वास्तु दोष आपके घर में है या नहीं, इसका पता आप अपने जन्म दिनांक से प्राप्त कर सकते हैं। जन्म होते ही हमारे साथ कुछ अंक जुड़ जाते हैं। जैसे कि जन्म तिथि का अंक, जन्म समय की होरा व जन्म स्थान आदि। इन सब के आधार पर ज्योतिष व अंक ज्योतिष की गणनायें की जा सकती है। अगर हम 'गीता में श्री कृष्ण द्वारा बताये गये कर्म-सिद्धांत पर विश्वास करते हैं तो इस बार आपको आपका 'जन्म दिनांक' आपके पिछले कर्मों के आधार पर प्राप्त हुआ है जिसमें प्रत्येक अंक महत्त्व रखता है। वर्ग पद्धति में 'जन्म दिनांक' में आने वाले प्रत्येक अंक को वर्ग में दर्शाया जाता है। सभी अंक उनके नियत स्थान पर दर्शाने के उपरांत भी कुछ स्थान रिक्त रह जाते हैं। ये रिक्त स्थल इस जन्म को जीने की राह दिखाते हैं। शास्त्रों में नौ ग्रहों के नौ यंत्र हैं जिनका आधार निम्नलिखित 'सूर्य यंत्र हैं। सूर्य यंत्र के आधार पर हमारे घर में वास्तु दोष कहां है, इसका पता जातक व उसकी पत्नी की 'जन्मतिथि के आधार पर लगाया जा सकता है। 'सूर्य यंत्र' में दी गई संखया का किसी भी दिशा से योग करें तो योगफल 15 ही होगा। 'ग्रह वास्तु दोष' जानने के लिये हमें जन्म दिनांक में आने वाले प्रत्येक अंक को (दिनांक, माह, वर्ष व शताब्दी के अंक को) उपरोक्त 'सूर्य यंत्र' के आधार पर उनके स्थान पर दर्शाना होगा। यदि कोई अंक उस 'जन्म दिनांक' में नहीं आया है तो उसके स्थान को वर्ग में रिक्त रहने देंगे। इसी रिक्त स्थान पर 'वास्तु दोष' है, ऐसा हम जानेंगे व 'वास्तु उपचार' भी उसी के अनुसार करेंगे। उदाहरण के लिये एक पुरुष जातक व उसकी पत्नी की जन्म तिथि क्रमशः 13-12-1956 व 5-5-1958 है। 'सूर्य यंत्र' पर आधारित वर्ग इनके लिये इस प्रकार बनेगें। इस जातक के निवास गृह में दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) व पश्चिम दिशा में ( द्द्र ) रिक्त वर्ग वाली दिशा में वास्तु दोष होगा। पत्नी के जन्म दिनांक ने पति के वर्ग में अंक 8 (अ ) से ईशान दिशा में होने वाले दोष को दूर कर दिया है व पति के जन्म दिनांक ने पत्नी के वर्ग में अंक 6, 2 व 4 क्रमशः वायव्य, र्नैत्य व पूर्व दिशा में होने वाले वास्तु दोषों को दूर कर दिया है। आजकल संपत्ति पति व पत्नी दोनों के नाम पर होती है। अतः वे एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। इससे ज्ञात होगा कि दिशा अनुसार गृह में क्या-क्या वास्तु दोष हो सकते हैं? दोष का पता चलने पर उसके उपाय भी किये जा सकते हैं। दिशा के अनुसार निम्नलिखित दोष घर में पाये जा सकते हैं। पूर्व दिशा : पूर्व दिशा में दोष होने पर पिता-पुत्र के संबंध ठीक नहीं रहते हैं। सरकारी नौकरी से परेशानी या सरकार से दंड, नेत्र रोग, सिर दर्द, हृदय रोग, चर्म रोग व पीलिया जैसे रोग घर में लगे रहते हैं। पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा में दोष होने पर नौकरों से क्लेश, नौकरी में परेशानी, भूत-प्रेत का भय, वायु-विकार, लकवा, चेचक, कुष्ठ रोग, रीढ़ की हड्डी में व पैरों में कष्ट हो सकता है। उत्तर दिशा : उत्तर दिशा में दोष होने पर विद्या संबंधी रूकावटें, व्यवसाय में हानि, वाणी दोष, मिर्गी, गले के रोग, नाक के रोग व मतिभ्रम आदि कष्ट हो सकते हैं। दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा में दोष होने पर क्रोध अधिक आना, दुर्घटनायें होना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, उच्च रक्त चाप जैसे रोग हो सकते हैं। भाइयों से संबंध भी ठीक नहीं रहते हैं। ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) : ईशान कोण में दोष होने पर पूजा में मन नहीं लगता, आय में कमी आती है, धन-संग्रह नहीं हो पाता, विवाह में देरी, संतान में देरी, उदर-विकार, कान के रोग, कब्ज, अनिद्रा आदि कष्ट हो सकते हैं। आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) : आग्नेय कोण में दोष होने पर पति/पत्नी में अच्छे संबंध न रहना, प्रेम में असफलता, वाहन से कष्ट, शृंगार में रूचि न रखना, हर्निया, मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग व गर्भाशय से संबंधित रोग हो सकते हैं। र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) : र्नैत्य कोण में दोष होने पर दादा व नाना से परेशानी, अहंकार व भूत-प्रेत का भय, त्वचा रोग, रक्त विकार, मस्तिष्क रोग, चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का घर में वास रहता है। वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम) : वायव्य दिशा में दोष होने पर माता से संबंध ठीक नहीं रहते, मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, मासिक धर्म संबंधी रोग, पथरी व निमोनिया आदि हो सकते हैं। अच्छे वास्तु-विशेषज्ञ के सुझाव व उपायों की जानकारी ले कर उपरोक्त दिशा-दोष से होने आने वाले कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है।
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