त पसंद करता है परन्तु आवश्यक होने पर हिंसक भी हो जाता है
5 कीट: अपनी भावनाओं को छिपाकर रखता है तथा आवश्यक होने पर डंक भी मरता है |
संस्कृत भाषा में, वश्यम् का तात्पर्य है किसी का नियंत्रण अथवा वर्चस्व। विवाह के लिए कुंडली मिलान के समय इसकी जांच की जाती है। विवाह हेतु वश्य की जांच करने का उद्देश्य भविष्य में पति-पत्नी के बीच संभावित अंतर्विरोध एवं टकराव को रोकना है। यदि कन्या की जन्मराशि वर के जन्म राशि के नियंत्रण में हो तो दोनों के बीच उत्तम सामंजस्य होगा। यदि स्थिति इसके विपरीत होगी तो दोनों के बीच आपसी समझ एवं सौहार्द का अभाव होगा तथा इसकी परिणति दोनों के बीच प्रायः लड़ाई-झगड़े के रूप में होगी।
राशियों के वर्ग
चतुष्पाद : मेष,वृष,धनु का उत्त्रभार्ध भाग एवं मकर का पुरावर्ध चतुष्पाद राशियां कही जाती हैं। यद्यपि कि सिंह भी चतुष्पाद है किंतु इसे वनचर श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है।
द्विपद (मनुष्य)- मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्द्ध एवं कुंभ द्विपाद राशियां कही जाती हैं।
जलचर :कर्क, मीन एवं मकर का उत्तरार्द्ध जलचर राशियां कही जाती हैं।
वनचर (जंगली) : सिंह राशि
कीट : वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि
सिंह राशि
उपर्युक्त पांचों वश्यों को 4 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
वश्य
मित्र
शत्रु
भक्ष्य
वृश्चिक को छोड़कर शेष सभी राशियां सिंह राशि का वश्य है क्योंकि ये राशियां इसके नियंत्रण में रहती हैं।
वृश्चिक सिंह के नियंत्रण में नहीं रहता क्योंकि यह छिद्र के अंदर अथवा मान्द में रहता है। किंतु मनुष्य सिंह के ऊपर भी नियंत्रण स्थापित कर लेता है अथवा उसे पालतू बना लेता है। वश्य कूट मिलान में सिंह को छोड़कर सभी चतुष्पाद राशियों को मनुष्य के नियंत्रण में माना जाता है। प्रत्येक वश्य की अपनी तथा मित्र श्रेणी की राशियों के साथ मित्रता होती है तथा शत्रु व भक्ष्य श्रेणी के साथ शत्रुता होती है। वश्य कूट मिलान में यदि वत्रर की राशि का नियंत्रण कन्या की राशि पर होता है तो इसे अच्छा मिलान माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभ्यता के प्रारंभ से ही हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है। अतः अष्टकूट मिलान में भी वर का वर्चस्व दांपत्य जीवन के लिए उत्तम माना जाता है।
सबसे पहले कन्या एवं वर का वश्य निर्धारित किया जाता है, फिर सारणी में यह देखा जाता है कि दोनों किस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। मिलान की भिन्न श्रेणियों - वश्य, मित्र, शत्रु अथवा भक्ष्य के लिए इनके स्वभाव के अनुरुप गुण (अंक) निर्धारित किये गये हंै। यदि दोनों के बीच मित्रता है तो 2 अंक (गुण) प्रदान किये जाते हैं तथा यदि दोनों के बीच शत्रुता है तो 1 अंक (गुण) प्रदान किया जाता है। यदि एक वश्य तथा दूसरा भक्ष्य है तो 1 अंक (गुण) तथा यदि एक शत्रु तथा दूसरा भक्ष्य है तो 0 (शून्य) अंक (गुण) प्रदान किये जाते हैं।
1. चतुष्पाद (पशु) : पालतू पशु जो सिर्फ स्वयं के में सोचता है |
2. द्विपाद : समाज एवं दूसरों के बारे में भी सोचता है |
3 जलचर : हमेशा बेचैन एवं व्यग्र रहता है |
4 वनचर : एकान्त पसंद करता है परन्तु आवश्यक होने पर हिंसक भी हो जाता है
5 कीट: अपनी भावनाओं को छिपाकर रखता है तथा आवश्यक होने पर डंक भी मरता है |
संस्कृत भाषा में, वश्यम् का तात्पर्य है किसी का नियंत्रण अथवा वर्चस्व। विवाह के लिए कुंडली मिलान के समय इसकी जांच की जाती है। विवाह हेतु वश्य की जांच करने का उद्देश्य भविष्य में पति-पत्नी के बीच संभावित अंतर्विरोध एवं टकराव को रोकना है। यदि कन्या की जन्मराशि वर के जन्म राशि के नियंत्रण में हो तो दोनों के बीच उत्तम सामंजस्य होगा। यदि स्थिति इसके विपरीत होगी तो दोनों के बीच आपसी समझ एवं सौहार्द का अभाव होगा तथा इसकी परिणति दोनों के बीच प्रायः लड़ाई-झगड़े के रूप में होगी।
राशियों के वर्ग
चतुष्पाद : मेष,वृष,धनु का उत्त्रभार्ध भाग एवं मकर का पुरावर्ध चतुष्पाद राशियां कही जाती हैं। यद्यपि कि सिंह भी चतुष्पाद है किंतु इसे वनचर श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है।
द्विपद (मनुष्य)- मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्द्ध एवं कुंभ द्विपाद राशियां कही जाती हैं।
जलचर :कर्क, मीन एवं मकर का उत्तरार्द्ध जलचर राशियां कही जाती हैं।
वनचर (जंगली) : सिंह राशि
कीट : वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि
सिंह राशि
उपर्युक्त पांचों वश्यों को 4 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
वश्य
मित्र
शत्रु
भक्ष्य
वृश्चिक को छोड़कर शेष सभी राशियां सिंह राशि का वश्य है क्योंकि ये राशियां इसके नियंत्रण में रहती हैं।
वृश्चिक सिंह के नियंत्रण में नहीं रहता क्योंकि यह छिद्र के अंदर अथवा मान्द में रहता है। किंतु मनुष्य सिंह के ऊपर भी नियंत्रण स्थापित कर लेता है अथवा उसे पालतू बना लेता है। वश्य कूट मिलान में सिंह को छोड़कर सभी चतुष्पाद राशियों को मनुष्य के नियंत्रण में माना जाता है। प्रत्येक वश्य की अपनी तथा मित्र श्रेणी की राशियों के साथ मित्रता होती है तथा शत्रु व भक्ष्य श्रेणी के साथ शत्रुता होती है। वश्य कूट मिलान में यदि वत्रर की राशि का नियंत्रण कन्या की राशि पर होता है तो इसे अच्छा मिलान माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभ्यता के प्रारंभ से ही हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है। अतः अष्टकूट मिलान में भी वर का वर्चस्व दांपत्य जीवन के लिए उत्तम माना जाता है।
सबसे पहले कन्या एवं वर का वश्य निर्धारित किया जाता है, फिर सारणी में यह देखा जाता है कि दोनों किस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। मिलान की भिन्न श्रेणियों - वश्य, मित्र, शत्रु अथवा भक्ष्य के लिए इनके स्वभाव के अनुरुप गुण (अंक) निर्धारित किये गये हंै। यदि दोनों के बीच मित्रता है तो 2 अंक (गुण) प्रदान किये जाते हैं तथा यदि दोनों के बीच शत्रुता है तो 1 अंक (गुण) प्रदान किया जाता है। यदि एक वश्य तथा दूसरा भक्ष्य है तो 1 अंक (गुण) तथा यदि एक शत्रु तथा दूसरा भक्ष्य है तो 0 (शून्य) अंक (गुण) प्रदान किये जाते हैं।
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