संतान का सुख मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सुख है। शास्त्रानुसार पुत्र-संतान के बिना दंपत्ति की सद्गति नहीं होती। विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य संतान प्राप्ति भी है। संतान ही वंश को आगे बढ़ाती है तथा सामाजिक व सांस्कृतिक चक्र को निरंतर बनाए रखती है। संतान का अभाव दांपत्य जीवन के कष्टप्रद होने का एक प्रमुख कारण है। संसार का प्रत्येक स्त्री-पुरूष संतान उत्पन्न कर तथा उसका पालन-पोषण कर अपने ऋण से मुक्त होने की अभिलाषा रखता है। ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से संतान से संबंधित अनेक प्रश्नों के उत्तर दिए जा सकते हैं। जैसे संतान होगी या नहीं, पुत्र होगा या पुत्री, प्रथम संतान क्या होगी, कितनी संतानें उत्पन्न होंगी, संतान दुर्गुणी होगी या सद्गुणी इत्यादि। संतानहीनता एक ऐसा श्राप है जिसके कारण मनुष्य को अपने आप में अपूर्णता की भावना बारंबार ग्रस्ती रहती है। विवाह योग देखते समय या मेलापक पढ़ते समय संतान योग पर भी ध्यान देना नितांत आवश्यक है। जन्मपत्रिका के पंचम भाव से संतान के संबंध में विचार किया जाता है। संतान का कारक ग्रह गुरु है। अतः गुरु की स्थिति भी देखनी चाहिए। चंद्र लग्न से भी पंचम भाव के बलाबल पर ध्यान देना आवश्यक होता है। संतान के संबंध में स्त्री की जन्मपत्रिका में पंचम भाव के अतिरिक्त नवम भाव (पंचम से पंचम होने के कारण) का भी विचार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सप्तम व अष्टम भी संतानोत्पत्ति से संबंध रखते हैं क्योंकि अण्डाशय, गर्भाशय, अंडवाहिनी नलिकाएं इत्यादि अष्टम भाव से तथा कामांग व यौनाचार सप्तम भाव से संबंध रखते हैं। चंद्र नमी तथा गर्भधारण करने की क्षमता का तथा मंगल रक्त का कारक है। अतः गर्भ धारण में एवं प्रसव में चंद्र, मंगल व गुरु की भूमिका प्रमुख है। संतानोत्पत्ति के लिए पंचम भाव व पंचमेश, सप्तम व सप्तमेश, अष्टम व अष्टमेश, नवम भाव व नवमेश तथा चंद्र, मंगल व गुरु की स्थिति पर विचार करना आवश्यक है। पति-पत्नी दोनों की जन्मपत्रिकाओं के आधार पर संतान-सुख का निर्णय करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार संतानहीनता के निम्न कारण हो सकते हैं- स्त्री जातक 1. बन्ध्यत्व 2. काक बन्ध्यत्व 3. गर्भ स्राव 4. मृतंवत्सत्व 5. संतानहीनता के योग। 1. बन्ध्यत्व जिस स्त्री में गर्भ धारण करने की क्षमता न हो उसे बांझ या बंध्या कहा जाता है। इससे संबंधित योग स्त्री की जन्मपत्रिका में देखे जा सकते हैं। - लग्न राशि मेष, वृष, कुंभ हो तथा लग्न पर पाप प्रभाव हो। - लग्न में शनि व मंगल हो अथवा चंद्र व शुक्र हो तथा पंचम भाव पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो। - सूर्य व शनि षष्ठ भाव में षष्ठेश के साथ हों तथा सप्तमस्थ चंद्र पर बुध की दृष्टि हो। - सूर्य व शनि की युति अष्टम भाव में हो। - चंद्र और शनि की दृष्टि अष्टम भाव में हो। - पंचमेश नीच राशि में हो तथा नवम भाव में पाप ग्रह हो। - चंद्र व शुक्र लग्न में मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ राशि में हो तथा षष्ठ भाव में पाप ग्रह हो। - पंचमेश षष्ठ भाव में हो तथा तृतीयेश पंचम या द्वादश भाव में हो। 2. काक बन्ध्यत्व जो स्त्री जीवन में केवल एक बार ही गर्भ धारण करे, चाहे संतान जीवित हो अथवा मृत अथवा गर्भपात हो जाए, काक बंध्या कहलाती है। निम्न योगों में स्त्री काक बन्ध्या होती है। - चंद्र कर्क राशि में होकर अष्टम भाव में स्थित हो। - सूर्य सिंह राशि में होकर अष्टम भाव में स्थित हो। - बुध मिथुन या कन्या राशि का होकर अष्टमस्थ हो। - मकर या कुंभ राशि में स्थित शनि अष्टमस्थ हो। 3. गर्भस्राव या गर्भपात स्त्री गर्भ स्राव या गर्भपात के कारण निम्न योगों में संतानहीन होती है। - मंगल व शनि की युति चतुर्थ भाव में हो। - पंचमेश पापयुत या पाप दृष्ट हो। - सूर्य व शनि षष्ठ भाव में षष्ठेश के साथ हों तथा सप्तमस्थ चंद्र पर बुध की दृष्टि हो। - सूर्य व शनि की युति अष्टम भाव में हो। - चंद्र और शनि की दृष्टि अष्टम भाव में हो। - पंचमेश नीच राशि में हो तथा नवम भाव में पाप ग्रह हो। - चंद्र व शुक्र लग्न में मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ राशि में हो तथा षष्ठ भाव में पाप ग्रह हो। - पंचमेश षष्ठ भाव में हो तथा तृतीयेश पंचम या द्वादश भाव में हो। 4. मृतंवत्सत्व जिस स्त्री की संतान गर्भ में ही मर जाती हो या संतान होते ही मर जाती हो उसे मृतवत्सा कहा जाता है। यह योग इस प्रकार है- - सप्तम भाव में सूर्य व राहु हो तथा उन्हें शनि देखता हो। - गुरु व शुक्र की युति अष्टम भाव में हो। 5. संतानहीनता के योग - जिस स्त्री के लग्न में सूर्य और सप्तम में शनि हो तो वह संतानहीन होती है। - सप्तम भाव में सूर्य और शनि, दशम भाव में चंद्र और गुरु की दृष्टि हो तो भी संतान उत्पन्न नहीं होती है। - षष्ठ भाव में षष्ठेश, सूर्य एवं शनि हों और चंद्र सप्तम भाव में हो तथा बुध उन्हें न देखता हो तो संतानहीन योग होता है। - मंगल और शनि चतुर्थ या षष्ठ भाव में हो तो संतान नहीं होती है। - पंचम भाव में षष्ठ, अष्टम व द्वादश भावों के स्वामी हों तो संतान उत्पन्न नहीं होती है। - पंचमेश षष्ठ, अष्टम या द्वादश भावों में स्थित हो तो संतान पैदा नहीं होती है। - पंचमेश नीचराशिगत या अस्त हो तो स्त्री संतानहीन होती है। - पंचम भाव में कर्क, धनु, मकर या मीन राशि हो और चतुर्थ या पंचम भाव में गुरु स्थित हो तो संतान का अभाव रहता है। - लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश व गुरु निर्बल हों तो संतान नहीं होती है। पुरूष जातक संतानहीनता के निम्न योग पुरुष जातक की जन्मपत्रिका में पाए जाते हैं। - लग्न में मंगल, अष्टम भाव में शनि और पंचम भाव में स्थित सूर्य वंश विच्छेद कराते हैं। - तृतीयेश व चंद्र केंद्र व त्रिकोण में हो तो संतान नहीं होती। - पंचम भाव में मंगल, षष्ठ भाव में पंचमेश और सिंह राशिस्थ शनि हो तो संतान नहीं होती है। - लग्न व बुध दोनों लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव में हों तो संतान नहीं होती। - पंचम भाव में चंद्र तथा अष्टम, द्वादश भाव में समस्त पापग्रह हो तो भी संतान नहीं होती है। - पंचम भाव में गुरु, चतुर्थ भाव में पाप ग्रह और सप्तम भाव में शुक्र$बुध की युति होने पर संतान नहीं होती। - चतुर्थ भाव में कोई तीन पापग्रह, सप्तम भाव में शुक्र तथा दशम भाव में चंद्र स्थित हों तो संतानहीन योग निर्मित होता है। - पंचम, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव में पापग्रह का स्थित होना वंश-विच्छेद की निशानी होता है। - पंचमेश या सप्तमेश नीच राशिगत या अस्त हों तो भी संतान नहीं होती है। संतानहीनता निवारण 1. रविवार को ‘‘सुगंधा की जड़’’ एकवर्णा गाय के दूध के साथ पीसकर ऋतुकाल के समय (मासिक धर्म के समय) पीने से बन्ध्या दोष का निवारण होता है। 2. मासिक धर्म की शुद्धि के पश्चात ‘‘काली अपराजिता की जड़’ को जिस गाय ने प्रथम बछड़ा उत्पन्न किया हो उसके दूध के साथ पीसकर तीन दिन तक पीने के पश्चात पति सहवास करने पर बन्ध्या स्त्री भी अवश्य गर्भवती होती है। 3. नींबू के पुराने पेड़ की जड़ को दूध में पीसकर घी मिलाकर पीने से ‘‘पतिसहवास’’ द्वारा स्त्री को दीर्घायु पुत्र प्राप्त होता है। 4. जिस रविवार को कृतिका नक्षत्र हो उस दिन ‘‘पीत पुष्पा’’ की जड़ लाकर उसे पानी के साथ पीसकर सात दिन तक लगातार सेवन करने से उस स्त्री की संतान की मृत्यु नहीं होती है जिसे मृतवत्सा कहते हैं। 5. ‘‘पूर्वा फाल्गुनी’’ नक्षत्र में बरगद के पेड़ की जड़ लाकर लाल धागे में स्त्री बाएं भुजा में धारण करे तो संतान होती है। 6. नागरमोथा, कांगुनी, बेर, लाख का रस और शहद सम (बराबर) मात्रा में लेकर पुराने चावल के धोवन (चावल का धोया हुआ पानी) के साथ 10 ग्राम की मात्रा सात दिन तक सेवन करने से ‘‘बन्ध्या स्त्री’’ या ‘‘काकबन्ध्या स्त्री’’ संतान उत्पन्न करने में सक्षम होती है। 7. कदंब का पत्ता, श्वेत श्रीखंड चंदन, कटेरी की जड़ सब समान मात्रा में लेकर बकरी के दूध में पीसकर तीन रात्रि या पांच रात्रि ऋतुकाल के समय पीने से स्त्री अवश्य गर्भ धारण करती है तथा सुंदर और स्वस्थ संतान उत्पन्न करने में सक्षम होती है। 8. प्रथम बार बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध के साथ नागकेशर का चूर्ण मासिक धर्म की शुद्धि के पश्चात सात दिन पीने के पश्चात पति के साथ समागम करने से संतान अवश्य उत्पन्न होती है। गर्भपात हेतु निवारण 1. सतावर, काले तिल, पीपल की छाल इन तीनों की बराबर मात्रा गाय के दूध के साथ पीसकर सात दिन पीने से प्रथम व द्वितीय मास की गर्भ पीड़ा से मुक्ति होती है। 2. चंदन, कमल की जड़, केशर, असगंध, काकोली, तगर व कूट को बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी के साथ पीसकर पीने से तीसरे मास की गर्भ पीड़ा समाप्त हो जाती है। 3. तगर, नीलकमल, गदहपूर्णा, काकोली, गौखक यह सभी समान मात्रा में दूध के साथ पीसकर पीने से पांचवें मास की गर्भ पीड़ा शांत होती है। 4. कैंथ का गूदा ठंडे पानी में पीसकर दूध के साथ पीने से छठे मास की गर्भपीड़ा शान्त होती है। 5. नीलकमल की पंखुड़ी, सिंघोड़ा, कसेरू व पुष्कर समान मात्रा में पानी में पीसकर पीने से सातवें मास की गर्भ पीड़ा समाप्त होती है। 7. नीलकमल की पंखुड़ी, मुनक्का, छुआरा, पुरानी खांड बराबर मात्रा में दूध के साथ पीसकर पीने से दसवें मास की गर्भ की व्यथा दूर होती है। 8. आंवला, मुलहठी, सम मात्रा में दूध के साथ पीसकर पीने से गर्भ स्तंभन (गर्भ का रूकना) पूर्ण रूप से होता है, गर्भ गिरता नहीं है। 9. सिरस के बीज, देवदारू, मुलहठी काली गाय के दूध के साथ पीसकर पांच दिन तक पीने से गर्भ रक्षा होती है। 10. बांस के अंकुर से शिवलिंग का निर्माण कर पति-पत्नी दोनों मिलकर पूजन करें। 11. पति-पत्नी एक माह तक भोजन के पश्चात पीली वस्तु का भक्षण करें, दूसरे माह में दो-चार बार पीले वस्त्र धारण करें तथा तीसरे माह में श्रद्धानुसार पीली वस्तु व धन का दान करें। 12. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर पति-पत्नी अपने पास रखें।
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