Wednesday, 4 May 2016

कुंडली मिलान के निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे

क्या सिर्फ अष्टकूट मिलान में 18 से अधिक गुण मिलने के आधार पर ही विवाह को सहमति प्रदान कर दिया जाय अथवा मंगल दोष पर विचार करने के साथ-साथ अन्य बिन्दुओं पर भी ध्यान दिया जाय। सर्वमान्य तथ्य यह है कि यदि अष्टकूट मिलान में 18 से कम गुण भी मिल रहे हैं किन्तु दूसरे अन्य महत्वपूर्ण घटक दोनों के बीच सामंजस्य एवं विचारों की साम्यता प्रदर्शित कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति में यदि 15 गुण भी मिल रहे हों तो विवाह काफी सामंजस्यपूर्ण, उत्तम तथा टिकाऊ हो सकता है। हम यहां मुख्य रूप से इसी बात पर चर्चा करेंगे कि अन्तिम निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए किन-किन उपादानों को प्राथमिकता दी जाए तथा कितने गुण होने पर विवाह को सहमति प्रदान की जाए अथवा यदि अष्टकूट में 18 या कम गुण मिलें तो और किन बिन्दुओं पर अनुरूपता होने पर विवाह को उपयुक्त मानकर सहमति प्रदान की जाए।
अष्टकूट मिलान में गण, भकूट एवं नाड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू हैं तथा सम्मिलित रूप से इनके 21 अंक हैं। यदि वर एवं कन्या के मिलान में इन तीनों में साम्यता न हो तो उनके गुण 15 अथवा उससे कम होंगे।
ज्योतिर्विदों का मानना है कि 18 से कम गुण मिलने पर विवाह को स्वीकृति नहीं प्रदान करनी चाहिए। किन्तु अनुभव में ऐसा देखा गया है कि यदि 15 गुण भी मिल रहे हैं और निम्नांकित साम्यता यदि वर एवं कन्या की कुण्डलियों में है तो विवाह काफी सफल एवं भाग्यशाली साबित हुआ है:
वर एवं कन्या दोनों का लग्न एक अथवा एक ही समूह के
यदि वर एवं कन्या दोनों का लग्न एक ही हो तो उनके विचार, आचार, व्यवहार में साम्यता देखने को मिलती है। दोनों के बीच सामंजस्य, प्रेम तथा आपसी समझ होती है तथा दोनों तालमेल के साथ पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं। अतः ऐसी स्थिति में यदि 15 से कम गुण भी मिले तो विवाह स्वीकृति योग्य मानी जाती है। इसी प्रकार यदि वर एवं कन्या दोनों के लग्न एक ही समूह का प्रतिनिधित्व करते हों तो यह भी काफी अनुकूल स्थिति मानी जाती है। 12 राशियों को दो समूहों में विभाजित किया गया है। एक समूह के अंतर्गत आने वाली सभी राशियों के स्वामी परस्पर मित्र होते हैं तथा उनके गुण/स्वभाव एक समान होते हैं। ये दो समूह इस प्रकार हैं।
1. मेष, कर्क, सिंह वृश्चिक, धनु, मीन |
2.वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर एवं कुम्भ |
यदि वर एवं कन्या दोनों के लग्न एक ही समूह के अंतर्गत होंगे तो उनके स्वामी आपस में मित्र होंगे और इस तरह दोनों के स्वभाव, विचार, गुण तथा पसंद/नापसंद में एकरूपता होगी तथा दोनों की प्रवृत्ति एक-दूसरे के साथ समंजन करके सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की एवं मित्रवत होगी।
अतः इस स्थिति में भी 15 गुण मिलने पर भी विवाह स्वीकृति योग्य है तथा ऐसे विवाह की सफलता का प्रतिशत काफी अधिक है।
दशाओं का क्रम अनुकूल
सभी लोगों की कुंडलियों में अच्छे एवं बुरे दोनों तरह के ग्रहों का प्रभाव होता है किंतु जीवन में सफलता/असफलता दशाओं के क्रम पर निर्भर करता है। यदि सही समय पर अच्छी दशा प्रारंभ हो गई तथा आगे आने वाली दशाएं भी यदि अनुकूल हैं तो व्यक्ति को गगनचुम्बी ऊंचाई प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। अतः कुंडली मिलान में यदि वर/कन्या की वर्तमान दशा अनुकूल हो तथा अगामी दशाएं उत्तम हों तो 15 गुण मिलने पर भी विवाह स्वीकृति योग्य है तथा ऐसे विवाह के सफल होने की अत्यधिक संभावना है।
वर एवं कन्या की राशि एक अथवा राशी स्वामी परस्पर मित्र
वर एवं कन्या की राशियां यदि एक ही हों अथवा दोनों के राशि स्वामी परस्पर मित्र हों तो ऐसी स्थिति में भकूट दोष को नहीं मानना चाहिए तथा इसके पूरे 7 अंक गुण मिलान में जोड़कर विचार करना चाहिए।
नाड़ि दोष का शमन
कुंडली मिलान में यदि वर एवं कन्या को नाड़ी दोष लग रहे हों तो उनकी कुंडली के पंचम भाव की जांच करनी चाहिए। यदि पंचम भाव एवं भावेश की स्थिति बहुत अच्छी हो तो नाड़ी दोेष नहीं मानकर इसके पूरे 8 अंक कुंडली मिलान के कुल अंकों में जोड़ने के उपरांत विचार करके निर्णय लेना चाहिए।
दोनों की कुंडली में दीर्घायु एवं अच्छे योग
यदि दोनों की कुण्डलियों में दीर्घ आयु हों तथा उत्तम योगों जैसे राजयोग, गजकेसरी योग, महाभाग्य योग तथा पंचमहापुरुष योगों आदि का निर्माण हो रहा हो साथ ही वर्तमान तथा आगामी दशाएं अति अनुकूल हों तो ऐसी स्थिति में भी विवाह 15 गुण मिलने पर भी स्वीकृति योग्य है तथा ऐसे विवाह के भी सफल होने की पूर्ण सम्भावना है।
उपर्युक्त स्थितियों को भी दृष्टिगत रखकर ही अन्तिम निर्णय लेना चाहिए। यदि वर एवं कन्या के अष्टकूट मिलान में 15 गुण मिल रहे हों किन्तु उपर्युक्त में से कोई एक स्थिति बन रही हो तो निःसंदेह विवाह को स्वीकृति प्रदान कर देनी चाहिए। किन्तु अष्टकूट मिलान में 15 से कम गुण मिलने की स्थिति में कदापि विवाह स्वीकृति योग्य नहीं है। इसी प्रकार यदि मंगल दोष का उचित परिहार नहीं हो रहा हो तो विवाह की स्वीकृति नहीं प्रदान करनी चाहिए क्योंकि ऐसा विवाह दुर्भाग्यशाली साबित हो सकता है।
स्वभाव
दो विपरीत लिंग के वर एवं कन्या को एक दम्पत्ति के रूप में साथ जीवन जीने के लिए स्वभाव में समरूपता जरूरी है।
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सच ही कहा गया है -Health is the actual wealth सुखी दाम्पत्य जीवन का भी आधार उत्तम स्वास्थ्य ही है।
संतान
विवाह का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य संतानोत्पत्ति करना है ताकि सृष्टि की निरंतरता बनी रहे तथा व्यक्ति का कुल (वंश) भी चलता रहे। शास्त्रों में भी कहा गया है कि पितृऋण से मुक्ति हेतु संतानोत्पत्ति आवश्यक है।
धन
सुखी जीवन जीने के लए धन आवश्यक है। किंतु ईश्वर सभी को अलग परिमाण एवं मात्रा में धन कमाने एवं संचय का अवसर प्रदान करते हैं। अतः वर/कन्या की कुंडली से इस बात का पता लगाना भी आवश्यक है कि भविष्य में आर्थिक रूप से इनकी स्थिति किस प्रकार की होगी।
संबंध
विवाह के लिए इस बात की जांच करना भी आवश्यक है कि वर/कन्या का विवाहोपरांत अपने सास-ससुर तथा ससुराल पक्ष के संबंधियों के साथ कैसा संबंध होगा। यह भी सुखी दाम्पत्य जीवन का आधारभूत तत्व है। यदि विवहोपरांत सास-ससुर तथा संबंधियों के साथ सामंजस्य नहीं होगा तथा संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं होंगे तो पति-पत्नी के बीच तनाव एवं झगड़े अवश्यंभावी हैं।

No comments: