Friday, 22 April 2016

व्यव्हार में सकारात्मकता कैसे ????



व्यवहारिक उपाय रश्मि शर्मा ज्यातिष शास्त्र में नव ग्रहों का महत्व अत्यधिक है। सभी ग्रह मानव पर अपना प्रभाव डालते हैं। हमारे पूर्व जन्मों के कृत्यों के अनुरूप ग्रह हमारी कुंडली के विभिन्न स्थानों में स्थित होकर अपना अच्छा या बुरा फल देते हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने हेतु इन ग्रहों के बुरे प्रभाव को खत्म कर अच्छे प्रभावों की कामना करता है। इसके लिए विभिन्न यंत्र, मंत्र व तंत्रों का प्रयोग भी करता है। परंतु यदि मनुष्य कुछ साधारण उपाय करे तो नवग्रह शांत हो शुभ फलदायक हो जाते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु ये नौ ग्रह हैं। नवग्रहों के अतिरिक्त ईश्वर को सर्वोपरि माना गया है। ईश्वर के प्रति समर्पण, भक्ति और आराधना की भावना रखने से नवग्रह प्रभावहीन हो जाते हैं। नवग्रहों का मंत्र जप, उपासना और जहां आवश्यक हो वहां महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से भी नवग्रह शांति हो जाती है। कुसंगति, कुचिंतन और कुसाहित्य का त्याग करके सात्विक रहन-सहन, सात्विक भोजन एवं सात्विक विचार अपनाने से भी नवग्रहों की शांति होती है। मनुष्य के दुखों का कारण उसकी लालसा है। अपनी अनावश्यक आवश्यकताएं कम कर देने से नवग्रह प्रभावहीन हो जाते हैं। निष्काम कर्म करते हुए, ईश्वर पर अटूट विश्वास रखना उसका स्मरण, ध्यान एवं भजन करने मात्र से भी नवग्रहों का कुप्रभाव खत्म हो जाता है। वासनाओं से अलग रहकर किये गये उचित कर्मों से नवग्रह प्रसन्न होकर सौभाग्य सूचक हो जाया करते हैं। मन, वाणी और क्रिया से किये गये पापों या दुष्कर्मों के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करने से भी नवग्रह शांत हो जाते हैं। ईर्ष्या व शत्रुता को त्यागकर व वैराग्य को अपनाते हुए मन, वचन व कर्म से अहिंसा का पालन करने से भी नवग्रहों की शांति संभव है। आध्यात्मिक साहित्य का निरंतर पठन-पाठन भी नवग्रहों की शांति का अचूक उपाय है। इष्टदेव का ध्यान, सत्संग व भक्ति करते हुए पूर्ण शरणागति को अपनाने से भी नवग्रहों का कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। मन व इंद्रियों के निग्रह अर्थात उन्हें वश में कर लेने से भी नवग्रह शांत होते हैं। ईश्वर उपासना नवग्रह शान्ति का सर्वोत्तम उपाय है। यदि आप सभी कार्य ईश्वर को अपर्ण करके करें, अपनी सभी गतिविधियां उसकी इच्छा समझकर करें। क्या होगा? ईश्वर जाने, जो होगा वह अच्छा होगा भले के लिए होगा और जैसा भी होगा मुझे स्वीकार होगा ऐसा चिंतन करें। मन में यह धारणा बनाएं कि ईश्वर की कृपा से मैं प्रतिदिन हर प्रकार से अच्छा बनता जा रहा हूं। इससे शक्ति मिलेगी और बहुत से कष्ट स्वतः ही दूर हो जाएंगे। यह भी सोचें और इसका हर समय स्मरण व उच्चारण करते रहें- ''मैं कुछ नहीं हूं, मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं। तू ही सब कुछ है। तुम बिन कुछ नहीं है जीवन को तेरा ही सहारा है, तू ही पालनहार है।'' यह अहंकार और मोह को दूर करके ईश्वरार्पण, आत्मनिवेदन व शक्ति प्रदान करेगा। ईश्वरार्पण की भावना से अपने कर्तव्य निभाते रहेगें तो सुख पाने का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त होगा और नवग्रह भी आप पर कुप्रभाव डालने से कतरायेंगे। आप अपनी क्षमताओं को पहचान कर पाप, खतरनाक भाव, घृणा, बड़ी बाधा, अधिक बोलना और बुरी भावना, ईर्ष्या व असत्य को त्याग करके किसी की आलोचना न करते हुए, समय के अपव्यय में बचते हुए आज और अभी अपने विश्वसनीय मित्र अर्थात् अपने हाथों से उत्साह सहित कार्य में संलग्न हो जायेंगे और सदैव, सच्चाई ईमानदारी व विनम्रता अपनायेंगे तो नवग्रह प्रभावहीन होकर शांत हो जाते हैं। ऐसे में आप आत्मविश्वासी बन जायेंगे, विवेक व धैर्य आपके सहयोगी होंगे और आप सहज ही अपना लक्ष्य पा सकेगें। परोपकार की भावना, सभी को प्रसन्न देखने की इच्छा आपको ईश्वर के करीब ले जाने में सक्षम है। ऐसे व्यक्ति पर नवग्रह हमेशा कृपालु रहते हैं।

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