आयु का निर्णय हस्तरेखा द्वारा और घटनाओं का समय जानना भी हस्तरेखा द्वारा जाना जा सकता है। पराशर ऋषि के अनुसार आयु गणना की लगभग 82 विधियां है। जन्म कुंडली विशेष के लिए किस विधि का उपयोग किया जाना चाहिए। इसका निर्णय ग्रहबल और भाव बल के द्वारा किया जाता है। जन्म से मृत्यु तक का समय आयु कहलाता है। इस आयु को भी हमारे ऋषि मुनियों ने अरिष्टायु, अल्पायु, मध्यायु, दीर्घायु, परमायु आदि में बांटा है। आयु निर्णय की विभिन्न विधियां हैं- अंशायु: इसका उपयोग लग्न बली होने पर किया जाता है। पिंडायु: सूर्य बली होने पर इस विधि का उपयोग किया जाता है। निसर्गायु: चंद्रमा जब बली हो तो इस विधि का उपयोग किया जाता है। भिन्नाष्टक वर्ग आयु: मंगल बली होने पर इस विधि का उपयोग किया जाता है। रश्मि आयुर्दाय: जब बुध बली हो तब प्रयोग करें। नक्षत्र आयु: गुरु के बली होने पर इस विधि का उपयोग किया जाता है। काल चक्र आयुर्दाय: जब शुक्र बली हो तो इस विध का उपयोग करते हैं। सर्वाष्टक वर्ग आयु: इस विधि का उपयोग शनि के बली होने पर किया जाता है। जैमिनी आयुर्दाय: आयु खंड के लिए जैमिनी आयुर्दाय में और भी विधियां है। वारायु: मानसागरी में जन्म के साप्ताहिक दिन के अनुसार स्थूल आयु का वर्णन है परंतु यह सटीक नहीं है। राश्यायु: जन्म राशि के अनुसार आयु का निर्णय मानसागरी में है। यह भी सटीक नहीं है। केन्द्रायु: केंद्रों में राशियों के अंकों का योग पर उसको उससे गुणा किया जाता है। उसके बाद जिस केंद्र में मंगल, शनि या राहु स्थित हो उस राशि के अंकों का गुणनफल से घटा लिया जाता है। जो शेष बचे वही आुय निर्णय है। अंश आयु: एक नवांश एक वर्ष की आयु प्रदान करता है अर्थात लग्न और प्रत्येक ग्रह जितने नवांश में स्थित होता है उतने ही वर्ष आयु प्रदान करता है। सभी ग्रह स्पष्ट और लग्न स्पष्ट को मिनटों में बदल दें और उसे 200 से (3°20श्) भाग दें जो भागफल आये वह लब्धि वर्ष होगा यदि भागफल 12 से अधिक आये तो उसे 12 से घटा दें। शेष को क्रमशः 12.30 को 60.60 से गुणा करके बार बार 200 से भाग देने पर मास दिन घटी पल मिलेगें। यदि ग्रह उच्च या वक्री हो तो उपरोक्त प्राप्त आयु को तीन से गुणा करेंगे। 2. यदि ग्रह वर्गोत्तम, स्वराशि या स्वदे्रष्काण हो तो प्रत्येक को दो से गुणा करेंगे। 3. यदि ग्रह उच्च का हो तो वर्गोत्तम या वक्री हो तो एक प्रकार की वृद्धि की जायेगी। आयु हानि के नियम आयु हानि (घटाना) निम्नलिखित नियमों से होगी। 1. चक्राद्धी हानि: चक्र का आधा भाग। जन्म कुंडली में 7वें भाव से लेकर 12वें भाव तक जो ग्रह स्थित हो उनमें चक्रार्द्ध हानि की जाती है। भाव 7वां 8वां 9वां 10वां 11वां 12वां अशुभ ग्रह पूर्ण घटाएं हानि शुभ ग्रह घटाएं यदि किसी भाव में एक से अधिक ग्रह हो तो जो ग्रह सबसे अधिक बली होगा उस ग्रह की हानि होगी। बाकी ग्रहों को नहीं घटाया जायेगा। अस्तंगत हरण: चक्राध हानि के बाद जो ग्रह अस्त हो उस ग्रह की प्राप्त आयु को आधा कर दिया जाता है। शुक्र एवं शनि की अस्तगत हानि नहीं होती। शत्रुक्षेत्री हरण: यदि कोई ग्रह अपने शत्रु की राशि में हो तो अस्तगत हरण के बाद बनी हुई आयु का भाग घटाया जाता है। यदि ग्रह वक्री और शत्रुक्षेत्री हो तो केवल अस्तगत हरण ही होगा। यदि मंगल ग्रह मकर राशि में स्थित है तो उसमें शत्रुक्षेत्री हरण नहीं होगा। क्रुरोदय हरण: जब कोई क्रुर ग्रह सूर्य, मंगल, शनि यदि लग्न में हो तो क्रुर ग्रह हरण होगा। क्रुर ग्रह साधन के लिए सबसे पहले लग्न स्पष्ट को (राशि छोड़कर) हरण करना है। मिनटों को शत्रु क्षेत्री हरण के बाद प्राप्त आयु को मिनटों से गुणा करेंगे तो 21600 मिनट अर्थात 360 अंश से भाग देंगे जो भागफल प्राप्त होगा वह उस ग्रह का क्रुर उदय ग्रह होगा। यदि किसी शुभ ग्रह की लग्न पर दृष्टि हो तो क्रुर उदय हरण आधे का होगा। यदि कोई शुक्र ग्रह लग्न में स्थित हो और वह लग्न के अंशों के समीप हो तो क्रुर उदय हरण आधा होगा। पिंड आयु ज्ञात करने की विधि: अपने उर्द्धव में रहने पर सूर्य के 19, चंद्रमा के 20, मंगल के 15, बुध के 12, गुरु के 15, शुक्र के 21 और शनि के 20 वर्ष होते हैं। यही पिंडायु है। स्वोत्वशुद्धो ग्रह शोध्य षडाश्यूषो भकण्डुलात। स्वपिण्डगुणितो भक्ता यादिमानने वारुराः।। अर्थात ग्रह स्पष्ट में से परमोच्च को घटा कर उस षडमाधिककर ले अर्थात 6 राशि से कम हो तो 12 से घटा कर शेष को लें और 6 राशि से अधिक हो तो यथावत लें उस शेष को ग्रह की आयु से गुणाकर के 12 से भाग देने पर वर्ष होते हैं। हानि वृद्धि संस्कार: वक्री ग्रह के शत्रुक्षेत्री संस्कार को छोड़कर शेष हानि वृद्धि संस्कार अंशायु की तरह गिने जायेंगे। ग्रह नक्षत्र स्वामी भोगांश इस में सूर्य , चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि अपने उच्च बिंदु पर आयु क्रमशः 20, 1, 2, 9, 18, 20 और 50 वर्ष देते हैं। नीच बिंदु पर इसका आधा वर्ष होता है। आयु की हानि पिंडायु की तरह ही होती है। यह विधि सभी कुंडलियों पर लागू नहीं की जाती। नक्षत्रायु: यह भी पिंडायु की तरह है अंतर यह है कि इसमें राहु-केतु भी सम्मिलित किये जाते हैं। सूर्य 6 वर्ष, चंद्र 10 वर्ष, मंगल 7 वर्ष, राहु 18 वर्ष, गुरु 16 वर्ष, शनि 19 वर्ष, बुध 17 वर्ष, केतु 7 वर्ष और शुक्र 20 वर्ष। इनकी विंशोत्तरी महादशा का समय होता है। यह आयु उच्च बिंदू पर होती है। नीच बिंदू पर इसकी आधीइसका भरण कोई नहीं होता, हरण पिंडायु की तरह ही होते हैं। जैमिनी मत से आयु विचार 1. लग्नेश - अष्टमेश 2. जन्म लग्न और चंद्रमा 3. जन्म लग्न और होरा लग्न। इन तीनों से भी आयु का विचार किया जाता है। दीर्घायु मध्यायु अल्पायु लग्नेश चर राशि लग्नेश चर राशि लग्नेश चर राशि अष्टमेष चर राशि लग्नेश चर राशि लग्नेश चर राशि लग्नेश स्थिर राशि लग्नेश स्थिर राशि लग्नेश स्थिर राशि अष्टमेश द्विस्वभाव राशि अष्टमेश चर राशि अष्टमेश स्थिर राशि लग्नेश मृत्यु के कारण यदि अष्टम भाव में कोई ग्रह हो और अष्टम भाव पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो मृत्यु अष्टम भाव के स्वामि के स्वभाव के कारण होगी। अष्टम भाव यदि जिस ग्रह में हो मृत्यु त्रिदोष से संबंधित मृत्यु होगी। स्वामी त्रिदोष (वात पित्त कफ) सूर्य पित्त चंद्रमा वात तथा कफ मंगल पित्त बुध पित्त और कफ गुरु कफ शुक्र वात तथा कफ यदि अष्टम भाव में ग्रह स्थित हो अथवा अष्टम भाव पर उनकी दृष्टि हो तो उनमें सर्वाधिक बली ग्रह के कारण उससे संबंधित बीमारी के कारण मृत्यु होगी। सूर्य: आग का द्योतक है इसलिए ज्वर से मृत्यु। चंद्रमा: जल का कारक है । हैजा, पेचिश, रक्तदोष, डूबना आदि से मृत्यु संभव। मंगल: दुर्घटनाएं, अरत्रघात, हैजा, पलेग आदि। बुध: मस्तिष्क ज्वर, चेचक गुरु: कोई भी बीमारी जो ठीक से पहचानी न जाए शुक्र: अत्यधिक मद्यपान शनि: भूख अथवा अधिक जोजन करने से मृत्यु। यदि अष्टम भाव में दो से अधिक ग्रह हो तो दो बीमारियां भी हो सकती है। यदि अष्टम भाव में चर राशि हो तो मृत्यु घर से दूर। यदि राशि स्थिर हो तो घर में यदि द्विस्वभाव में राशि हो तो मृत्यु घर के समीप, अस्पताल आदि में हो सकती है। मृत्यु को जानने के लिए चंद्रमा यदि मेष में 26, वृष में 12, मिथुन में 13, कर्क में 25, सिंह में 24, कन्या में 14, तुला में 4, वृश्चिक में 23, धनु में 18, मकर में 20, कुंभ में 21, मीन में 10 अंश हो तो मृत्यु योग है। इस प्रकार लग्न में मेष 80, वृषभ 90, मिथुन 220, कर्क 220, सिंह 250, कन्या 140, तुला 40, वृश्चिक 230, धनु 180, मकर 200, कुंभ 270, मीन 100 में हो तो मृत्यु योग होता है। इसके अतिरिक्त शीघ्र मृत्यु के निम्नलिखित योग हैं केंद्र अष्टम में कई पाप ग्रह हो। लग्न अष्टम या लग्न सप्तम में कई पाप ग्रह हो लग्न या चंद्रमा पाप मध्य में हो। निर्बल चंद्रमा 6,8,12 में हो। क्षीण या पाप चंद्रमा 1, 7, 9, 5 भावों में हो। 7, 8 भावों में कई पाप ग्रह हों। इन योगों के रहने पर केंद्र में कोई शुभ ग्रह न हो या लग्न चंद्रमा पर शुभ दृग्योग न हो तो शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। मृत्यु निर्णय करने के लिए मारक का ज्ञान कर लेना चाहिए। लग्नेश, षष्टेश, अष्टमेश, गुरु और शनि इनके संबंध से मारकेश का विचार किया जाता है। 1.अष्टमेश बली होकर 3,4,6,10,12 स्थानों में हो तो मारक होता है। 2.लग्नेश से अष्टमेश बलवान हो तो अष्टमेश की अंतर्दशा मारक होती है। 3.शनि षष्टेश अथवा अष्टमेश होकर लग्नेश को देखता हो तो लग्नेश भी मारक हो जाता है। 4.अष्टमेश सप्तम भाव में बैठकर पाप ग्रह की दशा-अंतर्दशा में मारक होता है। 5.मंगल की दशा में शनि और शनि की दशा में मंगल रोग देता है। 6.अष्टमेश चतुर्थ स्थान में शत्रुक्षेत्री हो तो मारक बन जाता ह। 7. द्वितीया और सप्तम स्थान मारक है। इन दोनों के स्वामी द्वितीया और सप्तम में रहने वाले पाप ग्रह मारकेश बन जाते हैं। 8..शनि यदि मारकेश के साथ हो तो मारकेश को हटाकर स्वयं मारक बन जाता है। 9.द्वादशेश भी पाप ग्रह होने से मारक बन जाता है। 10.राहु या केतु 1,7,8,12 भावों में हो अथवा मारकेश से 7वें भाव में या मारकेश के साथ हो तो मारक होते हैं। 11.मकर और वृश्चिक लग्न वालों के लिए राहु मारक है। 12.अष्टम भाव आयु का भाव है। शनि गोचर से मृत्यु शनि-गुरु सूर्य चंद्र स्पष्ट को जोड़े - इस जोड़ से जो राश्यांश मिले उन राश्यांशों पर जब शनि गोचर करे तो कष्ट कारक। अल्पायु योग में पहली बार, मध्यायु योग में दूसरी बार तथा दीर्घायु योग में तीसरी बार । उक्त राश्यांशों में शनि का गोचर हो तब मृत्यु होती है। दशान्तर्दशा शुभ हो तो मृत्यु तुल्य कष्ट अर्थात दुर्घटना, अपमान हो सकता है। शन्याष्टक के शोध्यपिंड को शनि के अष्टम राशि की शून्याष्टक रेखाओं से गुणा कर 27 से भाग देने पर शेष संख्यक नक्षत्र में शनि या गुरु गोचर करे तो स्वयं की मृत्यु संभव है। इनके त्रिकोण नक्षत्र भी मृत्यु कारक हो सकते हैं। हस्तरेखा द्वारा मृत्यु का कारण हस्तरेखा के माध्यम से भी मृत्यु को काफी हद तक जाना जा सकता है कि व्यक्ति की मृत्यु किस कारण से होगी। दुर्घटना से, बीमारी से कत्ल से, आत्महत्या से, गोली लगने से या किसी अन्य कारणों से। दुर्घटनावश मृत्यु के लक्षण: जीवन रेखा मोटी हो, मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो या गहरी हो काली या खंडित हो साथ ही दोनों हाथों की मस्तिष्क रेखाओं में द्वीप हो या टूटी हो शनि की उंगली के नीचे तिल ाहे। भाग्य रेखा मोटी हो तथा जीवन रेखा को काटती हुई कई रेखाएं हो तो मृत्यु दुर्घटना से होती है। हवाई दुर्घटना के लक्षण: जीवन रेखा के साथ यदि कोई अन्य जीवन रेखा हो और वह दोनों आपस में मिल जाये तथा बड़े द्वीप की आकृति बना ले तो व्यक्ति की हवाई दुर्घटना होती है। बीमारी के कारण मृत्यु: वैसे जो अनेक बीमारी से मृत्यु के कारण होते हैं परंतु यहां स्वास्थ्य बिगड़ने से मृत्यु का कारण होता है। जीवन रेखा यदि अन्य रेखाओं से मोटी हो तथा हथेली पर बड़े-बड़े काले धब्बे हो। मंगल रेखा को मोटी रेखाएं काटती हो। भाग्य रेखा में त्रिकोण बनते हो, मस्तिष्क रेखा मोटी, पतली या जंजीरनुमा हो। अंगूठा आगे की तरफ झूकता हो स्वास्थ्य रेखा टूटी हो तो व्यक्ति की बीमारी से मृत्यु होती है। घटनाओं का हस्तरेखा द्वारा कीरो की सप्तवर्षीय नियम को काफी ठीक पाया गया है। कीरो जीवन रेखा और शनि रेखा सप्तवर्षीय नियम के अनुसार बांटते हैं। मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा पर वह आयु संबंधी निशान नहीं लगाते बल्कि छोटी मस्तिष्क रेखा का अर्थ मस्तिष्क का कम विकास और छोटी रेखा का अर्थ कम भावुकता मानते हैं। वे बुध रेखा और सूर्य रेखा पर शनि रेखा के आयु संबंधी नियम लागू करते हैं। मंगल रेखा , जीवन रेखा की समानांतर रेखा है। उसमें वे जीवन रेखा का आयु संबंधी नियम लागू करते हैं। जीवन रेखा का आरंभ गुरु पर्वत के नीचे है और समापन कलाई के निकट है। अतः बचपन के वर्षों का हाल आरंभ स्थान से देखें। रेखा के मध्य भाग से यौवन का और कलाई के नीचे बुढापा का हाल ज्ञात होता है। जीवन रेखा पर उम्र संबंधी निशान लगाने की सरल विधि है कि शुक्र पर्वत के केंद्र से एक तिरछी रेखा छोटी उंगली कनिष्ठका की जड़ के बाहरी भाग तक लगाये। यह रेखा जिस स्थान पर जीवन रेखा को काटती है वह 35 वर्ष का समय है। दूसरी आड़ी रेखा शुक्र पर्वत के केंद्र से हथेली के दूसरे किनारे पर सीधी लगाई जाती है। यह रेखा जीवन रेखा को जिस भाग पर काटती है वह 49 वर्ष है। तीसरी रेखा शुक्र पर्वत केंद्र के कलाई की ऊपरी रेखा के किनारे तक लगाई जाती है। यह रेखा जिस स्थान पर जीवन रेखा को काटती है वह 63 वर्ष की आयु है। जीवन रेखा के अंतिम भाग पर 98 वर्ष की आयु है। 0 से 98 वर्ष के मध्य के जीवन रेखा के तीनों निश्चत समय का ज्ञात हो जाता है।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment