यदि हृदय-रेखा एक डंडे की भाँति सारी हथेली पर आर-पार हो व शीर्ष-रेखा भी ऐसी ही हो, तथा दोनों रेखा गहरी और लाल हों एवं मंगल-क्षेत्र बहुत उन्नत हो तो ऐसा व्यक्ति हिंसक होता है और दूसरे के प्राण भी ले सकता है ।यदि ह्रदय-रेखा पीलापन लिए हुए और चौड़ी हो, और प्रभाव-रेखा शुक-क्षेत्र से आकर बुध-क्षेत्र या मंज्जाल के प्रथम क्षेत्र पर रुके तो विषय-वासना अधिक होती है । यदि शुक्र मेखला कीदो रेखा हो, या टूटी हो तो अत्यधिक इर्षा के कारण ऐसे व्यक्ति में हिंसात्मक प्रवृत्ति भी हो सकती है ।यदि हृदय-रेखा अत्यधिक गहरी हो, शुक्र-मेखला बहुत स्पष्ट हो और चन्द्रक्षित्र विस्मृत और उन्नत हो या उस पर बारीक-बारीक बहुत-सी रेखा हों तो अत्यन्त ईष्ठर्या के कारण ऐसे जातक की विचार-शक्ति कुंठित हो जाती है और वह ऐसे काम कर बैठताहै जिनसे विपत्ति में फँसता है । यदि हृदय-रेखा दुर्बल और अस्पष्ट हो और शीर्ष-रेखा भी दुर्बल तथा क्षीणा हो तो ऐसा जातक विस्वास करने योग्य नहीं । वैवाहिक जीवन में भी उचित रास्ते से डिगा जाता है । यदि हृदय-रेखा श्रृंखलाकार हो या अस्पष्ट हो और शीर्ष-रेखा भी ऐसे ही हो, शुक-क्षेत्र उन्नत और विस्मृत हो या उस पर आड़ी काटने वाली बहुत-सी रेखा हो तो ऐसे पुरुष सदैव अन्य स्त्रियों से सम्बन्ध करने के इच्छुक रहते है या उनके अनेकों सम्बन्ध हो चुके होते है । स्त्रियों के सम्बन्ध में भी यहीं समझना चाहिये ।
भाग्य-रेखा ह्रदय-रेखा को जहाँ काटे, हृदय-रेखा का वह भाग यदि श्रृंखलाकार हो तो समझना चाहिए कि ह्रद्रोग अथवा दुखान्त प्रेमाधिक्य के कारण जातक के भाग्योदय तथा वृति में विघ्न पड गया ।
हृदय-रेखा के उद्गम-स्यान तथा प्रारम्भ में निकली हुई शाखा
भारतीय मतानुसार तो यह रेखा कनिष्ठिका के मूल से (छोटी ऊँगली के नीचे बुध-क्षेत्र के बायी बगल से) निकलकर तर्जनी-मूल (गुरु-क्षेत्र) की ओर जाती है । किन्तु पाश्चात्य मतानुसार बिलकुल उलटा, कनिष्ठिका मूल में इसका अन्त और दाहिनी ओर (गुरु-क्षेत्र किंवा शनि-क्षेत्र पर) इसका प्रारम्भ माना जाता है ।
(१) पाश्चात्य मतानुसार यदि तर्जनी के तृतीय पर्व से (पोरवे के अन्दर से) यह प्रारम्भ हो तो जीवन में सफलता नहीं मिलती । जब हथेली की रेखायें उंगली के अन्दर से प्रारम्भ हो या ऊँगली के अन्दर पहुँच जावें तो गुण नहीं प्रत्युत अवगुण समझना चाहिए । इसका कारण यह है कि जिस ग्रह-क्षेत्र के ऊपर उगली है उस ग्रह का प्रभाव, रेखा पर इतना अधिक हो जाता है कि वह 'अति' मात्रा अवगुण हो जाती है । 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' सीमा से बाहर कोई वस्तु अच्छी नहीं होती । यदि उँगलियाँ अति लम्बी हों तो भी अच्छा नहीं, ग्रह-क्षेत्र अति उन्नत हो तो उनका अनिष्ट प्रभाव होता है । अति सौन्दर्य-प्रिय में अति कामुकता आ जाती है । अति धार्मिक सांसारिक जीविका-उपार्जन के साधनों में चतुर नहीं होते । इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिए ।
(२) यदि बृहस्पति के क्षेत्र के अन्दर-ऊपर की और से हृदय-रेखा प्रारम्भ हो और प्रारम्भ में कोई शाखा न हो तो ऐसे व्यक्ति आदर्श-प्रेमी होते है । उनमें कामुकताजन्य वासना की प्रधानता नहीं होती । (यह लक्षण है, अन्य लक्षणों से यह देख लेना चाहिए कि सम्पूर्ण प्रकृति किस प्रकार की होगी । ) इस प्रकार की हृदय-रेखा वालों के प्रेम में आदर्शवादिता अधिक होती है ।
(३) किन्तु यदि यहीं रेखा बृहस्पति-क्षेत्र के मध्य से प्रारम्भ हो और आरम्भ में एक ही शाखा हो तो भी गभीर और दृढ़ प्रेम-प्रकृति का जातक होता है । ऐसे व्यक्ति में प्रेमाधिक्य और आदर्शवाद दोनो समान रूप से रहते है ।
(४) यदि हृदय-रेखा बृहस्पति के क्षेत्र को अर्धवृत्त की तरह आधी ओर से घेर ले तो ऐसे व्यक्ति में प्रेमाधिक्य के कारण इर्षा की मात्रा तीव्र होगी । बहुत से पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि ऐसी ह्रदय-रेखा यह प्रकट करती है कि जातक दार्शनिक और गुप्त विद्याओं का विशेष प्रेमी है
(५) यदि हृदय-रेखा गुरु क्षेत्र और शनि-क्षेत्र के बीच के भाग से प्रारम्भ हो तो यह भी स्थिर प्रेम प्रकट करती है । ऐसे व्यक्ति न तो प्रेम के तूफान में बहते है न किसी किनारे ही बैठे रहते है । उनके प्रेम में विशेष उल्लास और तन्मयता नही होती, न निराशा और विरह उन्हें अधिक पीडित करते है ।
(६) यदि यही रेखा तर्जनी और मध्यमा के बीच के भाग से प्रारम्भ हो तो ऐसा जातक आजीवन कठिन परिश्रम करने वाला होता है । कठिनाइयों का सामना करने में ही उसका जीवन जाता है । प्रेम की भावना हृदय में दबी रहती है ।
भाग्य-रेखा ह्रदय-रेखा को जहाँ काटे, हृदय-रेखा का वह भाग यदि श्रृंखलाकार हो तो समझना चाहिए कि ह्रद्रोग अथवा दुखान्त प्रेमाधिक्य के कारण जातक के भाग्योदय तथा वृति में विघ्न पड गया ।
हृदय-रेखा के उद्गम-स्यान तथा प्रारम्भ में निकली हुई शाखा
भारतीय मतानुसार तो यह रेखा कनिष्ठिका के मूल से (छोटी ऊँगली के नीचे बुध-क्षेत्र के बायी बगल से) निकलकर तर्जनी-मूल (गुरु-क्षेत्र) की ओर जाती है । किन्तु पाश्चात्य मतानुसार बिलकुल उलटा, कनिष्ठिका मूल में इसका अन्त और दाहिनी ओर (गुरु-क्षेत्र किंवा शनि-क्षेत्र पर) इसका प्रारम्भ माना जाता है ।
(१) पाश्चात्य मतानुसार यदि तर्जनी के तृतीय पर्व से (पोरवे के अन्दर से) यह प्रारम्भ हो तो जीवन में सफलता नहीं मिलती । जब हथेली की रेखायें उंगली के अन्दर से प्रारम्भ हो या ऊँगली के अन्दर पहुँच जावें तो गुण नहीं प्रत्युत अवगुण समझना चाहिए । इसका कारण यह है कि जिस ग्रह-क्षेत्र के ऊपर उगली है उस ग्रह का प्रभाव, रेखा पर इतना अधिक हो जाता है कि वह 'अति' मात्रा अवगुण हो जाती है । 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' सीमा से बाहर कोई वस्तु अच्छी नहीं होती । यदि उँगलियाँ अति लम्बी हों तो भी अच्छा नहीं, ग्रह-क्षेत्र अति उन्नत हो तो उनका अनिष्ट प्रभाव होता है । अति सौन्दर्य-प्रिय में अति कामुकता आ जाती है । अति धार्मिक सांसारिक जीविका-उपार्जन के साधनों में चतुर नहीं होते । इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिए ।
(२) यदि बृहस्पति के क्षेत्र के अन्दर-ऊपर की और से हृदय-रेखा प्रारम्भ हो और प्रारम्भ में कोई शाखा न हो तो ऐसे व्यक्ति आदर्श-प्रेमी होते है । उनमें कामुकताजन्य वासना की प्रधानता नहीं होती । (यह लक्षण है, अन्य लक्षणों से यह देख लेना चाहिए कि सम्पूर्ण प्रकृति किस प्रकार की होगी । ) इस प्रकार की हृदय-रेखा वालों के प्रेम में आदर्शवादिता अधिक होती है ।
(३) किन्तु यदि यहीं रेखा बृहस्पति-क्षेत्र के मध्य से प्रारम्भ हो और आरम्भ में एक ही शाखा हो तो भी गभीर और दृढ़ प्रेम-प्रकृति का जातक होता है । ऐसे व्यक्ति में प्रेमाधिक्य और आदर्शवाद दोनो समान रूप से रहते है ।
(४) यदि हृदय-रेखा बृहस्पति के क्षेत्र को अर्धवृत्त की तरह आधी ओर से घेर ले तो ऐसे व्यक्ति में प्रेमाधिक्य के कारण इर्षा की मात्रा तीव्र होगी । बहुत से पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि ऐसी ह्रदय-रेखा यह प्रकट करती है कि जातक दार्शनिक और गुप्त विद्याओं का विशेष प्रेमी है
(५) यदि हृदय-रेखा गुरु क्षेत्र और शनि-क्षेत्र के बीच के भाग से प्रारम्भ हो तो यह भी स्थिर प्रेम प्रकट करती है । ऐसे व्यक्ति न तो प्रेम के तूफान में बहते है न किसी किनारे ही बैठे रहते है । उनके प्रेम में विशेष उल्लास और तन्मयता नही होती, न निराशा और विरह उन्हें अधिक पीडित करते है ।
(६) यदि यही रेखा तर्जनी और मध्यमा के बीच के भाग से प्रारम्भ हो तो ऐसा जातक आजीवन कठिन परिश्रम करने वाला होता है । कठिनाइयों का सामना करने में ही उसका जीवन जाता है । प्रेम की भावना हृदय में दबी रहती है ।
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