Saturday, 16 April 2016

अंग लक्षण एवं सामुद्रिक का परस्पर संबंध

हस्त रेखा शास्त्र, अंग लक्षण विद्या तथा सामुद्रिक क्या ये तीनों एक ही हैं? अंग लक्षण विद्या एवं सामुद्रिक का परस्पर क्या संबंध है? हस्तरेखा विज्ञान को सामुद्रिक क्यों कहते हैं? मनुष्य का हाथ एक ऐसी जन्म पत्रिका है जो कभी भी नष्ट नहींं होती तथा जिसके रचयिता स्वयं ब्रह्माजी हैं। इसलिए शास्त्रों में कहा भी गया है- ‘‘कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम्॥’’ कर (हाथ) के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती तथा मूल में ब्रह्मा जी का वास है अत: प्रात: उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों का दर्शन करना चाहिए। हस्तरेखा विज्ञान तथा अंग लक्षण विज्ञान को ही सामुद्रिक भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र ऋषि ही ऐसे सवर्प्रथम भारतीय ऋषि थे जिन्हांने प्रामाणिक एवं क्रमबद्ध रूप से ज्योतिष विज्ञान की रचना की थी अत: उन्हीं के नाम पर हस्त रेखा विज्ञान को सामुिदक्र भी कहा जाता है। हस्तरेखा विज्ञान को सामुद्रिक क्यों कहते हैं अथवा अंग लक्षण विद्या का सामुद्रिक से क्या संबंध है। इससे संबंधित तथ्यों का उल्लेख भी वेदों और पुराणों में मिलता है।
‘अंग लक्षण विद्या’ से तात्पर्य एक ऐसी विद्या से है जिसके ज्ञान के द्वारा स्त्री पुरुष के शारीरिक अंगों में विद्यमान उसके शुभाशुभ लक्षणों को देखकर ही उनके व्यक्तित्व, स्वभाव, चरित्र तथा भाग्य का सटीक और सार्थक फलादशे किया जा सके। ऐसी विलक्षण विद्या की रचना सर्व प्रथम गणेश भगवान के अग्रज भगवान कार्तिकेय ने की थी। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान गणेश को ‘विघ्नेश’, ‘विघ्न विनाशक’ तथा ‘एकदंत’ भी कहते हैं। उन्होंने किसके लिए विघ्न उत्पन्न किया था, जिसके कारण उन्हें विघ्नशे कहा गया अथवा गणेश जी को एकदंत क्यों कहते हैं? यदि इस प्रश्न की गहराई में जाएं तो भी हम पाएगे कि इसका मूल कारण भी ‘समुद्र शास्त्र’ ही है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय ने अपने ‘अंग लक्षण शास्त्र’ के अनुसार पुरुषों एवं स्त्रियों के श्रेष्ठ लक्षणों की रचना की। उसी समय गणेश जी ने उनके इस कार्य में विघ्न उत्पन्न किया। इस पर कार्तिकेय क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने गणेश जी का एक दातं उखाड़ लिया और उन्हें मारने के लिए उद्यत हो उठे। तब भगवान शंकर ने कार्तिकये को बीच में रोककर पूछा कि उनके क्रोध का कारण क्या है? कार्तिकेय जी ने कहा ‘‘पिताजी, मैं पुरुषों के लक्षण बनाकर स्त्रियों के लक्षण बना रहा था, उसमें गणेश ने विघ्न उत्पन्न किया, जिससे स्त्रियों के लक्षण मैं नहीं बना सका। इस कारण मुझे क्रोध आया।’’ यह सुनकर महदेव जी ने उनके क्रोध को शांत किया और मुस्कुराकर उनसे पूछा- ‘‘पुत्र, तुम पुरुष के लक्षण जानते हो, तो बताओ मुझमें पुरुषों के कौन-कौन से लक्षण विद्यमान हैं?’’ कार्तिकेय जी ने कहा ‘‘पिता जी, आपमें पुरुषों के ऐसे लक्षण विद्यमान हैं कि आप संसार में ‘कपाली’ के नाम से प्रसिद्ध होंगे।’’ पुत्र के ऐसे वचनों को सुनकर शिवजी क्रोधित हो गये और उन्होंने कार्तिकेय जी के अंग लक्षण शास्त्र को उठाकर समुद्र में फेंक दिया और स्वयं अंर्तध्यान हो गये। कुछ समय पश्चात् जब शिवजी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने समुद्र को बुलाकर कहा कि तुम स्त्रियों के आभूषण स्वरूप विलक्षण लक्षणों की रचना करो और कार्तिकेय ने जो कुछ भी पुरुष लक्षणों के बारे में कहा है उसकी भी विस्तृत विवेचना करो।’’ समुद्र ने शिवजी की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए कहा ‘‘स्वामि, आपने जो आज्ञा मुझे दी है, वह निश्चित ही पूर्ण होगी, किंतु जो मेरे द्वारा स्त्री-पुरुष लक्षण का शास्त्र कहा जाएगा, वह मेरेे ही नाम ‘सामुिदक्र शास्त्र’ नाम से प्रसिद्ध होगा।।
किसी भी शुभ अवसर पर हिदंू धर्म में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा-अर्चना का विधान भी शायद इसीलिए बनाया गया है कि व्यक्ति के किसी भी कार्य में कोई भी विघ्न न उपस्थित हो। अत: स्पष्ट है कि अंग लक्षण विद्या से सबंंधित शास्त्र की रचना में विघ्न उत्पन्न करने के कारण ही गणेश जी को विघ्नेश कहा गया तथा भगवान कार्तिकेय के क्रोध के कारण दण्ड स्वरूप उन्हें एकदंत होना पड़ा। लक्षण शास्त्र से सबंंिधत पुराणों एक कथा यह भी है कि, भगवान शिव द्वारा क्रोध में आकर कार्तिकेय द्वारा रचित लक्षण ग्रंथ को समुद्र में फेंक देने के उपरांत व्योमकेश भगवान के सुपुत्र कार्तिकेय जी ने जब अपनी अनुपम शक्ति से क्रौंच पर्वत को विदीर्ण किया तो ब्रह्मा जी ने वर मांगने को कहा। कुमार कार्तिकेय ने नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम किया और कहा ‘‘प्रभो। स्त्रियों के विषय में जो लक्षण ग्रंथ मैंने पहले बनाया था उसे तो मेरे पिता महादेव ने क्रोध में आकर समदु्र मे फेंक दिया। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर पनु: उन्हीं लक्षणों का वर्णन करें। तब कार्तिकेय जी के आग्रह करने पर ब्रह्मा जी ने स्वयं समुद्र द्वारा कहे गये उन स्त्री-पुरुष लक्षणों को पुन: वर्णित किया। उन्होंने उसी शास्त्र के आधार पर स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ उत्तम, मध्यम और अधम ये तीन प्रकार के लक्षण बतलाए जिसके अनुसार किसी भी जातक का स्वभाव, व्यवहार तथा भाग्य निर्धारित किया जा सकता है। अत: यह पूर्ण रूपेण प्रामाणिक एवं शास्त्रोक्त भी है, कि हस्तरेखा, अंग लक्षण विद्या एवं सामुद्रिक का परस्पर गहरा एवं अटूट संबंध है। एक अच्छे ज्योतिषी को चाहिए कि वह अंग लक्षण विद्या एवं ज्योतिष का परस्पर समन्वय स्थापित करते हुए शुभ मुहर्तू में मध्याह्न के पूर्व स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ लक्षणों एवं हस्त रेखाओं का भली प्रकार अध्ययन करने के उपरांत ही सटीक एवं सार्थक फलादेश करें।

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