शीर्ष-रेखा का जीवन-रेखा से योग हो तो क्या फ़ल होता है यह बताया जा चुका है किन्तु जीवन-रेखा से योग होने पर, शीर्ष- रेखा का आगे जाकर अलग-अलग ओर झुकाव या अन्य रेखाओं से योग होने से फल में क्या विभिन्नता होती है यह बताया जाता है ।
(1) जीवन-रेखा से योग करती हुई शीर्ष-रेखा प्रारम्भ हो तथा हृदय-रेखा की ओर कुछ झुकती हुई आगे आवे, फिर बीच में पहुँच कर ह्रदय-रेखा की ओर झुकाव बंद हो जावे और ऊपर की बजाय नीचे की ओर अपनी स्वाभाविक दिशा में जाने लगे, तो ऐसे जातक का किसी से आत्यन्तिक प्रेम हो जाता है और बहुत बरसों तक हृदय की ऐसी ही स्थिति रहती है । परिणाम में सफलता प्राप्त नहीं होती । ऐसे व्यक्ति में शुद्ध उदात्त प्रेम की अपेक्षा वासना-पूर्ति की आकांक्षा विशेष होती है । ह्रदय तथा शीर्ष-रेखा में अन्तर कम होने से अनुदार वृत्ति (कंजूसी तथा अन्य बातों में भी) होती है ।
(2) याद शीर्ष-रेखा अपने प्रारम्भिक स्थान पर जीवन-रेखा व हृदय-रेखा दोनों से संयुक्त हो तो जातक की अचानक मृत्यु होती है ।
3) (क) यदि जीवन-रेखा से तो प्रारम्भ हो-किन्तु जीवन- रेखा के उस भाग से प्रारम्भ हो जो शनि-क्षेत्र के नीचे है-तो जीवन के प्रारम्भिक काल में शिक्षा का अभाव होने के कारण मस्तिष्क का विकास तथा दिमागी उन्नति देर से प्रारम्भ हुई यह प्रकट होता है ।
ख) किन्तु यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो और जीवन-रेखा तथा हृदय-रेखा भी छोटी हों तो जातक की सहसा मृत्यु हो जाती है ।
4) (क) यदि शीर्ष-रेखा प्रारम्भ में जीवन-रेखा से मिली हुई हो और आगे ऊँची होती-होती हृदय-रेखा से मिलकर उसमें विलीन हो जावे और हृदय-रेखा, सुन्दर, वृहस्पति के क्षेत्र से
निकलकर आई हो तो ऐसा जातक किसी एक व्यक्ति को ही जी-जान से प्रेम करता है और उसमें उसको हद से ज्यादा खुशी हासिल होती है । जातक एक प्रकार से अपने को प्रेमी या प्रेमिका पर न्योछावर कर देता है । संभव है ऐसी परिस्थिति में दुनियावी कामों में सफलता न मिले किन्तु प्रेम के क्षेत्र में पूर्ण सुख प्राप्त होता है ।
ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा बृहस्पति के क्षेत्र से न निकली हो और शीर्ष-रेखा, हृदय-रेखा से जहाँ मिले वह भाग शनिक्षित्र के नीचे हो तो प्रेम के पीछे दीवाना हो जाने से जातक आत्महत्या या अन्य सांधातिक कार्य कर सकता है (हाथ के अन्य लक्षणों से क्या विदित होता है यह भी अचछी तरह विचारना चाहिये) ।
5) यदि बृहस्पति क्षेत्र अति उच्च हो, जीवन-रेखा छोटी-छोटी रेखाओं से कटी हो, भाग्य-रेखा कमजोर हो और शीर्ष-रेखा स्वास्थ्य-रेखा से मिली हो (उसमें विलीन हो जावे) तो जातक की आत्म-हत्या की ओर प्रवृत्ति होती है ।
6) यदि जीवन-रेखा प्रारम्भ में दो शाखायुक्त हो (एक प्रधान रेखा, एक शाखा) और शीर्ष-रेखा स्वास्थ्य-रेखा में जाकर विलीन हो जाय तो मस्तिष्क रोग. सदैव दु:खी और गमगीन रहना ।
7) यदि शीर्ष-रेखा चन्द्रक्षेत्र के मर स्वास्थ्य-रेखा को काट कर आगे बढ़ जाय तो कल्पना इतनी बढ़ जाती है कि उसे एक प्रकार से 'पागलपन' का रोग कहना चाहिये । ॰
8) यदि शीर्ष-रेखा जीवन-रेखा से प्रारम्भिक स्थान पर न मिली हो किन्तु पतली-पतली छोटी-छोटी रेखाएँ जीवन-रेखा से निकलकर शीर्ष-रेखा से योग करती हों तो जातक बदमिजाज होता है, किन्तु यदि हाथ में अन्य लक्षण अच्छे हों तो जल्दबाजी, तथा शिष्टता का अभाव समझना चाहिये |
9) यदि शीर्ष-रेखा तपा जीवन-रेखा प्रारम्भिक स्थान पर मिली न हों किन्तु उस स्थान पर दोनों के बीच कॉस-चिह्न हो और उसके द्वारा दोनों रेखाओं में योग होता हो तो जातक के बचपन में ही कोई पारिवारिक मुकदमेबाजी होती है जिसके कारण जातक को नुकसान उठाना पड़ता है ।
10) यदि शुक्रक्षेत्र के मूल से रेखाएँ निकलकर जीवन-रेखा तथा शीर्ष-रेखा दोनों को काटें तो कौटुम्बिक परिस्थिति के कारण आर्थिक कठिनता का लक्षण है ।
11) शीर्ष-रेखा कहीं भी ह्रदय-रेखा से आकर मिल जावे उसमें विलीन हो जावे, तो जातक प्रेम के पीछे मतवाला हो जाता है । यदि शीर्ष-रेखा लहरदार या अन्य दोषयुक्त हो तो इस प्रेम में और भी अधिक दीवानापन होता है ।
12) छोटी-छोटी रेखाएँ शीर्ष-रेखा से निकलकर ह्रदय-रेखा में आकर विलीन हो जावे-उसे काष्ट नहीं-तो मित्रों का जातक पर बहुत प्रभाव रहता है ।
13) जहाँ शीर्ष-रेखा का अन्त होता है-उसके कुछ पहले शीर्ष-रेखा से एक शुद्ध गम्भीर रेखा निकलकर हृदय-रेखा में विलीन हो जावे तो आत्यन्तिक प्रेम के कारण जातक किसी बात की परवाह नहीं करता ।
14) यदि शुक्र-क्षेत्र से कोई अच्छी रेखा निकलकर जीवन, शीर्ष तथा विवाह-रेखा तीनों को काटे तो विवाह या गुप्तप्रेम के कारण कठिन आपत्ति या विपत्ति सहनी पड़ेगी ।
(1) जीवन-रेखा से योग करती हुई शीर्ष-रेखा प्रारम्भ हो तथा हृदय-रेखा की ओर कुछ झुकती हुई आगे आवे, फिर बीच में पहुँच कर ह्रदय-रेखा की ओर झुकाव बंद हो जावे और ऊपर की बजाय नीचे की ओर अपनी स्वाभाविक दिशा में जाने लगे, तो ऐसे जातक का किसी से आत्यन्तिक प्रेम हो जाता है और बहुत बरसों तक हृदय की ऐसी ही स्थिति रहती है । परिणाम में सफलता प्राप्त नहीं होती । ऐसे व्यक्ति में शुद्ध उदात्त प्रेम की अपेक्षा वासना-पूर्ति की आकांक्षा विशेष होती है । ह्रदय तथा शीर्ष-रेखा में अन्तर कम होने से अनुदार वृत्ति (कंजूसी तथा अन्य बातों में भी) होती है ।
(2) याद शीर्ष-रेखा अपने प्रारम्भिक स्थान पर जीवन-रेखा व हृदय-रेखा दोनों से संयुक्त हो तो जातक की अचानक मृत्यु होती है ।
3) (क) यदि जीवन-रेखा से तो प्रारम्भ हो-किन्तु जीवन- रेखा के उस भाग से प्रारम्भ हो जो शनि-क्षेत्र के नीचे है-तो जीवन के प्रारम्भिक काल में शिक्षा का अभाव होने के कारण मस्तिष्क का विकास तथा दिमागी उन्नति देर से प्रारम्भ हुई यह प्रकट होता है ।
ख) किन्तु यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो और जीवन-रेखा तथा हृदय-रेखा भी छोटी हों तो जातक की सहसा मृत्यु हो जाती है ।
4) (क) यदि शीर्ष-रेखा प्रारम्भ में जीवन-रेखा से मिली हुई हो और आगे ऊँची होती-होती हृदय-रेखा से मिलकर उसमें विलीन हो जावे और हृदय-रेखा, सुन्दर, वृहस्पति के क्षेत्र से
निकलकर आई हो तो ऐसा जातक किसी एक व्यक्ति को ही जी-जान से प्रेम करता है और उसमें उसको हद से ज्यादा खुशी हासिल होती है । जातक एक प्रकार से अपने को प्रेमी या प्रेमिका पर न्योछावर कर देता है । संभव है ऐसी परिस्थिति में दुनियावी कामों में सफलता न मिले किन्तु प्रेम के क्षेत्र में पूर्ण सुख प्राप्त होता है ।
ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा बृहस्पति के क्षेत्र से न निकली हो और शीर्ष-रेखा, हृदय-रेखा से जहाँ मिले वह भाग शनिक्षित्र के नीचे हो तो प्रेम के पीछे दीवाना हो जाने से जातक आत्महत्या या अन्य सांधातिक कार्य कर सकता है (हाथ के अन्य लक्षणों से क्या विदित होता है यह भी अचछी तरह विचारना चाहिये) ।
5) यदि बृहस्पति क्षेत्र अति उच्च हो, जीवन-रेखा छोटी-छोटी रेखाओं से कटी हो, भाग्य-रेखा कमजोर हो और शीर्ष-रेखा स्वास्थ्य-रेखा से मिली हो (उसमें विलीन हो जावे) तो जातक की आत्म-हत्या की ओर प्रवृत्ति होती है ।
6) यदि जीवन-रेखा प्रारम्भ में दो शाखायुक्त हो (एक प्रधान रेखा, एक शाखा) और शीर्ष-रेखा स्वास्थ्य-रेखा में जाकर विलीन हो जाय तो मस्तिष्क रोग. सदैव दु:खी और गमगीन रहना ।
7) यदि शीर्ष-रेखा चन्द्रक्षेत्र के मर स्वास्थ्य-रेखा को काट कर आगे बढ़ जाय तो कल्पना इतनी बढ़ जाती है कि उसे एक प्रकार से 'पागलपन' का रोग कहना चाहिये । ॰
8) यदि शीर्ष-रेखा जीवन-रेखा से प्रारम्भिक स्थान पर न मिली हो किन्तु पतली-पतली छोटी-छोटी रेखाएँ जीवन-रेखा से निकलकर शीर्ष-रेखा से योग करती हों तो जातक बदमिजाज होता है, किन्तु यदि हाथ में अन्य लक्षण अच्छे हों तो जल्दबाजी, तथा शिष्टता का अभाव समझना चाहिये |
9) यदि शीर्ष-रेखा तपा जीवन-रेखा प्रारम्भिक स्थान पर मिली न हों किन्तु उस स्थान पर दोनों के बीच कॉस-चिह्न हो और उसके द्वारा दोनों रेखाओं में योग होता हो तो जातक के बचपन में ही कोई पारिवारिक मुकदमेबाजी होती है जिसके कारण जातक को नुकसान उठाना पड़ता है ।
10) यदि शुक्रक्षेत्र के मूल से रेखाएँ निकलकर जीवन-रेखा तथा शीर्ष-रेखा दोनों को काटें तो कौटुम्बिक परिस्थिति के कारण आर्थिक कठिनता का लक्षण है ।
11) शीर्ष-रेखा कहीं भी ह्रदय-रेखा से आकर मिल जावे उसमें विलीन हो जावे, तो जातक प्रेम के पीछे मतवाला हो जाता है । यदि शीर्ष-रेखा लहरदार या अन्य दोषयुक्त हो तो इस प्रेम में और भी अधिक दीवानापन होता है ।
12) छोटी-छोटी रेखाएँ शीर्ष-रेखा से निकलकर ह्रदय-रेखा में आकर विलीन हो जावे-उसे काष्ट नहीं-तो मित्रों का जातक पर बहुत प्रभाव रहता है ।
13) जहाँ शीर्ष-रेखा का अन्त होता है-उसके कुछ पहले शीर्ष-रेखा से एक शुद्ध गम्भीर रेखा निकलकर हृदय-रेखा में विलीन हो जावे तो आत्यन्तिक प्रेम के कारण जातक किसी बात की परवाह नहीं करता ।
14) यदि शुक्र-क्षेत्र से कोई अच्छी रेखा निकलकर जीवन, शीर्ष तथा विवाह-रेखा तीनों को काटे तो विवाह या गुप्तप्रेम के कारण कठिन आपत्ति या विपत्ति सहनी पड़ेगी ।
Pt.P.S.Tripathi
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