Friday, 2 October 2015

क्या है चांडाल योग?

चांडाल शब्द का अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला, नीच कर्म करनेवाला। इस चांडाल शब्द पर से ज्योतिष-शास्त्र में एक योग है, जिसे गुरु चांडाल योग या विप्र योग कहा जाता है। राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है। पुराणों में यह राक्षस है। राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती है। राहू सर्प का मस्तक है तो केतु सर्प की पूंछ। ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है। अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है। यह दोनों ग्रह चांडाल जाति के हैं। इसलिए गुरु के साथ इनकी युति गुरु-चांडाल या विप्र (गुरु)-चांडाल योग कहा जाता है।
राहू-केतु जिस तरह गुरु के साथ चांडाल योग बनाते है इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ चांडाल योग बनाते है जो निम्न प्रकार के है।
1) रवि-चांडाल योग : सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है। इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है। उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है। पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते। पिता की तबीयत भी अच्छी नहीं रहती।
2) चन्द्र-चांडाल योग : चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है। इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता। माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है। नास्तिक होने की भी संभावना होती है।
3) भौम-चांडाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है। इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है। स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है। आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है।
4) बुध-चांडाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है। बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है। और जातक अधर्मी। धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है।
5) गुरु-चांडाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है।ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है।
6) भृगु-चांडाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है। इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है। वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है। विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है।
7) शनि-चांडाल योग : शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है। इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है। यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है। जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है। ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता। यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है।
राहू-केतु के साथ जो ग्रह है उनके भावाधिपत्य और उन पर अन्य ग्रहों की युति-इष्ठ या परिवर्तन के संबंधों से फलकथन में बदलाव आना संभव है। ज्योतिषीय निवारणों के द्वारा उक्त दोषों को दूर किया जा सकता है।
चांडाल योग के दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है तथा ऐसा जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु और केतु को चांडाल माना गया है और गुरु का इन चांडाल माने जाने वाले ग्रहों में से किसी भी ग्रह के साथ स्थिति अथवा दृष्टि के कारण संबंध स्थापित होने से कुंडली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है।किसी कुंडली में राहु का गुरु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है जिसके चलते ऐसा जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है जिसके लिए ऐसा जातक अधिकतर अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है। सामान्यत: यह योग अच्छा नहीं माना जाता। जिस भाव में फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है। यदि मूल जन्म कुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है।
वास्तव में गुरु ज्ञान का ग्रह है, बुद्धि का दाता है। जब यह नीच का हो जाता है तो ज्ञान में कमी लाता है। बुद्धि को क्षीण बना देता है। राहु छाया ग्रह है जो भ्रम, संदेह, शक, चालबाजी का कारक है। नीच का गुरु अपनी शुभता को खो देता है। उस पर राहु की युति इसे और भी निर्बल बनाती है। राहु मकर राशि में मित्र का ही माना जाता है (शनिवत राहु) अत: यह बुद्धि भ्रष्ट करता है। निरंतर भ्रम-संदेह की स्थिति बनाए रखता है तथा गलत निर्णयों की ओर अग्रसर करता है।दिसंबर को देवगुरु बृहस्पति ने अपनी नीच राशि में प्रवेश किया है। वहाँ पहले से बैठे राहु ने इस युति से चांडाल योग को जन्म दिया है।
यदि मूल कुंडली या गोचर कुंडली इस योग के प्रभाव में हो तो निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं-
* योग्य गुरु की शरण में जाएँ, उसकी सेवा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाएँ।
* निर्धन विद्यार्थियों को अध्ययन में सहायता करें।
* निर्णय लेते समय बड़ों की राय लें।
* वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यवहार में सामाजिकता लाएँ।
* खुलकर हँसे, प्रसन्न रहें।
* गणेशजी और देवी सरस्वती की उपासना और मंत्र जाप करें।
* बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें, केले का पूजन करें, गाय की सेवा करें।
* राहु का जप-दान करें।
Pt.P.S.Tripathi
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