हाथ की बनावट,हाथ की रेखाएं और उसकी कोमलता,रंग,हाथ पर मौजूद चिन्ह जैसे त्रिकोण,चौकोण, अन्द्कार, क्रोस या रेखा का टूटना इत्यादि देखकर भविष्य में होने वाले रोग का पाता चलता है | हाथ देखकर किसी का रोग की गंभीरता को भली प्रकार समझा जा सकता है और तदनुरूप उसकी चिकित्सा का निर्धारण हो सकता है |
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक बनावट जिस तरह भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी हाथों में रेखाओं की बनावट तथा रेखाओं की मोटाई तथा लंबाई में भी अंतर देखा जात सकता है। यह सभी संयोगवश न होकर प्रत्येक रेखा या चिंह कुछ इंगित करते हैं। इस प्रकार यदि देखा जाए तो हस्तरेखा का अध्ययन कर किसी भी व्यक्ति की मानसिक और आर्थिक स्थिति ही नहीं अपितु उसकी शारीरिक स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। अत: कहा जा सकता है कि हस्तरेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि किस व्यक्ति को कौन सी बिमारी होगी या कब होगी। अत: रोग परीक्षा के लिए हाथ की बनावट, हाथ की रेखाएँ और उसकी कोमलता-कठोरता, रंग, हाथ पर मौजूद चिंह जैसे त्रिकोण, चौकोण, अंडकार, क्रॉस या रेखा का टूटना इत्यादि देखकर रोग का पता लगाया जा सकता है। हाथ देखकर किसी का रोग तथा रोग की गंभीरता को भली प्रकार समझा जा सकता है और तदानुरूप उसकी चिकित्सा का निर्धारण हो सकता है। शरीर की अंग रचना में हाथ सबसे अधिक संवेदनशील है। उसके विभिन्न क्षेत्रों की रेखाएँ नीची-ऊंची होती रहती हैं। सभी हथेलियों में रेखाओं की बनावट प्राय: समान बनी रहती है, पर बारीकी से देखा जाये तो उनमें काफी विभिन्नता पाया जाता है। न केवल हथेली की रेखाएँ वरन अंगुलियों के पोर, नाखून, हथेली का आकार, अंगुलियों की मोटाई या लंबाई, हाथ पर मौजूद पर्वत का ऊँचा-नीचा, उभार आदि की स्थिति शारीरिक स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। विभिन्न रोगियों की स्वास्थ्य सम्बन्धी भूत, वर्तमान और भविष्य का परीक्षण किया जा सकता है।
नाखूनों की सफेदी देख रक्ताल्पता का निष्कर्ष निकाला जाता था। जीवनरेखा पतली या नाखून पीले हो तो शारीरिक दुर्बलता का पता चलता है। हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर उस पर रेखाओं का जाल हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही कम चिह्नों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर्वत से शुक्र का पर्वत अधिक उन्नत हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। इस पर यदि हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हो तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। हाथ में हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और हृदय रोग होता है। यदि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक रोग होते हैं।
स्वास्थ्य रेखा यदि मुडक़र चंद्र पर्वत पर चली गयी हो, तो जातक सदैव रोगग्रस्त ही रहेगा। चंद्र पर्वत पर अगर क्रास बना हो तब मानसिक आघात लगने की आशंका बनती है। यदि स्वास्थ्य रेखा में मस्तिष्क रेखा के निकट, परंतु उसके ऊपर कोई द्वीप हो, तो नाक और गले के रोग होते हैं। यदि स्वास्थ्य रेखा का प्रारंभ में हल्का हो और उसके बाद गहराई होता जाए जो उस व्यक्ति को हृदय रोग होगा। इस रेखा का अंतिम सिरा यदि बहुत मोटा होकर गहरा रंग का है, तो उसे सिर दर्द का रोग होगा। हाथ में चंद्र पर्वत के निम्न भाग पर क्रॉस या आड़ी रेखाएँ स्थित हो तब नाभि के नीचे के भाग में रोग होने का खतरा होता है, यदि मध्य भाग में यह दोष हो तब पेट के रोग हो सकते हैं। यदि शुक्र पर्वत पर दोष हो तब यौन रोग होने की संभावना बनती है। हथेली में शनि पर्वत तथा शनि क्षेत्र में कहीं भी रेखाओं का जाल या किसी भी प्रकार का कोई क्रास या चिन्ह हो या श्ािन पर्वत सूर्य की ओर झुक जाये या कोई रेखा दोनों पर्वत को काटता हो, तो व्यक्ति को वात प्रधान रोग हो सकते है। शनि पर्वत का दबा होना या उसपर रेखाओं का जाल वात रोग या हड्डी के रोग होने की सम्भावना बनाती है। बुध पर्वत पर रेखा या पर्वत का दबा होना दाँत संबंधी रोग होने की संभावना होती है। यदि सूर्य पर्वत पर द्वीप बना हो या सूर्य पर्वत के नीचे द्वीप बना हो तब नेत्र संबंधी रोग हो सकते हैं। नाखून पर खड़ी धारियाँ व सफेद धब्बे तनाव की निशानी है। यदि नाखून का रंग पीला हो तब ये आशंका और अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति की हथेली में निम्न मंगल पर्वत पर तिल का निशान होता है उसे हमेशा जोखिम से बचना चाहिए, इन्हें सडक़ दुर्घटना, करंट, आग लगने का भय रहता है। निम्न मंगल पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह या उस स्थान से कोई रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे व्यक्ति को रक्त संबंधी रोग देता है। जिस व्यक्ति की हथेली में मंगल पर्वत पर शून्य का निशान बना होता है उन्हेंं घाव के कारण कष्ट का सामना करना पड़ता है। मंगल पर्वत पर चंद्र का निशान मानसिक परेशानी देता है। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ भी हो सकता है।
मंगल पर्वत पर कोई भी चिंह होना असाध्य रोग होने का संकेत माना जाता है। जबकि मंगल पर क्रास होने पर व्यक्ति बुखार से पीडि़त होकर कष्ट पाता है। मंगल पर्वत पर जालीनुमा चिन्ह भी शुभ नहींं माना जाता है। मंगल स्थान पर क्रॉस का चिन्ह होने पर रक्त संबंधी रोग देता है। गुरू पर्वत का बहुत ऊंचा होना या गुरू पर्वत पर किसी भी प्रकार से रेखाओं का जाल होना स्थूलता को प्रदर्शित करता है। जीवन रेखा के प्रारंभ में द्ववीप हो तो वंशानुगत रोग साथ ही सूर्य पर्वत पर त्रिकोण या मस्तिष्क रेखा पर द्ववीप भी वंशानुगत रोग का संकेत होता है। शनि पर्वत पर द्ववीप बचपन में पीलिया या दमा रोग का संकेत होता है। चंद्र पर्वत से चलकर कोई रेखा या जाल शनि पर्वत तक आये तो उसे चर्म रोग होने की आशंका होती है। जीवन रेखा छोटी या क्रास से भरी हो तो अल्पायु होता है। मंगल पर्वत तथा तर्जनी से जीवन रेखा पर छोटी रेखाएँ आ रही हों तो शारीरिक कष्ट लगातार बना रहता है।
उपाय:
हृदय रेखा के दोष से बचाव हेतु कनिष्ठका अंगुली को छोडक़र अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो जो मुद्रा बनती है। इसका नित्य अभ्यास करने से हृदय रोग से बचाव किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रात:काल करने से अधिक लाभ मिलता है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से गुरु पर्वत के दोष नष्ट हो जाते हैं। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रात:काल एवं सायंकाल में 15 मिनट करनी चाहिए। शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोडक़र उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुद्रा शानि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक रोग से रक्षा करती है। बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसको दूर करने के लिए बायें हाथ की तर्जनी का सिरा दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा से जोडकर मुद्रा बनाने से बुध का दोष दूर हो जाता है। उदर व शरीर के किसी भाग में गैस एकत्र होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक बनावट जिस तरह भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी हाथों में रेखाओं की बनावट तथा रेखाओं की मोटाई तथा लंबाई में भी अंतर देखा जात सकता है। यह सभी संयोगवश न होकर प्रत्येक रेखा या चिंह कुछ इंगित करते हैं। इस प्रकार यदि देखा जाए तो हस्तरेखा का अध्ययन कर किसी भी व्यक्ति की मानसिक और आर्थिक स्थिति ही नहीं अपितु उसकी शारीरिक स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। अत: कहा जा सकता है कि हस्तरेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि किस व्यक्ति को कौन सी बिमारी होगी या कब होगी। अत: रोग परीक्षा के लिए हाथ की बनावट, हाथ की रेखाएँ और उसकी कोमलता-कठोरता, रंग, हाथ पर मौजूद चिंह जैसे त्रिकोण, चौकोण, अंडकार, क्रॉस या रेखा का टूटना इत्यादि देखकर रोग का पता लगाया जा सकता है। हाथ देखकर किसी का रोग तथा रोग की गंभीरता को भली प्रकार समझा जा सकता है और तदानुरूप उसकी चिकित्सा का निर्धारण हो सकता है। शरीर की अंग रचना में हाथ सबसे अधिक संवेदनशील है। उसके विभिन्न क्षेत्रों की रेखाएँ नीची-ऊंची होती रहती हैं। सभी हथेलियों में रेखाओं की बनावट प्राय: समान बनी रहती है, पर बारीकी से देखा जाये तो उनमें काफी विभिन्नता पाया जाता है। न केवल हथेली की रेखाएँ वरन अंगुलियों के पोर, नाखून, हथेली का आकार, अंगुलियों की मोटाई या लंबाई, हाथ पर मौजूद पर्वत का ऊँचा-नीचा, उभार आदि की स्थिति शारीरिक स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। विभिन्न रोगियों की स्वास्थ्य सम्बन्धी भूत, वर्तमान और भविष्य का परीक्षण किया जा सकता है।
नाखूनों की सफेदी देख रक्ताल्पता का निष्कर्ष निकाला जाता था। जीवनरेखा पतली या नाखून पीले हो तो शारीरिक दुर्बलता का पता चलता है। हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर उस पर रेखाओं का जाल हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही कम चिह्नों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर्वत से शुक्र का पर्वत अधिक उन्नत हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। इस पर यदि हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हो तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। हाथ में हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और हृदय रोग होता है। यदि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक रोग होते हैं।
स्वास्थ्य रेखा यदि मुडक़र चंद्र पर्वत पर चली गयी हो, तो जातक सदैव रोगग्रस्त ही रहेगा। चंद्र पर्वत पर अगर क्रास बना हो तब मानसिक आघात लगने की आशंका बनती है। यदि स्वास्थ्य रेखा में मस्तिष्क रेखा के निकट, परंतु उसके ऊपर कोई द्वीप हो, तो नाक और गले के रोग होते हैं। यदि स्वास्थ्य रेखा का प्रारंभ में हल्का हो और उसके बाद गहराई होता जाए जो उस व्यक्ति को हृदय रोग होगा। इस रेखा का अंतिम सिरा यदि बहुत मोटा होकर गहरा रंग का है, तो उसे सिर दर्द का रोग होगा। हाथ में चंद्र पर्वत के निम्न भाग पर क्रॉस या आड़ी रेखाएँ स्थित हो तब नाभि के नीचे के भाग में रोग होने का खतरा होता है, यदि मध्य भाग में यह दोष हो तब पेट के रोग हो सकते हैं। यदि शुक्र पर्वत पर दोष हो तब यौन रोग होने की संभावना बनती है। हथेली में शनि पर्वत तथा शनि क्षेत्र में कहीं भी रेखाओं का जाल या किसी भी प्रकार का कोई क्रास या चिन्ह हो या श्ािन पर्वत सूर्य की ओर झुक जाये या कोई रेखा दोनों पर्वत को काटता हो, तो व्यक्ति को वात प्रधान रोग हो सकते है। शनि पर्वत का दबा होना या उसपर रेखाओं का जाल वात रोग या हड्डी के रोग होने की सम्भावना बनाती है। बुध पर्वत पर रेखा या पर्वत का दबा होना दाँत संबंधी रोग होने की संभावना होती है। यदि सूर्य पर्वत पर द्वीप बना हो या सूर्य पर्वत के नीचे द्वीप बना हो तब नेत्र संबंधी रोग हो सकते हैं। नाखून पर खड़ी धारियाँ व सफेद धब्बे तनाव की निशानी है। यदि नाखून का रंग पीला हो तब ये आशंका और अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति की हथेली में निम्न मंगल पर्वत पर तिल का निशान होता है उसे हमेशा जोखिम से बचना चाहिए, इन्हें सडक़ दुर्घटना, करंट, आग लगने का भय रहता है। निम्न मंगल पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह या उस स्थान से कोई रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे व्यक्ति को रक्त संबंधी रोग देता है। जिस व्यक्ति की हथेली में मंगल पर्वत पर शून्य का निशान बना होता है उन्हेंं घाव के कारण कष्ट का सामना करना पड़ता है। मंगल पर्वत पर चंद्र का निशान मानसिक परेशानी देता है। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ भी हो सकता है।
मंगल पर्वत पर कोई भी चिंह होना असाध्य रोग होने का संकेत माना जाता है। जबकि मंगल पर क्रास होने पर व्यक्ति बुखार से पीडि़त होकर कष्ट पाता है। मंगल पर्वत पर जालीनुमा चिन्ह भी शुभ नहींं माना जाता है। मंगल स्थान पर क्रॉस का चिन्ह होने पर रक्त संबंधी रोग देता है। गुरू पर्वत का बहुत ऊंचा होना या गुरू पर्वत पर किसी भी प्रकार से रेखाओं का जाल होना स्थूलता को प्रदर्शित करता है। जीवन रेखा के प्रारंभ में द्ववीप हो तो वंशानुगत रोग साथ ही सूर्य पर्वत पर त्रिकोण या मस्तिष्क रेखा पर द्ववीप भी वंशानुगत रोग का संकेत होता है। शनि पर्वत पर द्ववीप बचपन में पीलिया या दमा रोग का संकेत होता है। चंद्र पर्वत से चलकर कोई रेखा या जाल शनि पर्वत तक आये तो उसे चर्म रोग होने की आशंका होती है। जीवन रेखा छोटी या क्रास से भरी हो तो अल्पायु होता है। मंगल पर्वत तथा तर्जनी से जीवन रेखा पर छोटी रेखाएँ आ रही हों तो शारीरिक कष्ट लगातार बना रहता है।
उपाय:
हृदय रेखा के दोष से बचाव हेतु कनिष्ठका अंगुली को छोडक़र अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो जो मुद्रा बनती है। इसका नित्य अभ्यास करने से हृदय रोग से बचाव किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रात:काल करने से अधिक लाभ मिलता है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से गुरु पर्वत के दोष नष्ट हो जाते हैं। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रात:काल एवं सायंकाल में 15 मिनट करनी चाहिए। शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोडक़र उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुद्रा शानि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक रोग से रक्षा करती है। बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसको दूर करने के लिए बायें हाथ की तर्जनी का सिरा दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा से जोडकर मुद्रा बनाने से बुध का दोष दूर हो जाता है। उदर व शरीर के किसी भाग में गैस एकत्र होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है।
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