Friday, 2 October 2015

व्यक्ति का मनोबल

शरीर बल और शस्त्र बल से ऊंचा कोई बल हो सकता है तो वह मनोबल ही है। जिस प्रकार बिना पसीने का पैसा स्थाई नहीं होता, इसी प्रकार बाधाओं का मुकाबला किए बिना लक्ष्य को स्थायी रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता। परिस्थितियां जीवन को बिगाड़ती ही नहीं, बनाती भी हैं। ज्योतिष गणना अनुसार मनोबल को व्यक्ति की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अत: किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की पूरी परछाई उसके तीसरे स्थान अर्थात उसके मनोबल पर करता है।
समूह के सदस्यों में बहुधा कार्य करने की इच्छा पाई जाती है जो समूह आकर्षण द्वारा संसक्ति और इस विश्वास द्वारा होती है कि उनके संयुक्त प्रयास, समूह के लक्ष्य में योगदान करेंगे। इसी विश्वास और आशा की भावना को मनोबल कहा जाता है। समूह मनोबल व्यक्तियों या सदस्यों के निजी मनोबल का सयुक्त रूप है। मुख्य रूप में यह संसक्ति का प्रतिफल होता है। मनोबल समूह के प्रति उतरदायित्व की भावना है जो सामान्य समाज द्वारा खतरे में भी पड़ सकता है। मनोबल समूह की एकता, कार्य स्तर, संगठन एवं सामूहिक भावना का परिचायक है। मनोबल उच्च होने पर समूह के सदस्य समूह के प्रति, समूह के नेतृत्व के प्रति तथा समूह लक्ष्यों के प्रति धनात्मक प्रवृति रखते हैं। जब कोई अकेला व्यक्ति किसी शुभ काम में लगता है तब परिस्थितियां उसका पीछा करती हैं। वे व्यक्ति को इस प्रकार झकझोर देती हैं कि एक बार तो वह निराश हो जाता है और उसका साहस टूट जाता है। उनका प्रहार इतना निर्मम होता है कि व्यक्ति स्वयं को असहाय-सा अनुभव करता है। परिस्थितियां बाहरी हो सकती हैं और आंतरिक भी। दोनों प्रकार की परिस्थितियां व्यक्ति को इतना कायर बना देती हैं कि वह पलायन की बात सोचने लगता है। वह परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देता है और मौत तक का वरण स्वीकार कर लेता है। किंतु मनुष्य को यह नहीं भूलना चाहिए कि कसौटी के ये क्षण दृढ़ मनोबल से गुजारने के होते हैं।
शरीर बल और शस्त्र बल से ऊंचा कोई बल हो सकता है तो वह मनोबल ही है। जिस प्रकार बिना पसीने का पैसा स्थाई नहीं होता, इसी प्रकार बाधाओं का मुकाबला किए बिना लक्ष्य को स्थायी रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता। परिस्थितियां जीवन को बिगाड़ती ही नहीं, बनाती भी हैं।
अत: हर परिस्थिति का हर कीमत पर मुकाबला कर लक्ष्योन्मुख बनना चाहिए। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गतिशील रहने से एक दिन सारी परिस्थितियां स्वयं समाप्त हो जाती हैं। जब तक वे अवरोधक बनकर खड़ी हैं, पीछे हटने मात्र से समस्या का समाधान नहीं मिलेगा। समग्र मनोबल और परिपूर्ण निष्ठा बटोर कर बाधाओं को निरस्त करने वाला व्यक्ति ही मंजिल तक पहुंच सकता है।
फिसलन के समय भी फिसलन न हो, विकृति के हेतु उपस्थित होने पर भी जो विकृत न हो, वही धीर है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति को अपनी साधना का अंग मानकर सहन करता है। इसका परिणाम सुंदर और सुखद आता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में उसके तीसरे स्थान का स्वामी उच्च, मित्र राशि अथवा वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक में गजब का मनोबल होता है। उसके विपरीत अगर इन ग्रहों का कारक नीचस्थ हो जाये, शत्रु अथवा अधिशत्रु से आक्रांत हो या पाप स्थानों पर हो या क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो जाये तो मनोबल को कमजोर कर देता है।
बाह्य कारकों की निर्थरकता- आशावादिता और मनोबल के धनात्मक संबंधों में बहुधा यह माना जाता है की कार्य परिस्थिति से बाहर कठिनाइयों या ऋणात्मक भाव, मनोबल को न्यून करता है। क्षेत्र अध्ययनों से प्रदर्शित होता है कि मनोबल कार्य परिस्थिति से बाहर होने की अपेक्षा, इस पर अधिक निर्भर करता है की प्रयोज्य कार्य परिस्थिति के विषय में क्या विचार रखता है। अर्थात कार्य में आने वाली कठिनाइयां, कार्य स्थिति से बाहर की कठिनाइयों की अपेक्षा मनोबल को अधिक प्रभावित करती है। मनोबल को प्रभावित करने वाले कारकों में तीसरे स्थान के ग्रह अथवा तीसरे स्थान पर उपस्थित ग्रह अथवा तीसरे स्थान में दृष्टि रखने वाले ग्रह विशेष तौर उल्लेखनीय हैं। यदि तीसरे स्थान पर गुरू हो तो ऐसा व्यक्ति सात्विक प्रवृत्ति का बुद्धिमान व्यक्ति होता है। किंतु यही ग्रह यदि राहु-मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ हो जाये तो बुद्धिमानी में कुटिलता भी आ जाती है। इस प्रकार व्यक्ति की कुंडली के तीसरे स्थान का विश£ेषण कर भाव-मनोभाव के साथ मनोबल का विश£ेषण किया जा सकता है।
Pt.P.S.Tripathi
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