Tuesday, 26 April 2016

आपने बहुत देर कर दी !!!

नंद कुमार की माँ अक्सर बीमार रहती थी। माँ रोज बेटे-बहू को कहती थी कि बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चल। बेटा भी रोज पत्नी को कह देता, ‘‘माँ को ले जाना, मैं तो फैक्टरी के काम में व्यस्त रहता हूँ। क्या तुम माँ का चेकअप नहीं करा सकती हो?’’
पत्नी भी लापरवाही से उत्तर दे देती, ‘‘पिछले साल गई तो थी, डॉक्टर ने कोई ऑपरेशन का कहा है। जब तकलीफ होगी ले जाना।’’
आनंद कुमार भी ब्रीफकेस उठाकर चलता हुआ बोल जाता है कि ‘‘माँ तुम भी थोड़ी सहनशक्ति रखा करो।’’
कुछ दिनों से आनंद कुमार की फैक्टरी की पार्किंग में मरे जैसे सूरत का एक गरीब लडक़ा बूट करने आ रहा था। जब कभी बूट पॉलिश का काम नहीं होता, तब वह वहाँ रखी गाडिय़ों को कपड़े से साफ करता। गाड़ी वाले उसे जो भी 2-4 रुपए देते, उसे ले लेता। आनंद कुमार उसे अब पहचानने लगा था। दूसरे लोग भी रोज मिलने से उसे पहचानने लग गए थे। लडक़ा भी जिस साहब से 5 रुपए मिलते, उस साहब को लंबा सलाम ठोकता था।
एक दिन की बात है आनंद कुमार शाम को मीटिंग लेकर अपने कैबिन में आकर बैठा। उसको एक जरूरी फोन पर जानकारी मिली, जो उसके घर से था। घर का नंबर मिलाया तो नौकर ने कहा ‘‘साहब आपको 11 बजे से फोन कर रहे हैं। माताजी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, इसलिए बहादुर और रामू दोनों नौकर उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए हैं..’’
आनंद कुमार चिल्लाया ‘‘क्या मेम साहब घर पर नहीं हैं?’’
वह डरकर बोला, ‘‘वे तो सुबह 10 बजे ही आपके जाने के बाद चली गईं। साहब घर पर कोई नहीं था और हमें कुछ समझ में नहीं आया। माताजी बड़ी मुश्किल से कह पाईं थीं ‘‘बेटा मुझे सरकारी अस्पताल ले चलो...। तो माली और बहादुर दोनों रिक्शा में ले आए और मां जी को अस्पताल ले गए और साहब मैं मेम साहब का रास्ता देखने के लिए और आपको फोन करने के लिए घर पर रुक गया।’’
आनंद कुमार के गुस्से का ठिकाना न रहा। ऐन मौकों में ही ऐसा बखेड़ा खड़ा करना था मां को। वह लगभग दौड़ते हुए गाड़ी निकालकर तेज गति से सरकारी अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जैसे ही अस्पताल के रिसेप्शन की ओर बढ़ा, उसने सोचा कि यहीं से जानकारी ले लेता हूँ।
‘‘सलाम साब’’
आनंद कुमार एकाएक चौंक पड़ा ‘‘अरे तुम वही लडक़े हो? बूट पालिस वाले।’’
‘‘हां साब।’’ उस लडक़े के साथ एक बूढ़ी औरत भी थी।
‘‘अरे तुम यहाँ? क्या बात है?’’ आनंद कुमार ने पूछा।
लडक़ा बोला ‘‘साहब, ये मेरी मां है। बीमार थी। 15 दिनों से यहीं भर्ती थी साब। इसीलिए पैसे इक_े करता था, वहां..., आपकी फैक्ट्री में।
‘‘मगर साब आप यहाँ कैसे?’’
आनंद कुमार जैसे नींद से जागा। ‘‘हाँ... !’’ कहकर वह रिसेप्शन की ओर दौड़ गया।
वहाँ से जानकारी लेकर लंबे-लंबे कदम से आगे बढ़ता गया। सामने से उसे दो डॉक्टर आते मिले। उसने अपना परिचय दिया और माँ के बारे में पूछा।
‘‘ओ आई एम सॉरी, शी इज नो मोर..... शी इज नो मोर, आपने बहुत देर कर दी।’’
शाम ढल चुकी थी, पंछी अपने घोसलों को वापस आ रहीं थीं। आनंद कुमार वहीं हारा-सा बैठा हुआ था। सामने गरीब लडक़ा चला जा रहा था और उसके कंधे पर हाथ रखे धीरे-धीरे उसकी माँ जा रही थी।

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