विवाह हेतु वर अथवा कन्या के माता-पिता ज्योतिषी से परामर्श कर अपने पुत्र अथवा पुत्री के जीवनसाथी के चयन में उनकी सलाह माँगते हैं। ज्योतिषी को दैवज्ञ कहा जाता है तथा उनकी सलाह को बिना किसी झिझक एवं हिचक के स्वीकार कर लिया जाता है। अतः ज्योतिषी का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह अपने ज्ञान, अनुभव, बुद्धिमत्ता एवं अन्तज्र्ञान का उपयोग करके विवाह हेतु वर एवं कन्या की कुण्डलियों की जांच एवं परख सही तरीके से करके ही अपना निर्णय दे क्योंकि उसके निर्णय पर ही युगल के वैवाहिक जीवन का भविष्य निर्भर करता है। एक ज्योतिषी को ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होना चाहिए तथा ज्योतिष के सिद्धान्तों एवं नियमों के गहरे ज्ञान का उपयोग कर कुण्डली मिलान में उसे निपुणता हासिल होनी चाहिए। विवाहोपरान्त सुख, शान्ति, प्रेम, सौहार्द एवं समृद्धि के लिए ज्योतिषीय मापदंडों के अनुसार कुण्डली का मिलान किया जाना अति आवश्यक है। एक गलत निर्णय वर एवं वधू के साथ-साथ पूरे परिवार की तबाही एवं बर्बादी का कारण बन सकता है।
वैदिक काल में निम्नांकित आठ प्रकार के विवाह प्रचलन में थे:
ब्रहम विवाह
इस प्रकार के विवाह में कन्या के पिता वर को उसके पिता एवं सम्बन्धियों के साथ आमंत्रित करते थे तथा सब लोगों की उपस्थिति में वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह सम्पन्न किया जाता था। आज के समय माता-पिता द्वारा निर्धारित किए गए विवाह (अरेन्ज्ड मैरिज) इस श्रेणी में आते हैं।
दैव विवाह
इस प्रकार के विवाह में कन्या के पिता कन्या को उस पुजारी को दक्षिणास्वरूप भेंट में देते थे जो उनके लिए यज्ञ सम्पन्न कराता था।
आर्ष विवाह
इस प्रकार के विवाह में जब किसी लड़के की ईच्छा किसी कन्या से विवाह करने की हो जाती थी तो उसे कन्या के पिता को कुछ गायें एवं धन देना पड़ता था। गायों को यज्ञ सम्पन्न करवाने के उद्देश्य से दिया जाता था जबकि धन विवाह के खर्च में काम आता था। हालाँकि इसे वधू का मूल्य नहीं समझा जाता था।
प्रजापत्य विवाह
इस प्रकार के विवाह में, व्यक्ति जिसकी ईच्छा कन्या से विवाह करने की होती थी, उसे कन्या के पिता के समक्ष अपनी ईच्छा व्यक्त करनी पड़ती थी। कन्या के पिता के राजी होने पर उसे एक निश्चित समयावधि के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरान्त कन्या को सौंपा जाता था। इस विवाह का मुख्य उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति कर उनका पालन-पोषण करना था ताकि व्यक्ति प्रजापति ब्रह्मा के ऋण से स्वयं को मुक्त कर सके।
असुर विवाह
यह विवाह एक प्रकार से कन्या को खरीदने के अनुरूप था क्योंकि इसमें विवाह के ईच्छुक वर को कन्या के पिता को विवाह के बदले धन देना पड़ता था। इस प्रकार का विवाह सर्वदा निन्दनीय माना जाता रहा है।
गंधर्व विवाह
इस प्रकार के विवाह प्रथम दृष्ट्या प्रेम की भाँति था जिसमें वर एवं कन्या एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते थे तथा अपने सम्बन्ध को विवाह का रूप दे देते थे। इस विवाह को आधुनिक युग के प्रेम विवाह के अनुरूप माना जा सकता है जिसमें माता-पिता की सहमति की अधिक आवश्यकता नहीं है।
राक्षस विवाह
किसी लड़की का अपहरण करके बिना उसकी तथा माता-पिता की अनुमति तथा ईच्छा के जबर्दस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह की श्रेणी में आता है। इस प्रकार का विवाह अति निन्दनीय है।
पैशाच विवाह
किसी निर्दोष लड़की को विवाह के लिए लोभ, लालच देना या बहला-फुसलाकर अथवा अपहरण करके जबर्दस्ती विवाह कर लेना पैशाच विवाह कहलाता है तथा इसे सबसे घृणित श्रेणी के विवाह की संज्ञा दी जाती है। ऐसे विवाह में किसी भी प्रकार के धार्मिक संस्कारों का पालन नहीं किया जाता है।
कुंडली मिलन का उद्धेश्य
कुण्डली मिलान वर एवं कन्या के स्वभाव, मानसिक स्तर, वैवाहिक सुख, आनंद एवं दोनों की पसन्द-नापसन्द की जाँच करने के लिए किया जाता है। यदि दोनों के स्वभाव, मानसिक स्तर एवं पसन्द में समानता मिलती है तो दोनों के बीच अगाध प्रेम की स्थापना हो जाती है। यदि दोनों के स्वभाव एवं पसन्द में समानता का अभाव होता है तो दोनों के बीच लड़ाई, झगड़े, मन-मुटाव तथा घृणा अवश्यंभावी हो जाते हैं। अन्ततः दोनों का दाम्पत्य जीवन नारकीय बन जाता है तथा प्रायः अलगाव, तलाक, मुकदमा आदि इसकी परिणति होती है। वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के पूर्व कुछ आवश्यक बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जिससे कि वैवाहिक सम्बन्ध चिरस्थायी बने। ये आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं:
सामंजस्यपूर्ण स्वभाव
संभावित युगल के स्वभाव की समानता एवं अनुकूलता की जाँच करना अति आवश्यक है। जब तक दोनों के स्वभाव, व्यवहार, आदत एवं दृष्टिकोण में समानता नहीं होगी तब तक दोनों का साथ जीवन व्यतीत करना तथा बाल-बच्चों एवं परिवार के सदस्यों की देखभाल करना साथ ही सम्मिलित रूप से उनकी जिम्मेवारी का निर्वहन करना संभव नहीं हो सकता।
आर्थिक स्थिति
स्वभाव एवं दृष्टिकोण में समानता के अलावा जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक सुदृढ़ता है। चँूकि सभ्यता के प्रारंभ से ही हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है, अतः विवाह के पूर्व वर के आर्थिक स्थिति की जाँच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए क्योंकि कन्या को आर्थिक रूप से अपने पति के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ता है। हालाँकि आधुनिक काल में यह मान्यता कुछ हद तक बदली है क्योंकि आज पुरूष एवं स्त्री दोनों समान रूप से शिक्षित हैं तथा समान पद पर कार्यरत हैं। आज काफी मामलों में दोनों दम्पत्ति कार्यरत हैं तथा दोनों अच्छा कमा रहे हैं। इसके बावजूद भी हमारे समाज में हमेशा सिर्फ वर के आर्थिक स्थिति की जाँच-पड़ताल करने की ही परंपरा रही है। हालाँकि उन परिस्थितियों में जहाँ लड़का एवं लड़की दोनों कार्यरत हैं, वहाँ दोनों के आर्थिक सामथ्र्य की जाँच ज्योतिषीय रूप से की जानी चाहिए।
दाम्पत्य सुख
ईश्वर ने पुरूष एवं स्त्री के रूप में दो विपरीत लिंग के प्राणियों को इस धरा पर अपने जीवन का आनंद लेने, सन्तानोत्पत्ति करने तथा दूसरे सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों का एक-दूसरे के साथ मिलकर तथा एक-दूसरे का ध्यान रखते हुए निर्वहन करने के उद्देश्य से भेजा है। अतः विवाह का मुख्य उद्देश्य सुख एवं शान्तिपूर्वक दाम्पत्य सुख का आनंद उठाना है। अष्टकूट मिलान से विवाह के ईच्छुक वर एवं कन्या के बीच सामंजस्य के अनुपात एवं उसकी मात्रा का सटीक संकेत प्राप्त होता है। कुण्डली मिलान से स्पष्ट रूप से पता चल जाता है कि दोनों को विवाह सूत्र में आबद्ध हो जाना चाहिए अथवा दोनों को दूसरे विकल्प की तलाश करनी चाहिए।
स्वास्थ्य
विवाह के भविष्य को निर्धारित करने में स्वास्थ्य की अहम भूमिका है। जन्म कुण्डली से किसी भी व्यक्ति के वर्तमान अथवा भविष्य में स्वास्थ्य तथा उसके शारीरिक स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो जाती है। जबतक स्वास्थ्य पूरी तरह से ठीक अथवा अनुकूल न हो, दाम्पत्य जीवन का आनंद प्राप्त नहीं हो सकता है। अतः विवाह निश्चित करने के पूर्व कुण्डली मिलान करना आवश्यक है।
संतान
विवाह का प्रमुख उद्देश्य संतानोत्पत्ति कर उनका पालन-पोषण करना तथा उन्हें एक सभ्य नागरिक बनाना है। शास्त्रों मंे भी कहा गया है, कि जब तक संतान पैदा नहीं होना तबतक पितृ़ ऋण से मुक्ति नहीं मिलती। साथ ही इस सृष्टि की निरंतरता के लिए भी यह आवश्यक है। अतः भावी वर एवं कन्या की कुंडली का मिलान कर यह जांचना आवश्यक है कि दोनों में से किसी की कुंडली में कहीं संतान से संबंधित कोई दोष तो नहीं है।
सास-ससुर के साथ संबंध
विवाहोपरान्त वर एवं वधू का एक-दूसरे के माता-पिता के साथ सौहार्दपूर्ण एवं प्रेमपूर्ण सम्बन्ध आवश्यक है। कुण्डली मिलान का प्रयोजन वर एवं वधू का अपने सास-ससुर के साथ सम्बन्धों की जाँच करना भी है। दोनों में से किसी का भी सम्बन्ध यदि अपने सास-ससुर से मधुर नहीं है तो दाम्पत्य जीवन में तनाव एवं खटास उत्पन्न होना अवश्यंभावी है।
सगे-संबंधियों के साथ संबंध
विवाहोपरांत वर एवं वधू को सगे-संबंधियों के साथ भी सामंजस्य बिठाकर उनके यहां होने वाले कार्य-प्रयोजनों में भागीदारी, सुनिश्चित करनी पड़ती है। यही भारतीय संस्कृति की गरिमा एवं सामाजिक दस्तूर है। वर एवं कन्या की कुंडली में इस तत्व की भी परख करना आवश्यक है कि दोनों अपने ससुराल पक्ष के संबंधियों के साथ किस प्रकार एवं किस अनुपात में तालमेल बैठा पाएंगे।
सामाजिक उत्तरदायित्व
पति-पत्नी के रूप में बहुत सारे सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। इसी से पारिवारिक मर्यादा बढ़ती है तथा नाम, यश एवं सम्मान की प्राप्ति होती है। अतः वर एवं कन्या की कुंडली का मिलान कर इस बात की भी परख की जाती है कि दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर प्रेमपूर्वक सामाजिक परंमपराओं का निर्वाह कर पाएंगे अथवा नहीं।
वैदिक काल में निम्नांकित आठ प्रकार के विवाह प्रचलन में थे:
ब्रहम विवाह
इस प्रकार के विवाह में कन्या के पिता वर को उसके पिता एवं सम्बन्धियों के साथ आमंत्रित करते थे तथा सब लोगों की उपस्थिति में वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह सम्पन्न किया जाता था। आज के समय माता-पिता द्वारा निर्धारित किए गए विवाह (अरेन्ज्ड मैरिज) इस श्रेणी में आते हैं।
दैव विवाह
इस प्रकार के विवाह में कन्या के पिता कन्या को उस पुजारी को दक्षिणास्वरूप भेंट में देते थे जो उनके लिए यज्ञ सम्पन्न कराता था।
आर्ष विवाह
इस प्रकार के विवाह में जब किसी लड़के की ईच्छा किसी कन्या से विवाह करने की हो जाती थी तो उसे कन्या के पिता को कुछ गायें एवं धन देना पड़ता था। गायों को यज्ञ सम्पन्न करवाने के उद्देश्य से दिया जाता था जबकि धन विवाह के खर्च में काम आता था। हालाँकि इसे वधू का मूल्य नहीं समझा जाता था।
प्रजापत्य विवाह
इस प्रकार के विवाह में, व्यक्ति जिसकी ईच्छा कन्या से विवाह करने की होती थी, उसे कन्या के पिता के समक्ष अपनी ईच्छा व्यक्त करनी पड़ती थी। कन्या के पिता के राजी होने पर उसे एक निश्चित समयावधि के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरान्त कन्या को सौंपा जाता था। इस विवाह का मुख्य उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति कर उनका पालन-पोषण करना था ताकि व्यक्ति प्रजापति ब्रह्मा के ऋण से स्वयं को मुक्त कर सके।
असुर विवाह
यह विवाह एक प्रकार से कन्या को खरीदने के अनुरूप था क्योंकि इसमें विवाह के ईच्छुक वर को कन्या के पिता को विवाह के बदले धन देना पड़ता था। इस प्रकार का विवाह सर्वदा निन्दनीय माना जाता रहा है।
गंधर्व विवाह
इस प्रकार के विवाह प्रथम दृष्ट्या प्रेम की भाँति था जिसमें वर एवं कन्या एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते थे तथा अपने सम्बन्ध को विवाह का रूप दे देते थे। इस विवाह को आधुनिक युग के प्रेम विवाह के अनुरूप माना जा सकता है जिसमें माता-पिता की सहमति की अधिक आवश्यकता नहीं है।
राक्षस विवाह
किसी लड़की का अपहरण करके बिना उसकी तथा माता-पिता की अनुमति तथा ईच्छा के जबर्दस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह की श्रेणी में आता है। इस प्रकार का विवाह अति निन्दनीय है।
पैशाच विवाह
किसी निर्दोष लड़की को विवाह के लिए लोभ, लालच देना या बहला-फुसलाकर अथवा अपहरण करके जबर्दस्ती विवाह कर लेना पैशाच विवाह कहलाता है तथा इसे सबसे घृणित श्रेणी के विवाह की संज्ञा दी जाती है। ऐसे विवाह में किसी भी प्रकार के धार्मिक संस्कारों का पालन नहीं किया जाता है।
कुंडली मिलन का उद्धेश्य
कुण्डली मिलान वर एवं कन्या के स्वभाव, मानसिक स्तर, वैवाहिक सुख, आनंद एवं दोनों की पसन्द-नापसन्द की जाँच करने के लिए किया जाता है। यदि दोनों के स्वभाव, मानसिक स्तर एवं पसन्द में समानता मिलती है तो दोनों के बीच अगाध प्रेम की स्थापना हो जाती है। यदि दोनों के स्वभाव एवं पसन्द में समानता का अभाव होता है तो दोनों के बीच लड़ाई, झगड़े, मन-मुटाव तथा घृणा अवश्यंभावी हो जाते हैं। अन्ततः दोनों का दाम्पत्य जीवन नारकीय बन जाता है तथा प्रायः अलगाव, तलाक, मुकदमा आदि इसकी परिणति होती है। वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के पूर्व कुछ आवश्यक बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जिससे कि वैवाहिक सम्बन्ध चिरस्थायी बने। ये आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं:
सामंजस्यपूर्ण स्वभाव
संभावित युगल के स्वभाव की समानता एवं अनुकूलता की जाँच करना अति आवश्यक है। जब तक दोनों के स्वभाव, व्यवहार, आदत एवं दृष्टिकोण में समानता नहीं होगी तब तक दोनों का साथ जीवन व्यतीत करना तथा बाल-बच्चों एवं परिवार के सदस्यों की देखभाल करना साथ ही सम्मिलित रूप से उनकी जिम्मेवारी का निर्वहन करना संभव नहीं हो सकता।
आर्थिक स्थिति
स्वभाव एवं दृष्टिकोण में समानता के अलावा जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक सुदृढ़ता है। चँूकि सभ्यता के प्रारंभ से ही हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है, अतः विवाह के पूर्व वर के आर्थिक स्थिति की जाँच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए क्योंकि कन्या को आर्थिक रूप से अपने पति के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ता है। हालाँकि आधुनिक काल में यह मान्यता कुछ हद तक बदली है क्योंकि आज पुरूष एवं स्त्री दोनों समान रूप से शिक्षित हैं तथा समान पद पर कार्यरत हैं। आज काफी मामलों में दोनों दम्पत्ति कार्यरत हैं तथा दोनों अच्छा कमा रहे हैं। इसके बावजूद भी हमारे समाज में हमेशा सिर्फ वर के आर्थिक स्थिति की जाँच-पड़ताल करने की ही परंपरा रही है। हालाँकि उन परिस्थितियों में जहाँ लड़का एवं लड़की दोनों कार्यरत हैं, वहाँ दोनों के आर्थिक सामथ्र्य की जाँच ज्योतिषीय रूप से की जानी चाहिए।
दाम्पत्य सुख
ईश्वर ने पुरूष एवं स्त्री के रूप में दो विपरीत लिंग के प्राणियों को इस धरा पर अपने जीवन का आनंद लेने, सन्तानोत्पत्ति करने तथा दूसरे सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों का एक-दूसरे के साथ मिलकर तथा एक-दूसरे का ध्यान रखते हुए निर्वहन करने के उद्देश्य से भेजा है। अतः विवाह का मुख्य उद्देश्य सुख एवं शान्तिपूर्वक दाम्पत्य सुख का आनंद उठाना है। अष्टकूट मिलान से विवाह के ईच्छुक वर एवं कन्या के बीच सामंजस्य के अनुपात एवं उसकी मात्रा का सटीक संकेत प्राप्त होता है। कुण्डली मिलान से स्पष्ट रूप से पता चल जाता है कि दोनों को विवाह सूत्र में आबद्ध हो जाना चाहिए अथवा दोनों को दूसरे विकल्प की तलाश करनी चाहिए।
स्वास्थ्य
विवाह के भविष्य को निर्धारित करने में स्वास्थ्य की अहम भूमिका है। जन्म कुण्डली से किसी भी व्यक्ति के वर्तमान अथवा भविष्य में स्वास्थ्य तथा उसके शारीरिक स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो जाती है। जबतक स्वास्थ्य पूरी तरह से ठीक अथवा अनुकूल न हो, दाम्पत्य जीवन का आनंद प्राप्त नहीं हो सकता है। अतः विवाह निश्चित करने के पूर्व कुण्डली मिलान करना आवश्यक है।
संतान
विवाह का प्रमुख उद्देश्य संतानोत्पत्ति कर उनका पालन-पोषण करना तथा उन्हें एक सभ्य नागरिक बनाना है। शास्त्रों मंे भी कहा गया है, कि जब तक संतान पैदा नहीं होना तबतक पितृ़ ऋण से मुक्ति नहीं मिलती। साथ ही इस सृष्टि की निरंतरता के लिए भी यह आवश्यक है। अतः भावी वर एवं कन्या की कुंडली का मिलान कर यह जांचना आवश्यक है कि दोनों में से किसी की कुंडली में कहीं संतान से संबंधित कोई दोष तो नहीं है।
सास-ससुर के साथ संबंध
विवाहोपरान्त वर एवं वधू का एक-दूसरे के माता-पिता के साथ सौहार्दपूर्ण एवं प्रेमपूर्ण सम्बन्ध आवश्यक है। कुण्डली मिलान का प्रयोजन वर एवं वधू का अपने सास-ससुर के साथ सम्बन्धों की जाँच करना भी है। दोनों में से किसी का भी सम्बन्ध यदि अपने सास-ससुर से मधुर नहीं है तो दाम्पत्य जीवन में तनाव एवं खटास उत्पन्न होना अवश्यंभावी है।
सगे-संबंधियों के साथ संबंध
विवाहोपरांत वर एवं वधू को सगे-संबंधियों के साथ भी सामंजस्य बिठाकर उनके यहां होने वाले कार्य-प्रयोजनों में भागीदारी, सुनिश्चित करनी पड़ती है। यही भारतीय संस्कृति की गरिमा एवं सामाजिक दस्तूर है। वर एवं कन्या की कुंडली में इस तत्व की भी परख करना आवश्यक है कि दोनों अपने ससुराल पक्ष के संबंधियों के साथ किस प्रकार एवं किस अनुपात में तालमेल बैठा पाएंगे।
सामाजिक उत्तरदायित्व
पति-पत्नी के रूप में बहुत सारे सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। इसी से पारिवारिक मर्यादा बढ़ती है तथा नाम, यश एवं सम्मान की प्राप्ति होती है। अतः वर एवं कन्या की कुंडली का मिलान कर इस बात की भी परख की जाती है कि दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर प्रेमपूर्वक सामाजिक परंमपराओं का निर्वाह कर पाएंगे अथवा नहीं।
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