यदि हृदय-रेखा बृहस्पति या शनि-क्षेत्र के नीचे से प्रारम्भ हो, सीधी या कुछ गोलाई लिये हो और हथेली के अन्त तक जाये तो यह स्वाभाविक स्थिति समझनी चाहिये । यदि बृहस्पति क्षेत्र के अन्दर से प्रारम्भ हो तो भी सामान्यत: अच्छी है । परन्तु यदि इसकी स्थिति अपने सामान्य स्थान से निचे हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत प्रेम करने वाला नहीं होता, उसके हृदय में संयम तथा कठोरता होती है और स्वार्थपरता भी । यदि मनुष्य का हाथ अच्छा है (अर्थात् हाथ की माँसलता, वर्ण, आकार, उगलियों का गठन आधि) तो इस प्रकार की हृदय-रेखा वाले मनुष्यों के हृदय में प्रेम तो होगा परन्तु अपने संयम के कारण वे इसका प्रदर्शन नहीं करगे । इसके विपरीत यदि एक निकृष्ट कोटि के हाथ में (जिसकी हथेली, उगलियों तथा अन्य चिह्नों से गुण की अपेक्षा अवगुण अधिक प्रतीत होते है) हृदय-रेखा अपने सामान्य स्थान से अधिक नीची हो तो ऐसा व्यक्ति कठोर प्रकृति का, लालची तथा धोखा देने की प्रवृति वाला होगा । यदि हृदय-रेखा बहुत ऊँची हो अर्थात् उगलियाँ जहाँ हथेली से प्रारम्भ होती है उस स्थान के बहुत समीप हो तो ऐसे व्यक्ति बहुत उग्र रूप से प्रेम करने वाले होते है ।
उनके प्रेम में तीव्रता विशेष होने के कारण उनमें डाह या इर्षा की मात्रा भी साधारण से अधिक होती है । ऐसी हृदय-रेखा करीब-करीब वहीं प्रभाव उत्पन्न करती है जो शुक्र-मेखला में होते है |यदि ह्रदय-रेखा कुछ गोलाई लिये एक ओर से दूसरी ओर पूरी हथेली पर हो तो ऐसा व्यक्ति अत्यधिक प्रेम करने वाला होता है और अपने इस स्वभाव के कारण कष्ट भी उठाता है । यदि ऐसी हृदय-रेखा के साथ-साथ चन्द्र-क्षेत्र भी उच्च हो तो कल्पना का आधिक्य होने से स्वभाव में अत्यधिक इर्षा आ जाती है । किन्तु हथेली पर आर-पार, पूरी र्चाड़ाई पर होती हुई भी, यदि हृदय-रेखा कुछ भी गोलाई लिये हुए न हो और बिलकुल सीधी हो और हाथ में मृदुता या माँसलता न हो तो ऐसा व्यक्ति कठोर प्रकृति का होता है अर्थात् उसका स्वभाव स्नेहशील नहीं होता । यदि हृदय-रेखा शीर्ष-रेखा की ओर सहसा झुकी हुई हो ओर शनि-क्षेत्र या सूर्य-क्षेत्र के नीचे अधिक झुकाव हो जिस कारण हृदय-रेखा तथा शोर्ष-रेखा से सीमित क्षेत्र बहुत संकुचित हो गया हो तो प्रकृति में क्षुद्रता होगी । यदि उगलियों की संधि (गांठे) पुष्ट न हो और उनका अग्र भाग भी चतुष्कोण हो तो स्वभाव में और भी क्षुद्रता होगी । ऐसे व्यक्तियों की दृष्टि में 'आदर्श' का कोई मूल्य नहीं, स्वार्थपरता ही सब कुछ है और इसी भावना से वे कार्य करते है । परंतु यदि हृदय-रेखा का झुकाव किसी एक स्थान पर विशेष न हो प्रत्युत क्रमश: हृदय-रेखा शीर्ष-रेखा की ओर झुकती जा रहीं हो और इस कारण दोनों रेखाओं से सीमित स्थान संकुचित हो गया हो और चन्द्र-क्षेत्र भी विस्मृत और उच्च हो तो उसके स्वभाव में 'दोरंगी' बात होगी अर्थात् मन में कुछ और बाहर और । साथ ही मिथ्या भाषण विशेष मात्रा में पाया जावेगा| यदि हृदय-रेखा के उपर्युक्त झुकाव के साथ-साथ शीर्ष-रेखा का प्रारम्भ जीवन-रेखा से होता हो तो ऐसे व्यक्ति के स्वभाव में और व्यवहार में मृदुता का अभाव और ऊपरीपन होता है ।यदि हृदय-रेखा के उपर्युक्त झुकाव के साथ-साथ, यकृत-रेखा लहरदार और निकृष्ट कोटि की हो तो दमा आदि रोग होगे ।
उनके प्रेम में तीव्रता विशेष होने के कारण उनमें डाह या इर्षा की मात्रा भी साधारण से अधिक होती है । ऐसी हृदय-रेखा करीब-करीब वहीं प्रभाव उत्पन्न करती है जो शुक्र-मेखला में होते है |यदि ह्रदय-रेखा कुछ गोलाई लिये एक ओर से दूसरी ओर पूरी हथेली पर हो तो ऐसा व्यक्ति अत्यधिक प्रेम करने वाला होता है और अपने इस स्वभाव के कारण कष्ट भी उठाता है । यदि ऐसी हृदय-रेखा के साथ-साथ चन्द्र-क्षेत्र भी उच्च हो तो कल्पना का आधिक्य होने से स्वभाव में अत्यधिक इर्षा आ जाती है । किन्तु हथेली पर आर-पार, पूरी र्चाड़ाई पर होती हुई भी, यदि हृदय-रेखा कुछ भी गोलाई लिये हुए न हो और बिलकुल सीधी हो और हाथ में मृदुता या माँसलता न हो तो ऐसा व्यक्ति कठोर प्रकृति का होता है अर्थात् उसका स्वभाव स्नेहशील नहीं होता । यदि हृदय-रेखा शीर्ष-रेखा की ओर सहसा झुकी हुई हो ओर शनि-क्षेत्र या सूर्य-क्षेत्र के नीचे अधिक झुकाव हो जिस कारण हृदय-रेखा तथा शोर्ष-रेखा से सीमित क्षेत्र बहुत संकुचित हो गया हो तो प्रकृति में क्षुद्रता होगी । यदि उगलियों की संधि (गांठे) पुष्ट न हो और उनका अग्र भाग भी चतुष्कोण हो तो स्वभाव में और भी क्षुद्रता होगी । ऐसे व्यक्तियों की दृष्टि में 'आदर्श' का कोई मूल्य नहीं, स्वार्थपरता ही सब कुछ है और इसी भावना से वे कार्य करते है । परंतु यदि हृदय-रेखा का झुकाव किसी एक स्थान पर विशेष न हो प्रत्युत क्रमश: हृदय-रेखा शीर्ष-रेखा की ओर झुकती जा रहीं हो और इस कारण दोनों रेखाओं से सीमित स्थान संकुचित हो गया हो और चन्द्र-क्षेत्र भी विस्मृत और उच्च हो तो उसके स्वभाव में 'दोरंगी' बात होगी अर्थात् मन में कुछ और बाहर और । साथ ही मिथ्या भाषण विशेष मात्रा में पाया जावेगा| यदि हृदय-रेखा के उपर्युक्त झुकाव के साथ-साथ शीर्ष-रेखा का प्रारम्भ जीवन-रेखा से होता हो तो ऐसे व्यक्ति के स्वभाव में और व्यवहार में मृदुता का अभाव और ऊपरीपन होता है ।यदि हृदय-रेखा के उपर्युक्त झुकाव के साथ-साथ, यकृत-रेखा लहरदार और निकृष्ट कोटि की हो तो दमा आदि रोग होगे ।
No comments:
Post a Comment