जिस प्रकार एकादषी तिथि को विष्णु भगवान तथा त्रयोदषी तिथि को षिवजी की तिथियाॅ मानी जाती हैं उसी प्रकार से कृष्णपक्ष की चतुर्थी को विध्नविनाषक गणेष भगवान की विषिष्ट तिथि होती है। एक बार की बात है कि पावर्ती पुत्र माता पावर्ती के स्नानगार के बाहर पहरा दे रहे थे और तभी भगवान षिव वहाॅ पहुॅचे। पावर्ती पुत्र ने उन्हें रोका, तब षिव क्रोधित होकर उनका सिर काट देते हैं। पावर्ती जी को ज्ञात होने पर अत्यंत क्रोध आता है और वे भगवान षिव से जिद्द करती हैं कि मेरे पुत्र को जीवित करों। भगवान षिव एक हाथी का सिर काट कर के पावर्ती पुत्र के गले में जोड़ देते हैं और भगवान षिव पावर्ती जी की प्रसन्नता के लिए गणेष को प्रथम पूज्य होने का आर्षीवाद देते हैं। यहीं से भगवान गणेष विध्नविनाषक के नाम से प्रतिष्ठित होते हैं। और उन्हें गणाध्यक्ष बनाया जाता है। भाद्रपद मास की चतुर्थी को भगवान गणेष के संकटहरन के रूप में पूजन का विधान है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख तथा सौभाग्य का विध्न समाप्त होता है साथ ही रोग या हानि से संबंधित कष्ट दूर होता है। इस व्रत में मंगलवार की रात्रि को जब आकाष में तारे दिखाई दे तो चंद्रदेव को अध्र्य देते हुए व्रत का प्रारंभ करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान और देव, पितृ तर्पण के बाद गणपति का पूजन शास्त्रोक्त विधान से करना चाहिए। गणेष भगवान को दूर्वा, दही, गुड़ और चावल का भोग लगा जाता है, उसके उपरांत अपामार्ग की एक सौ अठ्ठहत्तर समिधाओं में धी और दही मिलाकर हवन कर ब्राम्हण भोज तथा तांम्रपात्र का दान करने का विधान है। इस व्रत से आरोग्यता, समृद्धि के साथ बुद्धि तथा विवेक की भी वृद्धि होती है।
Pt.P.S.Tripathi
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