ज्योतिष की अनेकों विद्याओं में से एक विद्या जैमिनी ज्योतिष भी है जिसे जैमिनी ऋषियों द्वारा उपदेश सूत्रों के रूप में दिया गया है यह विद्या पराशरीय प्रणाली से विभिन्न होते हुये भी काफी सटीक व सूक्ष्म फलित व गणित कर पाने में सक्षम है दक्षिण भारत में इस प्रणाली का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है इस जैमिनी ज्योतिषीय प्रणाली में कुछ अलग प्रकार के नियम व सिद्धांत रखे गये हैं जिनको समझ पाना थोड़ा दुष्कर प्रतीत होता है | कारकांश लग्न: जन्मपत्री में जिस ग्रह के अंश सबसे ज्यादा होते हैं उसे जैमिनी पद्धति में आत्मकारक कहा जाता है। यह आत्मकारक ग्रह नवांश कुंडली में जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को यदि हम लग्न मान लें तो वह कारकांश लग्न कहलाता है यह कारकांश लग्न जातक के विषय में काफी सही व सटीक जानकारी प्रेषित करता है। जहां जन्म कुंडली का लग्न यह बताता है कि हम क्या बनना चाहते हंै वही कारकांश लग्न यह बताता है कि हम वास्तव में क्या है। इस कारकांश लग्न के द्वारा जैमिनी सूत्रों में बहुत सी जानकारी दी गई है जो हमने अपने प्रयासों और अनुभवों में काफी सही पाई परन्तु थोड़े से आधुनिक रूप के संदर्भों में इसमें बदलाव भी करने पड़े जिससे फलित काफी सटीक प्राप्त हुआ है। आइये इस कारकांश से संबंधित कुछ जानकारियां प्राप्त करते हैं। कारकांश लग्न से प्रत्येक भाव की विवेचना जन्मपत्री के लग्न के समान ही की जाती है जैसे विवाह हेतु सप्तम भाव व आजीविका हेतु दशम भाव का ही अध्ययन किया जाता है। कारकांश लग्न में उपस्थित राशि निम्न तरह की प्रकृति बताती है। 1. मेषः जातक के जीवन में पशुओं का प्रभाव रहता है आधुनिक संदर्भ में इसे चल सम्पत्ति माना जा सकता है। 2. वृष: खेती, दुग्ध व्यवसाय, वाहन आदि से लाभ प्राप्ति। 3. मिथुनः त्वचा रोग, मोटापा, गायन व विचारक प्रवृत्ति। 4. कर्क: जल से प्रभावित रहने वाला। 5. सिंह: जीवन क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव रहेंगे। 6. कन्या: अग्नि से भय, त्वचा रोगी अथवा डाॅक्टर, गायक। 7. तुला: व्यापार करने वाला। 8. वृश्चिक: विषैली दवा से कष्ट प्राप्ति तथा माँ का सुख प्राप्त न करने वाला। 9. धनु: उठापटक तथा दण्ड प्राप्ति भरा जीवन पाने वाला। 10. मकर: दुष्टजनों से कष्ट प्राप्त कर परिवर्तन करता रहता है। 11. कुंभ: सबकी सहायता करने वाला तथा समाज को सुविधा प्रदान करता है। 12. मीन: मोक्ष का अभिलाषी व त्यागी प्रवृत्ति वाला। यदि राशि अनुसार प्रकृति देखे तो जातक का कारकांश लग्न उसकी सोच व उसकी विशेषता (फितरत) अवश्य उचित तरीके से बताता है। अब कारकांश लग्न में बैठे ग्रह का प्रभाव देखते हैं कि जब इस लग्न में ग्रह स्थित हो तो जातक कैसा होगा। 1. सूर्य: राजा अथवा सरकार का सेवक। 2. चंद्र और शुक्र: राजयोग वाला तथा सब भोगों को भोगने वाला। 3. मंगल: अग्नि, रसायन, आयुध कार्य चाहने वाला। 4. बुध: कलाकार, शिल्पकार, व्यापारी, बुनाई वाला, आई.ए.एस.। 5. गुरू: अध्यापक, मंत्री, उपदेशक, पण्डित प्रभाव वाला, वकील। 6. शनि: प्रसिद्ध, लोकप्रिय, परिवारिक व्यवसाय करने वाला, लेखक। 7. राहु: मशीनरी व इलेक्ट्राॅनिक्स कार्य करने वाला। 8. केतु: सूक्ष्म यंत्रों का जानकार, व्यवसायी, आध्यात्मिक व्यक्ति। कारकांश लग्न पर आधारित फल कथन - 1. कारकांश लग्न के 2, 12, 3, 11, 4, 10 या 5, 9 भावों में बराबर-बराबर संख्या में ग्रह हो तो व्यक्ति को कारावास होती है। 2. यदि कारकांश लग्न से चैथे भाव में, शुक्र और चंद्र हो, कोई उच्च का ग्रह हो, राहु और शनि हो तो जातक आलीशान मकान का स्वामी होता है। 3. कारकांश लग्न से नवम भाव में शुभ ग्रह हो या उसकी दृष्टि हो तो जातक अपने गुरूओं व बड़ों का आदर करने वाला, गुणवान व सत्यप्रिय होता है। (यहां दृष्टि जैमिनी वाली होनी चाहिये, पराशरीय नहीं)। 4. कारकांश लग्न से पांचवें भाव में गुरु हो तो भाषा का जानकार, केतु हो तो जातक गणितज्ञ होता है। 5. कारकांश लग्न से सप्तम में शनि हो तो पत्नी उम्र में बड़ी होती है, मंगल हो तो विकलांग तथा राहु हो तो तलाकशुदा अथवा विधवा हो सकती है। 6. कारकांश लग्न से दशम में बुध हो या बुध की दृष्टि हो तो जातक प्रसिद्धिवान होता है। 7. कारकांश लग्न पर सूर्य और शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सरकारी सेवा में होता है। 8. कारकांश लग्न से पंचम भाव में गुरु व चंद्र हो तो जातक ग्रंथों की रचना करता है। 9. कारकांश लग्न में केतु हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धर्मगुरु होता है। तंत्र-मंत्र की साधना करता है। 10. यदि कारकांश लग्न के द्वितीय भाव में केतु हो तो वाणी लडखड़ाती है (हकलाना, तुतलापन आदि) 11. कारकांश लग्न से केतु अष्टम में हो तो पैतृक संपत्ति नहीं मिलती है। कारकांश लग्न पर आधारित हमारे शोध द्वारा फलकथन: हमने अपने अनुभवों में कारकांश लग्न से कुछ अन्य तत्व भी पाये हैं आशा है हमारे पाठक इन पर अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार प्रकाश डालेंगे व शोध करेंगे। 1.कारकांश लग्न की राशि दशा हमेशा कष्ट प्रदान करती है। 2.कारकांश लग्न में केतु हो तो जातक विधवा स्त्री से विवाह करता है तथा व्यापारी होता है। 3.कारकांश लग्न में बुध हो तो जातक मूर्ति बनाने का कार्य सिखता है परंतु करता नहीं। 4.कारकांश लग्न में किसी भी भाव में सूर्य राहु की युति हो तो जातक सर्प भय से डरता रहता है तथा सांपों से खुद को डसा हुआ मानता है। 5.कारकांश लग्न से शनि केन्द्र में हो तो जातक प्रसिद्धि पाता है। 6.कारकांश लग्न से पंचम भाव पर शुक्र और गुरु की जैमिनी दृष्टि शास्त्रीय कला का ज्ञान अवश्य दिलाती है। 7.कारकांश लग्न का द्वितीय व ग्यारहवां भाव शुभ हो, बली हो तो जातक धनवान होता है। 8.कारकांश लग्न से बारहवां भाव बली हो तो जातक कमाता नहीं है।
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