(१) यदि हृदय-रेखा श्रीन्ख्लाकर हो तो समझिये हृदय अपना काय अच्छी तरह नहीं कर रहा है । अनुचित प्रेम-सम्बंध की प्रवृति रहती है ।
(२) यदि यह रेखा पीली, चौडी तथा श्रीन्खलाकार हो तो ऐसा व्यक्ति दुष्टतापूर्वक भी अपनी अभिलाषा-पूमि में नहीं हिचकता । सुन्दर हृदय-रेखा पारस्परिक आकर्षण द्वारा प्रेम उत्पन्न करती है । परन्तु- इस प्रकार की दोषयुक्त हृदय-रेखा नीच वृति प्रकट करती हैं ।
(३) यदि हृदय-रेखा श्रृंखलाकार हो और बीच में शनि-क्षेत्र की ओर झुकी हुई हो तो ऐसे पुरुषों को स्त्रियों की, तथा स्त्रियों को पुरुषों की कोई परवाह नही रहती । यदि हाथ के अन्य लक्षण अच्छे हों तो यह प्रकट करते है कि एकान्तवास की भावना प्रबल होने के कारण ऐसे व्यक्ति सामाजिक सुख की ओर प्रवृत्त नहीं होते । किन्तु हाथ के अन्य लक्षण अच्छे न हों तो इस प्रकार की रेखा वाले अप्राकृतिक अवगुणों की ओर सुंप्तते है यह संकेत समझना चाहिये ।
(४) यदि यह रेखा सुन्दर, लम्बी और अपने उचित स्थान पर हो और अँगूठे का पहला पर्व मज़बूत हो तो अपनी ही पत्नी, या अपने ही पति तक प्रेम सीमित रहता है । किन्तु यदि अंगूठे का प्रथम पर्व मज़बूत न हो तो ऐसा नहीं होता । अपने हृदय पर संयम नहीं रहता ।
(५) यदि हृदय-रेखा और शीर्ष-रेखा दोनों अच्छी हो और जीवन-रेखा जहाँ समाप्त होती है उस पर त्रिकोण चिह्न हो तो ऐसा जातक चतुर तथा व्यवहार-कुशल होता है ।
(६) किन्तु ऊपर निर्दिष्ट स्थान पर त्रिकोण तो हो किन्तु हृदय-रेखा तथा शीर्ष-रेखा खराब हों (लहरदार-कहीं गहरी, कहीं हलकी अदि दोषयुक्त) तो ऐसे व्यक्तियों की वाणी में कटुता और दूसरों की निन्दा करने की प्रवृत्ति होती है ।
(७) यदि हृदय-रेखा अच्छी और बलिष्ठ हो और चन्द्र तथा शुक के क्षेत्र विशेष रूप से विस्मृत और उन्नत हो तो नवीन-नवीन स्नेह-सम्बन्ध स्थापित करने की आकांक्षा और प्रेमालुता ।
(८) यदि हृदय-रेखा बहुत बडी हो, शुक्र-मेखला का चिह्न स्पष्ट हो और चंद्र-क्षेत्र उच्च हो या उस पर बहुत सी बारीक-बारीक रेखा हो तो जातक में अत्यधिक ईष्ठर्यालुता होती है ।
(९) यदि हृदय-रेखा तथा शीर्ष-रेखा अच्छी न हों और उनके बीच का स्थान सकड़ा हो, उगलियाँ चिकनी हो (अर्थात्गां उन्नत न हों) और ग्रेगुष्ठ का प्रथम पर्व छोटा हो तो ऐसे व्यक्ति के चित्त में मुस्तकिल-मिजाजी (एक विचार पर दृढ़ रहना) नहीं होती है और वह संकल्प-विकल्प किया करता है ।
(१०) यदि हृदय-रेखा खराब हो और शीर्ष-रेखा जीवन-रेखा के प्रारम्भ के भाग से न निकलकर ऊपर बृहस्पति के क्षेत्र से प्रारम्भ हुई हो तो अपनी अपेक्षा अत्यधिक उच्चकुल में विवाह की महत्वाकांक्षा रखने के कारण जातक को दुख और निराशा प्राप्त होती है ।
(२) यदि यह रेखा पीली, चौडी तथा श्रीन्खलाकार हो तो ऐसा व्यक्ति दुष्टतापूर्वक भी अपनी अभिलाषा-पूमि में नहीं हिचकता । सुन्दर हृदय-रेखा पारस्परिक आकर्षण द्वारा प्रेम उत्पन्न करती है । परन्तु- इस प्रकार की दोषयुक्त हृदय-रेखा नीच वृति प्रकट करती हैं ।
(३) यदि हृदय-रेखा श्रृंखलाकार हो और बीच में शनि-क्षेत्र की ओर झुकी हुई हो तो ऐसे पुरुषों को स्त्रियों की, तथा स्त्रियों को पुरुषों की कोई परवाह नही रहती । यदि हाथ के अन्य लक्षण अच्छे हों तो यह प्रकट करते है कि एकान्तवास की भावना प्रबल होने के कारण ऐसे व्यक्ति सामाजिक सुख की ओर प्रवृत्त नहीं होते । किन्तु हाथ के अन्य लक्षण अच्छे न हों तो इस प्रकार की रेखा वाले अप्राकृतिक अवगुणों की ओर सुंप्तते है यह संकेत समझना चाहिये ।
(४) यदि यह रेखा सुन्दर, लम्बी और अपने उचित स्थान पर हो और अँगूठे का पहला पर्व मज़बूत हो तो अपनी ही पत्नी, या अपने ही पति तक प्रेम सीमित रहता है । किन्तु यदि अंगूठे का प्रथम पर्व मज़बूत न हो तो ऐसा नहीं होता । अपने हृदय पर संयम नहीं रहता ।
(५) यदि हृदय-रेखा और शीर्ष-रेखा दोनों अच्छी हो और जीवन-रेखा जहाँ समाप्त होती है उस पर त्रिकोण चिह्न हो तो ऐसा जातक चतुर तथा व्यवहार-कुशल होता है ।
(६) किन्तु ऊपर निर्दिष्ट स्थान पर त्रिकोण तो हो किन्तु हृदय-रेखा तथा शीर्ष-रेखा खराब हों (लहरदार-कहीं गहरी, कहीं हलकी अदि दोषयुक्त) तो ऐसे व्यक्तियों की वाणी में कटुता और दूसरों की निन्दा करने की प्रवृत्ति होती है ।
(७) यदि हृदय-रेखा अच्छी और बलिष्ठ हो और चन्द्र तथा शुक के क्षेत्र विशेष रूप से विस्मृत और उन्नत हो तो नवीन-नवीन स्नेह-सम्बन्ध स्थापित करने की आकांक्षा और प्रेमालुता ।
(८) यदि हृदय-रेखा बहुत बडी हो, शुक्र-मेखला का चिह्न स्पष्ट हो और चंद्र-क्षेत्र उच्च हो या उस पर बहुत सी बारीक-बारीक रेखा हो तो जातक में अत्यधिक ईष्ठर्यालुता होती है ।
(९) यदि हृदय-रेखा तथा शीर्ष-रेखा अच्छी न हों और उनके बीच का स्थान सकड़ा हो, उगलियाँ चिकनी हो (अर्थात्गां उन्नत न हों) और ग्रेगुष्ठ का प्रथम पर्व छोटा हो तो ऐसे व्यक्ति के चित्त में मुस्तकिल-मिजाजी (एक विचार पर दृढ़ रहना) नहीं होती है और वह संकल्प-विकल्प किया करता है ।
(१०) यदि हृदय-रेखा खराब हो और शीर्ष-रेखा जीवन-रेखा के प्रारम्भ के भाग से न निकलकर ऊपर बृहस्पति के क्षेत्र से प्रारम्भ हुई हो तो अपनी अपेक्षा अत्यधिक उच्चकुल में विवाह की महत्वाकांक्षा रखने के कारण जातक को दुख और निराशा प्राप्त होती है ।
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