सूर्य-महादशा .
साधारणत: रोग का प्रकार , तीव्रता, होना या न होना सूर्य की स्थिति, युति एवं दृष्टि पर निर्भर होता है। गोचर में मंगल जब-जब सूर्य से युति करे या दृष्टि डाले, तो साधारणत: जातक को ज्वर होते देखा गया है। सूर्य नीच हो, पापी ग्रहों से दृष्ट हो, तो चोर, राजा एवं ज्वर से भय होता है। मनोविकार, वात-विकार,नेत्ररोग, पिता को कष्ट, ह्रदयरोग नेत्ररोग आदि ऐसे रोग हैं, जो दशा में उत्पन्न हो सकते है, शर्त है कि सूर्य की स्थिति रोगकारक हो।
चन्द्रमा-महादशा
इसकी महादशा में साघारणत: सर्दी, जुकाम, मानसिक कष्ट, माता को कष्ट, ज्वर उन्माद आहि रोग होते हैं। चन्द्रमा षष्ठ में हो तो अग्नि, राजा से भय मूत्रकृच्छ, अष्टमस्थ चन्द्र से जलभय या जलोदर द्वादशस्थ चन्द्र से मानसिक विकार, नीच चन्द्र से अग्निभय, बहन को कष्ट हैं किसी स्त्री को (परिवार/संबन्ध) अनिष्ट आदि फल प्राप्त होता है।
मंगल महादशा
इसकी दशा में सामान्यता रक्तविकार,चोट, झगडा, दण्ड, चेचक पेट सम्बन्धी बीमारी होती है। विशेष परिस्थितियों में, नीच मंगल चोर का अग्निभय, शत्रु राशि मंगल से नेत्र, गुदा, प्रमाद, रोग, सप्तम मंगल से मूत्र बीमारी, अष्टमस्थ मंगल से फोड़ा, मंगल क्रूर देष्काण से विषमभय, वक्री मंगल से सर्प-दंष एवं पंचमस्थ मंगल से मतिभ्रम होता है।
राहू-महादशा
सामान्यतया उदर-विकार, अभिचार रोग, मानसिक रोग आदि बिमारियों चलती रहती हैं। लग्नस्थ राहु में सिरदर्द| द्वितीयस्थ में कुत्ता से भय मानसिक विकास चतुर्थस्थ से मनोव्यथा, पंचमस्थ से भ्रम, षष्ठस्थ से प्रमेह, गुल्म क्षयरोग, सप्तम है सर्पभय, अष्टम से दुर्घटना, पाइल द्वादस्थ से नेत्रपीड़ा, चोर-भय, मानसिक वास चुषामस्थ से अग्निभय, नीचस्थ से विषमय एल पापराशि से क्षय एव खाँसी रोग पैदा होता हैं।
गुरू-महादशा
यह सामान्यतया गुल्म, उदर-विकार एव रथूलता देता है। नीचस्थ है त्वचा रोग , मानसिक कष्ट, षष्ठस्थ से पीलिया, वात, मधुमेह, पाइल रोग, अस्त गुरु से ज्वर, आम रोग,स्वगृही गुरु ६, ८, १२ में हो, तो केंसर जैसे महारोग तक दे सकता है।
शनि-महादशा
सामान्यतया वात-विकार, चोट, गैस, किसी सम्बन्धी (जरा आयु मे) का अनिष्ट साढे साती हो तो व्यय, मानसिक क्लेष एवं व्यग्रता रहती है।शत्रु-राशिस्थ शनि से राजा एव चोर से भय, लग्नस्थ से सिरदर्द, कमजोरी, तृतीयस्थ से मानसिक रोग, षष्ठस्थ से वात-विकार, विष, सप्तमस्थ से मूत्ररोग एवं द्वादस्थ से अग्निभय आदि होता है। …
बुध-महादशा
सामान्यतया अनिर्णय की स्थिति,ज्वर,चर्मरोग,स्नायुरोग एवं भ्रमता पैदा होती है। रोगकारक हो जाने यर अनेक रोग देता है। नीचस्थ बुध मानसिक विकार तृतीयस्थ से गुल्म, पंचमस्थ से चिंता,षष्ठस्थ से वाणी-विकार, नेत्र, कान, चर्मरोग, आँत रोग, अष्टमस्थ से पीलिया एव द्वादशस्थ से मनोविकार विकलता जैसे रोग उत्पन्न होते है।
केतु-महादशा
सामान्यतया भ्रम, भय, चंचलता, अग्नि एवं राजा से भय पैदा होता है। यह गुप्तरोग का कारण है। लग्न में ज्वर, हैजा, द्वितीय में मानसिक रोग, पंचम में बुद्धिभ्रम, षष्ठ में अग्नि, चोरी, दुर्घटना, सप्तम में मूत्रविकार, अष्टम में श्वास एवं क्षयरोग, द्वादश भाव से नेत्रविकार होता है। यह ग्रह अचानक रोग देता है। यह कैसर तक दे सकता है।
शुक्र-महादशा
सामान्यतया स्त्री सम्बन्धी रोग, काम वीर्य से सम्बन्धित रोग उत्पन्न करता है। यह श्वेत कुष्ठ, नेत्ररोग, मूत्ररोग, मधुमेह एव शिरोरोग भी देता है। अवरोही शुक्र दशा में हृदयरोग, नीचगत से मानसिक रोग, चित विकलता, सप्तमस्थ से प्रमेह नेत्ररोग, षष्ठस्थ से शस्त्र चीर एव शत्रु राशि गत से संग्रहरणी एवं नेत्र रोग होता है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
साधारणत: रोग का प्रकार , तीव्रता, होना या न होना सूर्य की स्थिति, युति एवं दृष्टि पर निर्भर होता है। गोचर में मंगल जब-जब सूर्य से युति करे या दृष्टि डाले, तो साधारणत: जातक को ज्वर होते देखा गया है। सूर्य नीच हो, पापी ग्रहों से दृष्ट हो, तो चोर, राजा एवं ज्वर से भय होता है। मनोविकार, वात-विकार,नेत्ररोग, पिता को कष्ट, ह्रदयरोग नेत्ररोग आदि ऐसे रोग हैं, जो दशा में उत्पन्न हो सकते है, शर्त है कि सूर्य की स्थिति रोगकारक हो।
चन्द्रमा-महादशा
इसकी महादशा में साघारणत: सर्दी, जुकाम, मानसिक कष्ट, माता को कष्ट, ज्वर उन्माद आहि रोग होते हैं। चन्द्रमा षष्ठ में हो तो अग्नि, राजा से भय मूत्रकृच्छ, अष्टमस्थ चन्द्र से जलभय या जलोदर द्वादशस्थ चन्द्र से मानसिक विकार, नीच चन्द्र से अग्निभय, बहन को कष्ट हैं किसी स्त्री को (परिवार/संबन्ध) अनिष्ट आदि फल प्राप्त होता है।
मंगल महादशा
इसकी दशा में सामान्यता रक्तविकार,चोट, झगडा, दण्ड, चेचक पेट सम्बन्धी बीमारी होती है। विशेष परिस्थितियों में, नीच मंगल चोर का अग्निभय, शत्रु राशि मंगल से नेत्र, गुदा, प्रमाद, रोग, सप्तम मंगल से मूत्र बीमारी, अष्टमस्थ मंगल से फोड़ा, मंगल क्रूर देष्काण से विषमभय, वक्री मंगल से सर्प-दंष एवं पंचमस्थ मंगल से मतिभ्रम होता है।
राहू-महादशा
सामान्यतया उदर-विकार, अभिचार रोग, मानसिक रोग आदि बिमारियों चलती रहती हैं। लग्नस्थ राहु में सिरदर्द| द्वितीयस्थ में कुत्ता से भय मानसिक विकास चतुर्थस्थ से मनोव्यथा, पंचमस्थ से भ्रम, षष्ठस्थ से प्रमेह, गुल्म क्षयरोग, सप्तम है सर्पभय, अष्टम से दुर्घटना, पाइल द्वादस्थ से नेत्रपीड़ा, चोर-भय, मानसिक वास चुषामस्थ से अग्निभय, नीचस्थ से विषमय एल पापराशि से क्षय एव खाँसी रोग पैदा होता हैं।
गुरू-महादशा
यह सामान्यतया गुल्म, उदर-विकार एव रथूलता देता है। नीचस्थ है त्वचा रोग , मानसिक कष्ट, षष्ठस्थ से पीलिया, वात, मधुमेह, पाइल रोग, अस्त गुरु से ज्वर, आम रोग,स्वगृही गुरु ६, ८, १२ में हो, तो केंसर जैसे महारोग तक दे सकता है।
शनि-महादशा
सामान्यतया वात-विकार, चोट, गैस, किसी सम्बन्धी (जरा आयु मे) का अनिष्ट साढे साती हो तो व्यय, मानसिक क्लेष एवं व्यग्रता रहती है।शत्रु-राशिस्थ शनि से राजा एव चोर से भय, लग्नस्थ से सिरदर्द, कमजोरी, तृतीयस्थ से मानसिक रोग, षष्ठस्थ से वात-विकार, विष, सप्तमस्थ से मूत्ररोग एवं द्वादस्थ से अग्निभय आदि होता है। …
बुध-महादशा
सामान्यतया अनिर्णय की स्थिति,ज्वर,चर्मरोग,स्नायुरोग एवं भ्रमता पैदा होती है। रोगकारक हो जाने यर अनेक रोग देता है। नीचस्थ बुध मानसिक विकार तृतीयस्थ से गुल्म, पंचमस्थ से चिंता,षष्ठस्थ से वाणी-विकार, नेत्र, कान, चर्मरोग, आँत रोग, अष्टमस्थ से पीलिया एव द्वादशस्थ से मनोविकार विकलता जैसे रोग उत्पन्न होते है।
केतु-महादशा
सामान्यतया भ्रम, भय, चंचलता, अग्नि एवं राजा से भय पैदा होता है। यह गुप्तरोग का कारण है। लग्न में ज्वर, हैजा, द्वितीय में मानसिक रोग, पंचम में बुद्धिभ्रम, षष्ठ में अग्नि, चोरी, दुर्घटना, सप्तम में मूत्रविकार, अष्टम में श्वास एवं क्षयरोग, द्वादश भाव से नेत्रविकार होता है। यह ग्रह अचानक रोग देता है। यह कैसर तक दे सकता है।
शुक्र-महादशा
सामान्यतया स्त्री सम्बन्धी रोग, काम वीर्य से सम्बन्धित रोग उत्पन्न करता है। यह श्वेत कुष्ठ, नेत्ररोग, मूत्ररोग, मधुमेह एव शिरोरोग भी देता है। अवरोही शुक्र दशा में हृदयरोग, नीचगत से मानसिक रोग, चित विकलता, सप्तमस्थ से प्रमेह नेत्ररोग, षष्ठस्थ से शस्त्र चीर एव शत्रु राशि गत से संग्रहरणी एवं नेत्र रोग होता है।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
No comments:
Post a Comment