भारतीय
परिदृश्य में भ्रष्टाचार को देखा जाये तो हम सबसे पहले यहाँ की दशा और
दिशा को समझने का प्रयास करेंगे। भ्रष्टाचार का अर्थ- किसी व्यक्ति या समाज
द्वारा अपने भाग्य या पुरुषार्थ से ज्यादा पाने की चाह। स्वार्थ में लिप्त
होकर कोई भी किया गया गलत कार्य भ्रष्टाचार होता है। भ्रष्टाचार का दायरा
विशाल है। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं- रिश्वत, कमीशन लेना, काला बाजारी,
मुनाफाखोरी, मिलावट, कर्तव्य से भागना, चोर-अपराधियों को सहयोग करना,
अतिरिक्त गलत कार्य में रुचि लेना आदि सभी अनुचित कार्यों को भ्रष्टाचार
कहा जायेगा। धन संपदा का उपार्जन एवं संचय चिर काल से मानव मात्र के लिये
जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग बना रहा है परन्तु आधुनिक सामाजिक व्यवस्था
में यह अधिकांश व्यक्तियों के जीवन का एकमात्र अभीष्ट बन कर रह गया है।
विगत कुछ दशकों से आर्थिक सम्पन्नता को ही जीवन में सफलता का एकमात्र
मापदंड मान लेने का चलन व भारतीय सामाजिक संरचना में उपभोक्तावादी संस्कृति
को सर्वोपरि और सर्वमान्य बनता जा रहा है। समाज में विलासितापूर्ण जीवन
शैली का महिमामंडन जन साधारण के शब्दकोष से संतोष, परिश्रम, कर्तव्य,
निष्ठा और ईमानदारी जैसे शब्दों को मिटा देती हैं। धनोपार्जन की क्षमता से
अधिक व्यय की परिस्थितियों में अधिकांश व्यक्ति अपनी नैतिकता को दांव पर
लगा देते हैं। निर्विवाद रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि
भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण कम प्रयास में ज्यादा की चाह और अपनी क्षमता,
भाग्य और पुरुषार्थ की तुलना में जल्दी साधन संपन्न बनना और धन लोलुपता
है। हमारे शास्त्र में जहा मान्य था की साई इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाय पर अब उससे उलट भूख समाप्त होने का नाम
ही नहीं लेती। इसमें कोई संदेह नहीं कि नैतिक, वैचारिक, आत्मिक और
चारित्रिक पवित्रता, भ्रष्टाचार के रक्तबीज का नाश करने में सक्षम होगी और
एक सार्थक सामाजिक परिवेश का सृजन करेगी। किन्तु इसका समाप्त हो पाना कठिन
है क्यूंकि भारत की कुंडली में लग्न का राहू उच्च स्तर पर चारित्रिक
पवित्रता का निर्माण नहीं करेगा और इस प्रकार सुचिता बना पाना मुश्किल है।
भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति-
दुर्भाग्य से भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वैसे देखा जाए तो सारे विश्व में भ्रष्टाचारी राक्षस का आतंक फैला हुआ है। भारत के सारे क्षेत्र प्रशासनिक से लेकर शैक्षिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का राज है। इसे ज्योतिष से देखा जाये तो लग्नस्थ राहू चारित्रिक पवित्रता का अभाव, भाग्येश और दशमेश शनि तीसरे स्थान में सूर्य के साथ होने से भाग्य और पुरुषार्थ की कमी और तृतीयेश चंद्रमा तीसरे स्थान में होकर एकाग्रता में भारी कमी कर रहा है। जिसके कारण आज तक भ्रष्टाचार की स्थिति में कोई बहुत परिवर्तन नहीं आ सका। आज जब मै ये लिख रहा हु तब की स्थिति में वृश्चिक लग्न में भाग्येश और दशमेश शनि सप्तम स्थान में होने से पार्टनर का पूरा प्रभाव भाग्य एवम पुरुषार्थ पर है और तृतीयेश चंद्रमा अपने स्थान से बारहवे होने से स्वभाव में सुचिता की कमी है।
राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
आज कल सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार राजनैतिक क्षेत्र में हो रहा है। मंत्रियों को अमीर एवं धनी व्यक्तियों से धन लेकर अपराधियों को देना पड़ता है। ताकि वे चुनाव जीत जाएँ। फलस्वरूप चुनाव जीतने के बाद और व्यक्तियों की स्वार्थ पूर्ण शर्त पूरी हो जाती है। किसी देश या व्यक्ति की कुंडली में राहु तथा सूर्य, गुरू इत्यादि का प्रभावी होना भी राजनीति का कारक माना जाता है। चूकि राहु को नीतिकारक ग्रह का दर्जा प्राप्त है वहीं सूर्य को राज्यकारक, शनि को जनता का हितैषी और मंगल नेतृत्व का गुण प्रदाय करता है। इसलिए इन ग्रहों का अनुकूल होना राजनीति में नैतिक, वैचारिक, आत्मिक और चारित्रिक पवित्रता का धोतक है किन्तु भारत की कुंडली में सरे गृह विपरीत कारक होने से राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त कर पाना कठिन होगा। इस समय जब ग्रहों ही स्थिति बहुत अनुकूल नहीं है तो ये कहना अतिशयोक्ति होगा।
शैक्षिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
शैक्षिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से बचा नहीं है। अध्यापक के पास जो छात्र ट्यूशन लेते हैं, उन्हें परीक्षा में ज्यादा नंबर मिल जाते हैं, जबकि जो छात्र पढऩे में अच्छा हो, उसे कम अंक मिलते हैं। नौकरी और डिग्रियों के लिए भी रिश्वत लेकर दी जाती है। किसी भी कुंडली में दूसरा तथा पांचवा स्थान शिक्षा का होता है। भारत की स्थिति में दूसरे तथा पांचवे का स्वामी बुध, सूर्य-शनि से आक्रांत होकर तीसरे स्थान में है, जिसके कारण बुध का व्यवहार शिक्षा के प्रति उदासीन ही रहा है। चूंकि शनि दशम भाव एवं सूर्य चतुर्थ भाव का कारक है अत: कभी सत्ता तो कभी सम्पन्नता शैक्षणिक क्षेत्र में गुणवत्ता लाने में बाधक बनती रही है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
पैसे वाले आदमी एवं अमीर व्यक्तियों का इलाज पहले किया जाता है, लेकिन गरीब व्यक्ति का चाहे जितनी बड़ी उसकी बीमारी हो, उसकी अवहेलना की जाती है। दवाइयों में मिलावट की जाती है, जो रोगी के लिए बहुत खतरनाक होता है। ज्योतिषीय नजरिये से यदि हम चिकित्सा को देखें तो छटवा स्थान रोग का स्थान है। भारत की कुंडली में रोगेश शुक्र तीसरे स्थान हैं। सूर्य-शनि से आक्रांत होकर तीसरे स्थान में है, जिसके कारण चिकित्सा में चिकित्सकों के उपर प्रशासन एवं सत्ता का दबाव चिकित्सा हित में भ्रष्टाचार को समाप्त करने में असफल है।
धार्मिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
धार्मिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से बचा नहीं है। हर किसी को मंदिर जाने से पहले पैसे लेकर जाना पड़ता है, पुजारी की साधन दक्षिणा के लिए। धार्मिकता वर्तमान में चंद लालची लोगों के कारण पाखण्ड बनकर रह गया है जिसका मुख्य ज्योतिषीय कारण है धार्मिक प्रवृत्ति का नवम तथा द्वादश स्थान से देखा जाता है। भारत की कुंडली में नवम, शनि, सूर्य तथा शुक्र के साथ बैठ कर धर्म को भोग से लिप्त कर रहा है वहीं सूर्य के साथ होकर धर्म की सुचिता समाप्त कर रहा है। इसी प्रकार द्वादश स्थान पर शनि की दृष्टि धर्म से नैतिकता समाप्त कर भ्रष्ट आचार अध्यारोपित कर रहा है।
व्यापार के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
खाद्य पदार्थों से लेकर प्रत्येक चीज में मिलावट हो रही है, किसी में ईंट तो किसी में रेत मिला हुआ होता है। सीमेंट में भी ज्यादा रेत मिलाकर कमजोर गगनचुंबी इमारतें बनाई जाती हैं। सभी प्रकार से कार्यालय में भी रिश्वत से ही काम होता है। कार्यव्यापार तथा अवसर को दशम तथा एकादश स्थान से देखने पर दशम भाव का कारक शनि एवं एकादश भाव का कारक गुरू दोनों अपने स्थान से छटवे, आठवे हो जाने के कारण व्यापारिक क्षेत्र में अनैतिक लाभ की चाहत को बढ़ावा देने वाला साबित हो रहा है।
भ्रष्टाचार वृद्धि के कारण-
समाज में भ्रष्टाचार वृद्धि के कारण तो अनेक हैं, उनमें से कुछ मुख्य कारण हैं-
धन को सम्मान- आजकल अमीर आदमियों का ही समाज में सम्मान है। सच्चरित्र व्यक्तियों की कोई इज्जत नहीं करता, क्योंकि उसके पास धन नहीं होता है। इसलिए सच्चरित्र व्यक्ति भी भ्रष्टाचार अपनाने लगा है।
धन कमाने की तृष्णा- धन की तृष्णा में जलता हुआ आदमी बाहरी साज-सज्जा के लिए, भोग विलास के लिए पैसा कमाना चाहता है और इसके लिए सबसे लघुतम साधन है, भ्रष्टाचार। आदमी इतना स्वार्थी हो गया है कि वह भ्रष्टाचार फैलाकर दुनिया भर की सम्पत्ति अपने पेट में, मुँह में, घर में भर लेना चाहता है।
भ्रष्टाचार का समाधान-
समाज से भ्रष्टाचार को दूर करने का सबसे सरल साधन है-
1.जन चेतना: बच्चों को विद्यालय, घर एवं गुरुजनों से अच्छे संस्कार मिलने चाहिए, जिससे कि वह भ्रष्टाचार और सदाचार में अंतर समझ सकें और आगे चलकर सदाचार को अपनायें।
2. सरकारी अधिकारियों के विवेकाधिकार को सीमित करने से भी भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
3. अगर ऊँचे पद के अधिकारी भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो छोटा कर्मचारी भी नहीं करेगा।
4. जन आंदोलन से भी भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है।
5. सरकार भी भारत देश में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए जन आंदोलन से जागृत होकर जनलोकपाल बिल पर अमल कर रही है, जिससे की देश से भ्रष्टाचार कम हो जाए।
6. सरकारी अधिकारी या मंत्रियों के खिलाफ अगर कोई भी मामला दर्ज होता है, तो तीन माह के अंदर उन्हें अपने आपको सच्चा प्रमाणित करना पड़ेगा, नहीं तो उन्हें दंड दिया जायेगा।
७. पुलिस, आर.टी.आई. कानून से भी सरकार भ्रष्टाचार को कम करने में सफल हो सकेगी।
इन सभी समाधानों के अलावा सबसे अच्छा एवं सक्रिय समाधान यह है कि अगर राजा एवं प्रजा दोनों सचेत हो जाएँ तथा सच्चे सदाचार को अपना लें, तो भ्रष्टाचार का नामो निशान मिट जायेगा। जनता एवं सरकार दोनों को जागृत होना पड़ेगा। कहा जाता है- यथा राजा तथा प्रजा, इस तरह समाज से भ्रष्टाचार दूर हो कर सदाचार पनप सकता है।
भ्रष्टाचार के ज्योतिषीय समाधान:
भारत की कुंडली में चतुर्थ भाव अर्थात समाज, सूर्य है, जोकि अग्रणी होकर यदि भ्रष्टाचार समाप्त करे तो ही इसका अंत हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि समाज में लोगों को संयुक्त होकर सूर्य को प्रबल बनाने के लिए सामूहिक रूप भ्रष्टाचार का विरोध करने एवं भ्रष्ट आचरण का सामूहिक बहिस्कार करने के साथ यज्ञ एवं हवन करना चाहिए। सामूहिक रूप से आदित्य-हृदय स्त्रोत का पाठ करने से समाज में सुचिता आयेगी और इस तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। इसी प्रकार भारत की कुंडली में लग्रस्थ राहु कुडली मारकर बैठा है, उसके लिए सभी को आगे बढ़कर भौतिकता से परे देशहित एवं समाजकल्याण के लिए सोचना होगा।
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भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति-
दुर्भाग्य से भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वैसे देखा जाए तो सारे विश्व में भ्रष्टाचारी राक्षस का आतंक फैला हुआ है। भारत के सारे क्षेत्र प्रशासनिक से लेकर शैक्षिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का राज है। इसे ज्योतिष से देखा जाये तो लग्नस्थ राहू चारित्रिक पवित्रता का अभाव, भाग्येश और दशमेश शनि तीसरे स्थान में सूर्य के साथ होने से भाग्य और पुरुषार्थ की कमी और तृतीयेश चंद्रमा तीसरे स्थान में होकर एकाग्रता में भारी कमी कर रहा है। जिसके कारण आज तक भ्रष्टाचार की स्थिति में कोई बहुत परिवर्तन नहीं आ सका। आज जब मै ये लिख रहा हु तब की स्थिति में वृश्चिक लग्न में भाग्येश और दशमेश शनि सप्तम स्थान में होने से पार्टनर का पूरा प्रभाव भाग्य एवम पुरुषार्थ पर है और तृतीयेश चंद्रमा अपने स्थान से बारहवे होने से स्वभाव में सुचिता की कमी है।
राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
आज कल सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार राजनैतिक क्षेत्र में हो रहा है। मंत्रियों को अमीर एवं धनी व्यक्तियों से धन लेकर अपराधियों को देना पड़ता है। ताकि वे चुनाव जीत जाएँ। फलस्वरूप चुनाव जीतने के बाद और व्यक्तियों की स्वार्थ पूर्ण शर्त पूरी हो जाती है। किसी देश या व्यक्ति की कुंडली में राहु तथा सूर्य, गुरू इत्यादि का प्रभावी होना भी राजनीति का कारक माना जाता है। चूकि राहु को नीतिकारक ग्रह का दर्जा प्राप्त है वहीं सूर्य को राज्यकारक, शनि को जनता का हितैषी और मंगल नेतृत्व का गुण प्रदाय करता है। इसलिए इन ग्रहों का अनुकूल होना राजनीति में नैतिक, वैचारिक, आत्मिक और चारित्रिक पवित्रता का धोतक है किन्तु भारत की कुंडली में सरे गृह विपरीत कारक होने से राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त कर पाना कठिन होगा। इस समय जब ग्रहों ही स्थिति बहुत अनुकूल नहीं है तो ये कहना अतिशयोक्ति होगा।
शैक्षिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
शैक्षिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से बचा नहीं है। अध्यापक के पास जो छात्र ट्यूशन लेते हैं, उन्हें परीक्षा में ज्यादा नंबर मिल जाते हैं, जबकि जो छात्र पढऩे में अच्छा हो, उसे कम अंक मिलते हैं। नौकरी और डिग्रियों के लिए भी रिश्वत लेकर दी जाती है। किसी भी कुंडली में दूसरा तथा पांचवा स्थान शिक्षा का होता है। भारत की स्थिति में दूसरे तथा पांचवे का स्वामी बुध, सूर्य-शनि से आक्रांत होकर तीसरे स्थान में है, जिसके कारण बुध का व्यवहार शिक्षा के प्रति उदासीन ही रहा है। चूंकि शनि दशम भाव एवं सूर्य चतुर्थ भाव का कारक है अत: कभी सत्ता तो कभी सम्पन्नता शैक्षणिक क्षेत्र में गुणवत्ता लाने में बाधक बनती रही है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
पैसे वाले आदमी एवं अमीर व्यक्तियों का इलाज पहले किया जाता है, लेकिन गरीब व्यक्ति का चाहे जितनी बड़ी उसकी बीमारी हो, उसकी अवहेलना की जाती है। दवाइयों में मिलावट की जाती है, जो रोगी के लिए बहुत खतरनाक होता है। ज्योतिषीय नजरिये से यदि हम चिकित्सा को देखें तो छटवा स्थान रोग का स्थान है। भारत की कुंडली में रोगेश शुक्र तीसरे स्थान हैं। सूर्य-शनि से आक्रांत होकर तीसरे स्थान में है, जिसके कारण चिकित्सा में चिकित्सकों के उपर प्रशासन एवं सत्ता का दबाव चिकित्सा हित में भ्रष्टाचार को समाप्त करने में असफल है।
धार्मिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
धार्मिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से बचा नहीं है। हर किसी को मंदिर जाने से पहले पैसे लेकर जाना पड़ता है, पुजारी की साधन दक्षिणा के लिए। धार्मिकता वर्तमान में चंद लालची लोगों के कारण पाखण्ड बनकर रह गया है जिसका मुख्य ज्योतिषीय कारण है धार्मिक प्रवृत्ति का नवम तथा द्वादश स्थान से देखा जाता है। भारत की कुंडली में नवम, शनि, सूर्य तथा शुक्र के साथ बैठ कर धर्म को भोग से लिप्त कर रहा है वहीं सूर्य के साथ होकर धर्म की सुचिता समाप्त कर रहा है। इसी प्रकार द्वादश स्थान पर शनि की दृष्टि धर्म से नैतिकता समाप्त कर भ्रष्ट आचार अध्यारोपित कर रहा है।
व्यापार के क्षेत्र में भ्रष्टाचार-
खाद्य पदार्थों से लेकर प्रत्येक चीज में मिलावट हो रही है, किसी में ईंट तो किसी में रेत मिला हुआ होता है। सीमेंट में भी ज्यादा रेत मिलाकर कमजोर गगनचुंबी इमारतें बनाई जाती हैं। सभी प्रकार से कार्यालय में भी रिश्वत से ही काम होता है। कार्यव्यापार तथा अवसर को दशम तथा एकादश स्थान से देखने पर दशम भाव का कारक शनि एवं एकादश भाव का कारक गुरू दोनों अपने स्थान से छटवे, आठवे हो जाने के कारण व्यापारिक क्षेत्र में अनैतिक लाभ की चाहत को बढ़ावा देने वाला साबित हो रहा है।
भ्रष्टाचार वृद्धि के कारण-
समाज में भ्रष्टाचार वृद्धि के कारण तो अनेक हैं, उनमें से कुछ मुख्य कारण हैं-
धन को सम्मान- आजकल अमीर आदमियों का ही समाज में सम्मान है। सच्चरित्र व्यक्तियों की कोई इज्जत नहीं करता, क्योंकि उसके पास धन नहीं होता है। इसलिए सच्चरित्र व्यक्ति भी भ्रष्टाचार अपनाने लगा है।
धन कमाने की तृष्णा- धन की तृष्णा में जलता हुआ आदमी बाहरी साज-सज्जा के लिए, भोग विलास के लिए पैसा कमाना चाहता है और इसके लिए सबसे लघुतम साधन है, भ्रष्टाचार। आदमी इतना स्वार्थी हो गया है कि वह भ्रष्टाचार फैलाकर दुनिया भर की सम्पत्ति अपने पेट में, मुँह में, घर में भर लेना चाहता है।
भ्रष्टाचार का समाधान-
समाज से भ्रष्टाचार को दूर करने का सबसे सरल साधन है-
1.जन चेतना: बच्चों को विद्यालय, घर एवं गुरुजनों से अच्छे संस्कार मिलने चाहिए, जिससे कि वह भ्रष्टाचार और सदाचार में अंतर समझ सकें और आगे चलकर सदाचार को अपनायें।
2. सरकारी अधिकारियों के विवेकाधिकार को सीमित करने से भी भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
3. अगर ऊँचे पद के अधिकारी भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो छोटा कर्मचारी भी नहीं करेगा।
4. जन आंदोलन से भी भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है।
5. सरकार भी भारत देश में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए जन आंदोलन से जागृत होकर जनलोकपाल बिल पर अमल कर रही है, जिससे की देश से भ्रष्टाचार कम हो जाए।
6. सरकारी अधिकारी या मंत्रियों के खिलाफ अगर कोई भी मामला दर्ज होता है, तो तीन माह के अंदर उन्हें अपने आपको सच्चा प्रमाणित करना पड़ेगा, नहीं तो उन्हें दंड दिया जायेगा।
७. पुलिस, आर.टी.आई. कानून से भी सरकार भ्रष्टाचार को कम करने में सफल हो सकेगी।
इन सभी समाधानों के अलावा सबसे अच्छा एवं सक्रिय समाधान यह है कि अगर राजा एवं प्रजा दोनों सचेत हो जाएँ तथा सच्चे सदाचार को अपना लें, तो भ्रष्टाचार का नामो निशान मिट जायेगा। जनता एवं सरकार दोनों को जागृत होना पड़ेगा। कहा जाता है- यथा राजा तथा प्रजा, इस तरह समाज से भ्रष्टाचार दूर हो कर सदाचार पनप सकता है।
भ्रष्टाचार के ज्योतिषीय समाधान:
भारत की कुंडली में चतुर्थ भाव अर्थात समाज, सूर्य है, जोकि अग्रणी होकर यदि भ्रष्टाचार समाप्त करे तो ही इसका अंत हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि समाज में लोगों को संयुक्त होकर सूर्य को प्रबल बनाने के लिए सामूहिक रूप भ्रष्टाचार का विरोध करने एवं भ्रष्ट आचरण का सामूहिक बहिस्कार करने के साथ यज्ञ एवं हवन करना चाहिए। सामूहिक रूप से आदित्य-हृदय स्त्रोत का पाठ करने से समाज में सुचिता आयेगी और इस तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। इसी प्रकार भारत की कुंडली में लग्रस्थ राहु कुडली मारकर बैठा है, उसके लिए सभी को आगे बढ़कर भौतिकता से परे देशहित एवं समाजकल्याण के लिए सोचना होगा।
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