जहाँ शीर्ष-रेखा समाप्त हो वहाँ या उससे कुछ पहले किसी भी ग्रह-क्षेत्र की ओर उसका झुकाव हो या शीर्ष-रेखा से निकल कर कोई शाखा किसी ग्रह-क्षेत्र पर जावे तो उस ग्रह-क्षेत्र का प्रभाव शीर्ष-रेखा में आ जाता है ।
1) यदि चन्द्र-क्षेत्र को ओर झुकी हो या उस क्षेत्र पर शाखा रेखा जावे तो कल्पना, गुप्त विद्या, प्रेम आदि की ओर मस्तिष्क का झुकाव होता है ।
2) बुध- क्षेत्र पर या उस ओर झुकी हो-विज्ञान या व्यापार में कुशलता ।
3)सूर्य-क्षेत्र पर या उस ओर जावे
4) शनि-क्षेत्र पर या उस ओर जावे-विचार-गम्भीर्य संगीत तथा धार्मिकता ।
5) बृहस्पति-गोत्र-यदि शाखा वृहस्पति-क्षेत्र पर जावे तो हुकूमत की इच्छा तथा अभिमान ।
6) यदि शीर्ष-रेखा से निकलकर कोई रेखा जाकर हृदय- रेखा में मिल जावे तो समझना चाहिये कि जातक का किसी से अत्यन्त प्रेम और गाढा अनुराग होने का लक्षण है । इस प्रकार का यह प्रेम इतना आत्यन्तिक तथा तीव्र होगा कि मनुष्य किसी लाभ, हानि आशंका या मर्यादा की परवाह न कर उसके वशीभूत हो जायगा ।
7) यदि शीर्ष-रेखा शनि-क्षेत्र के ही नीचे समाप्त हो जाने तो समय से पहले आकस्मिक मृत्यु हो या उस अवस्था पर दिमाग पूरा काम करना बन्द कर दे व नया दिमागी काम न कर सके ।
8) यदि हाथ के मध्य में समाप्त हो जावे और (क) सूर्य तथा वृहस्पति के क्षेत्र उन्नत न हों तो बुद्धि की कसी (ख) मंगल-क्षेत्र नीचा हो तो साहस तथा उत्साह की कमी ।
9) यदि भाग्य-रेखा से योग करने के पहले ही शीर्ष-रेखा का अन्त हो जावे तो दुवे-जीवन तया अकाल-मृत्यु हो ।
10) यदि शीर्ष-रेखा मंगल के प्रथम क्षेत्र तक लम्बी जावे और वहाँ अंकुश की तरह नीचे की ओर मुड़ जावे तो अत्यधिक आत्म-विश्वास एवं अभिमान के कारण जातक कष्ट उठाता है ।
11) (क) यदि शीर्ष-रेखा शनि-क्षेत्र के नीचे तक तो सीधी जावे और फिर मुड़कर ह्रदय-रेखा को काटती हुई शनि-क्षेत्र के ऊपर जाकर समाप्त हो जावे तो सिर में चोट लगने से मृत्यु होती है| ऐसे व्यक्ति में धर्मान्धता भी होती है ।
ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा काटने के पहले ही समाप्त हो जावे तो सिर में चोट तो लगेगी किन्तु प्राण-रक्षा हो जावेगी । धर्मान्धता भी अधिक नहीं होगी ।
12) (क) यदि शीर्ष-रेखा सूर्य-क्षेत्र के नीचे तक सीधी आवे फिर एकदम हृदय-रेखा को काटती हुई सूर्य-क्षेत्र की ओर मुड़ जावे तो जातक को साहित्य या कला का अत्यधिक व्यसन होगा ।
(ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा को न काटे तो साहित्य या कला में सफलता प्राप्त होने का लक्षण है ।
ग) यदि हाथ के अन्य लक्षण (यथा उंगलियों की बनावट, ग्रहों के क्षेत्र, भाग्य-रेखा आदि) उपर्युक्त सफलता के प्रतिकूल हों तो केवल देती रेखा का परिणाम यह होता है कि जातक बिना अधिक परिश्रम किये धनी होने की इच्छा रखता है ।
13) यदि ऊपर (ख) भाग में जैसा आकार बताया गया है वैसा आकार हो किन्तु सूर्य-क्षेत्र की बजाय सूर्य-क्षेत्र तथा बुध-क्षेत्र के बीच के भाग की ओर मुड़कर जावे और हृदय-रेखा को न काटे तो ऐसा जातक कला को व्यापारिक रूप देकर, या व्यापारिक वस्तु को कला से विशेष उत्कृष्ट बना, सफलता प्राप्त करता है ।
14) यदि शीर्ष-रेखा मंगल के प्रथम-क्षेत्र तक आवे और फिर मुड़कर बुचंक्षेत्र वाले हृदय-रेखा के भाग से स्पर्श कर (क) समाप्त हो जावे या (ख) ह्रदय-रेखा का बिना स्पर्श किये समाप्त हो जावे या (ग) हृदय-रेखा को काटकर बुघ-क्षेत्र पर पहुँच जाय तो फलादेश निम्नलिखित होगा ।
(क) मस्तिष्क में चक्कर आने का रोग ।
(ख) लोगों की नकल बनाने का हुनर (जैसे नाटक इत्यादि में मनोरंजन के लिये किया जाता है) ।
(ग) प्रबन्ध-कुशलता, चतुरता, नीतिज्ञता । यदि हाथ में अन्य लक्षण अच्छे न हों तो ऐसा व्यक्ति धोखेबाज होता है ।
15) यदि शीर्ष-रेखा मंगल-क्षेत्र को पार कर हथेली के बाहर तक जावे और स्वास्थ्य-रेखा अच्छी हो तो स्मरणशक्ति अच्छी होती है ।
16) यदि उपर्युक्त प्रकार की सीधी शीर्ष-रेखा हो, अंगूठा भीतर की ओर झुका हो, बृहस्पति तथा शुक के पर्वत उन्नत न हों, तथा उगलियाँ परस्पर भिड़ी हों तो जातक स्वार्थी, अनुदार और कंजूस होता है । .
17) यदि शीर्ष-रेखा के अन्त में दो शाखा हो जावें (एक प्रधान रेखा तथा एक छोटी-सी शाखा) तो कल्पना पर व्यावहारिक बुद्धि का संयम रहता है ।
साधारणत: इस प्रकार की शीर्ष-रेखा की समाप्ति अच्छी समझी जाती है । किन्तु यदि हथेली मोटी और मुलायम हो, अँगूठा छोटा हो और उगलियों के तृतीय पर्व फूले हुए और उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो तो जातक विश्वास के योग्य नहीं होता । ऐसे व्यक्ति में कामुकता तथा सुस्ती होती है ।
18) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सुन्दर हो व मंगलक्षेत्र पर जाकर समाप्त होवे किन्तु एक बहुत बडी शाखा शीर्ष-रेखा से निकलकर चन्द्रक्षेत्र पर नीचे तक जावे तो जातक धोखा नहीं देता ।
19) यदि शीर्ष-रेखा अन्त में दो शाखायुक्त हो जावे एक शाखा हृदय-रेखा को काटती हुई बुध क्षेत्र पर जावे दूसरी नीचे की ओर चन्द्र-क्षेत्र पर तो जातक चालाक, व्यापार में (ईमानदारी या बेईमानी से भी) घन कमाने वाला तथा दूसरों पर प्रभाव जमा सकता है ।
20) यदि शीर्ष-रेखा की एक शाखा चन्द्र-गोत्र पर जावे तथा दूसरी शाखा जाकर हृदय-रेखा से स्पर्श करे तो जातक प्रेम के पीछे सर्वस्व बलिदान करने के लिये सन्नद्ध रहेगा । यदि उपर्युक्त लक्षण के साथ-साथ भाग्य-रेखा का भी हृदय- रेखा तक जाकर अन्त हो जावे तो 'प्रेम' के कारण जातक का आर्थिक सर्वनाश समझना चाहिये ।
21) यदि शीर्ष-रेखा अन्त में दो शाखाओं में विभक्त हो जावे और दोनों शाखाएँ चन्द्र-क्षेम पर जावें तो दिमाग खराब हो जाता है (कल्पना का आधिक्य ही पागलपन है) है |
1) यदि चन्द्र-क्षेत्र को ओर झुकी हो या उस क्षेत्र पर शाखा रेखा जावे तो कल्पना, गुप्त विद्या, प्रेम आदि की ओर मस्तिष्क का झुकाव होता है ।
2) बुध- क्षेत्र पर या उस ओर झुकी हो-विज्ञान या व्यापार में कुशलता ।
3)सूर्य-क्षेत्र पर या उस ओर जावे
4) शनि-क्षेत्र पर या उस ओर जावे-विचार-गम्भीर्य संगीत तथा धार्मिकता ।
5) बृहस्पति-गोत्र-यदि शाखा वृहस्पति-क्षेत्र पर जावे तो हुकूमत की इच्छा तथा अभिमान ।
6) यदि शीर्ष-रेखा से निकलकर कोई रेखा जाकर हृदय- रेखा में मिल जावे तो समझना चाहिये कि जातक का किसी से अत्यन्त प्रेम और गाढा अनुराग होने का लक्षण है । इस प्रकार का यह प्रेम इतना आत्यन्तिक तथा तीव्र होगा कि मनुष्य किसी लाभ, हानि आशंका या मर्यादा की परवाह न कर उसके वशीभूत हो जायगा ।
7) यदि शीर्ष-रेखा शनि-क्षेत्र के ही नीचे समाप्त हो जाने तो समय से पहले आकस्मिक मृत्यु हो या उस अवस्था पर दिमाग पूरा काम करना बन्द कर दे व नया दिमागी काम न कर सके ।
8) यदि हाथ के मध्य में समाप्त हो जावे और (क) सूर्य तथा वृहस्पति के क्षेत्र उन्नत न हों तो बुद्धि की कसी (ख) मंगल-क्षेत्र नीचा हो तो साहस तथा उत्साह की कमी ।
9) यदि भाग्य-रेखा से योग करने के पहले ही शीर्ष-रेखा का अन्त हो जावे तो दुवे-जीवन तया अकाल-मृत्यु हो ।
10) यदि शीर्ष-रेखा मंगल के प्रथम क्षेत्र तक लम्बी जावे और वहाँ अंकुश की तरह नीचे की ओर मुड़ जावे तो अत्यधिक आत्म-विश्वास एवं अभिमान के कारण जातक कष्ट उठाता है ।
11) (क) यदि शीर्ष-रेखा शनि-क्षेत्र के नीचे तक तो सीधी जावे और फिर मुड़कर ह्रदय-रेखा को काटती हुई शनि-क्षेत्र के ऊपर जाकर समाप्त हो जावे तो सिर में चोट लगने से मृत्यु होती है| ऐसे व्यक्ति में धर्मान्धता भी होती है ।
ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा काटने के पहले ही समाप्त हो जावे तो सिर में चोट तो लगेगी किन्तु प्राण-रक्षा हो जावेगी । धर्मान्धता भी अधिक नहीं होगी ।
12) (क) यदि शीर्ष-रेखा सूर्य-क्षेत्र के नीचे तक सीधी आवे फिर एकदम हृदय-रेखा को काटती हुई सूर्य-क्षेत्र की ओर मुड़ जावे तो जातक को साहित्य या कला का अत्यधिक व्यसन होगा ।
(ख) यदि उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो किन्तु हृदय-रेखा को न काटे तो साहित्य या कला में सफलता प्राप्त होने का लक्षण है ।
ग) यदि हाथ के अन्य लक्षण (यथा उंगलियों की बनावट, ग्रहों के क्षेत्र, भाग्य-रेखा आदि) उपर्युक्त सफलता के प्रतिकूल हों तो केवल देती रेखा का परिणाम यह होता है कि जातक बिना अधिक परिश्रम किये धनी होने की इच्छा रखता है ।
13) यदि ऊपर (ख) भाग में जैसा आकार बताया गया है वैसा आकार हो किन्तु सूर्य-क्षेत्र की बजाय सूर्य-क्षेत्र तथा बुध-क्षेत्र के बीच के भाग की ओर मुड़कर जावे और हृदय-रेखा को न काटे तो ऐसा जातक कला को व्यापारिक रूप देकर, या व्यापारिक वस्तु को कला से विशेष उत्कृष्ट बना, सफलता प्राप्त करता है ।
14) यदि शीर्ष-रेखा मंगल के प्रथम-क्षेत्र तक आवे और फिर मुड़कर बुचंक्षेत्र वाले हृदय-रेखा के भाग से स्पर्श कर (क) समाप्त हो जावे या (ख) ह्रदय-रेखा का बिना स्पर्श किये समाप्त हो जावे या (ग) हृदय-रेखा को काटकर बुघ-क्षेत्र पर पहुँच जाय तो फलादेश निम्नलिखित होगा ।
(क) मस्तिष्क में चक्कर आने का रोग ।
(ख) लोगों की नकल बनाने का हुनर (जैसे नाटक इत्यादि में मनोरंजन के लिये किया जाता है) ।
(ग) प्रबन्ध-कुशलता, चतुरता, नीतिज्ञता । यदि हाथ में अन्य लक्षण अच्छे न हों तो ऐसा व्यक्ति धोखेबाज होता है ।
15) यदि शीर्ष-रेखा मंगल-क्षेत्र को पार कर हथेली के बाहर तक जावे और स्वास्थ्य-रेखा अच्छी हो तो स्मरणशक्ति अच्छी होती है ।
16) यदि उपर्युक्त प्रकार की सीधी शीर्ष-रेखा हो, अंगूठा भीतर की ओर झुका हो, बृहस्पति तथा शुक के पर्वत उन्नत न हों, तथा उगलियाँ परस्पर भिड़ी हों तो जातक स्वार्थी, अनुदार और कंजूस होता है । .
17) यदि शीर्ष-रेखा के अन्त में दो शाखा हो जावें (एक प्रधान रेखा तथा एक छोटी-सी शाखा) तो कल्पना पर व्यावहारिक बुद्धि का संयम रहता है ।
साधारणत: इस प्रकार की शीर्ष-रेखा की समाप्ति अच्छी समझी जाती है । किन्तु यदि हथेली मोटी और मुलायम हो, अँगूठा छोटा हो और उगलियों के तृतीय पर्व फूले हुए और उपर्युक्त प्रकार की शीर्ष-रेखा हो तो जातक विश्वास के योग्य नहीं होता । ऐसे व्यक्ति में कामुकता तथा सुस्ती होती है ।
18) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सुन्दर हो व मंगलक्षेत्र पर जाकर समाप्त होवे किन्तु एक बहुत बडी शाखा शीर्ष-रेखा से निकलकर चन्द्रक्षेत्र पर नीचे तक जावे तो जातक धोखा नहीं देता ।
19) यदि शीर्ष-रेखा अन्त में दो शाखायुक्त हो जावे एक शाखा हृदय-रेखा को काटती हुई बुध क्षेत्र पर जावे दूसरी नीचे की ओर चन्द्र-क्षेत्र पर तो जातक चालाक, व्यापार में (ईमानदारी या बेईमानी से भी) घन कमाने वाला तथा दूसरों पर प्रभाव जमा सकता है ।
20) यदि शीर्ष-रेखा की एक शाखा चन्द्र-गोत्र पर जावे तथा दूसरी शाखा जाकर हृदय-रेखा से स्पर्श करे तो जातक प्रेम के पीछे सर्वस्व बलिदान करने के लिये सन्नद्ध रहेगा । यदि उपर्युक्त लक्षण के साथ-साथ भाग्य-रेखा का भी हृदय- रेखा तक जाकर अन्त हो जावे तो 'प्रेम' के कारण जातक का आर्थिक सर्वनाश समझना चाहिये ।
21) यदि शीर्ष-रेखा अन्त में दो शाखाओं में विभक्त हो जावे और दोनों शाखाएँ चन्द्र-क्षेम पर जावें तो दिमाग खराब हो जाता है (कल्पना का आधिक्य ही पागलपन है) है |
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