तर्जनी अनामिका दोनों ही अगर मध्यमा की ओर झुकी हों, तो व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त रखने में असमर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं, सतर्कता भी इनमें होती है, परन्तु किसी पर विश्वास नहीं करते। अंगुलियां सीधी हों और गाँठ रहित हों, तर्जनी और मध्यमा तथा अनामिका और कनिष्ठा की दूरी का समान अन्तर होने पर व्यक्ति प्रत्येक के साथ व्यवहार कुशल होते हुए भी ज्यादा सतर्क नहीं रहता और न ही किसी पर शंका करता है। समाज में हर प्रकार के मनुष्यों के साथ सूझ-बूझ से कार्य करने कीं क्षमता रखता है। तर्जनी और मध्यमा की दूरी अनुपात से ज्यादा होने पर व्यक्ति की विचारधारा स्वतन्त्र होती है और जीवनयापन के लिए उनका मार्ग भिन्न होता है। इन्हें नेता भी कहा जा सकता है। यही दूरी कम होने पर विचारों में संकीर्णता आ जाती है, और स्वतन्त्रता भी कम हो जाती है। यदि अनामिका और मध्यमा के बीच का अन्तर अधिक हो तो परिस्थितियों की आजादी होती है। ये किसी ऋतु के दास नहीं होते, इन्हें पैसों की परवाह नहीं होती, समाज में ये समाज सुधारक नाम से जाने जाते हैं। अनामिका और मध्यमा की लम्बाई बराबर होने पर नये उद्योग धन्धे करके अनेक तरह का खतरा मोल ले सकते हैं। कभी-कभी इन्हें फायदा भी होता है, जुआ खेलना और अपनी जीत पर खुश होना इनका पहला काम होता है। छोटी अंगुलियों वालों के स्वभाव में शीघ्रता या जल्दबाजी होती है। ये दिखावे की परवाह न करके समस्याओं का तत्काल निर्णय कर डालते हैं। बातचीत में इन्हे मुंहफट भी कहा जा सकता है। छोटी-छोटी बातों पर ये ध्यान नहीं देते हैं।अंगुलियाँ बेडौल हों एवं छोटी हों तो ऐसे व्यक्ति प्रायः स्वार्थी एवं क्रूर कहे जाते हैं। अंगुलियाँ अगर तनी हुई हों, उनमें लोच न हो अन्दर की ओर मुड़ी हो या संकुचित हों, तो व्यक्ति कम बोलने वाला तथा कम मेल-जोल रखने वाला, कायर और अधिक सावधानी बरतने वाले होते हैं। अगर अंगुलियाँ धनुष के समान पीछे मुड़ने वाली हों तो व्यक्ति का स्वभाव आर्कषक और सौम्य होगा। उसमें मित्रता का गुण पाया जाता है। इन्हें सामान्य ज्ञान की जिज्ञासा होती है तथा समाज में हृदयस्पर्शी होते है। अंगुलियाँ टेढ़ी -मेढ़ी एवं बेडौल सी होंगी, तो व्यक्ति धोकेबाज गलत रास्ते का अनुयायी विकृत मस्तिष्क का स्वामी एवं निन्दक होता है। अच्छे हाथ पर इस प्रकार की अंगुलियाँ कम ही पायी जाती है। अंगुलियों के पोर पर अंदर की ओर मांश की गद्दी हो तो वह व्यक्ति अत्यन्त सवंदेनशील ओर व्यवहारकुशल होगा तथा हर क्षेत्र में सहयोग मिलता है। अंगुलियाँ अगर मूल स्थान पर मोटी हों तो व्यक्ति खाने-पीने का शौकीन और आरामतलबी होता है तथा वेहद शौकीन होता है। मूल स्थान पर पतली अंगुलियों का स्वामी स्वतः के स्वार्थ में लापरवाह होता है, खान-पान, रहन-सहन में सावधानी रखता है तथा मनपसंद वस्तुओं का प्रयोग करता है। अनामिका और तर्जनी की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति में अपनी कला के द्वारा धन और यश कमाने की महत्वाकांक्षा होती है। वह चाहता है कि विश्व भर में विख्यात हो जाये। हथेली की लम्बाई से अधिक लम्बी अंगुलियां होगी, तो उसे लम्बी अंगुलियों की संज्ञा दी जाती है। अनामिका और कनिष्ठा की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति बोलचाल और भाषण कला में कुशल होता है। अनामिका और मध्यमा की समान लम्बाई हो तो ऐसे व्यक्ति जुआड़ी होते हैं साथ ही जीवन के साथ खिलवाड़ कर जाते हैं, ऐसे व्यक्तियों की अलग ही दुनिया होगी, तथा ये व्यक्ति जुए में लाभ कमाते हैं एवं पैसों के सौदे में हमेशा जीत होती है। तर्जनी बहुत ज्यादा लम्बी हो तो ऐसे व्यक्ति किसी के कहने सुनने में नहीं होते ऐसे व्यक्ति शूरबरी भी कहे जा सकते हैं या शासक कहे जा सकते हैं। अनामिका का लम्बा होना काम तत्व को प्रदर्शित करता है। कनिष्ठा का काम भी अनामिका की भांति ही है वह उत्तेजनाओं को दमन न करके उसका परिशमन कर लेती है और वे अपनी शक्ति व्यापार, काम-काज और बौद्धिक कार्यों में खर्च करते हैं। कनिष्ठा यदि मुड़ी हुई हो तो व्यक्ति धूर्त और चालाक होता है यह अंगुली व्यक्ति के गुणों का मूल्यांकन करने वाली होती है। चारो अंगुलियों का इकट्ठी करने पर उसमें बारीक छेद नजर आता है, इसमें तर्जनी की ओर से तीन छिद्र होते हैं। पहला छिद्र विचार स्वतंत्र को स्पष्ट करता है, दूसरा लापरवाही को, तीसरा महत्वाकांक्षा को ।
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