(1) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सुन्दर हो और शुक-क्षेत्र अति उच्च न हो तो जातक का प्रेम अपनी पत्नी (या पति) तक ही सीमित रहता है । अपने दाम्पत्य कर्तव्य-पालन की ओर ध्यान, आत्मसंयम तथा विशेष कामुकता न होने से सतीत्व या एकपस्वीत्व
गुण होता है ।
(2) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सुन्दर हो और मंगल, बुध तथा बृहस्पति के क्षेत्र उन्नत तथा विस्तीर्ण हों तो एकाग्रचित्तता (अध्ययन-विचार, किंवा आध्यात्मिक उन्नति के लिये) का गुण होता है । ऐसा जातक किसी विषय पर अपने चित्त को एकाग्र कर सकता है ।
3) यदि दोनो हाथों में शीर्ष-रेखा लम्बी तथा चन्द्र-गोत्र की ओर घुमावदार हो, चन्द्र-क्षेत्र बलवान हो और अनामिका तथा मध्यमा बराबर लम्बी हो तो जातक ऐसा व्यापारिक कार्य करता है जिसमें एकदम बहुत लाभ हो या चाहे घाटा ही हो जावे (यथा शेयर, चाँदी, रुई आदि का सट्टा) ।
4) शीर्ष-रेखा लम्बी और चन्द्र-क्षेत्र की ओर घूमी हुई हो, बृहस्पति-क्षेत्र अति उच्च हो और उस पर जाल-चिह्न हो तो प्रसिध्द राजनीतिक वक्ता होता है । उसका भाषण बहुत ओजस्वी और प्रभावपूर्ण होता है । जाल-चिह्न जहाँ होता है उस स्थान के गुण को बढा देता है, किन्तु उस गुण का जातक सदुपयोग न कर दुरुपयोग करता है (यथा-राजनीति में प्राय: ओजस्विता पार्टीबांजी के ही उपयोग में आती है) ।
5) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सीधी हो, हाथ लम्बे हों और हाथों की उँगलियाँ भी लम्बी हों तो ऐसा जातक प्रत्येक बात के विवरण की जाच-पड़ताल करता है (उदाहरण केलिये यदि वह दावत देगा तो क्या-क्या भोजन बनेगा, क्या चीज क्या भाव आई, कौन मेहमान कहाँ बैठेगा आदि छोटी-से-ओटी बात के विश्लेषण और प्रबन्ध की ओर ध्यान देगा ) ।
6) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सीधी हो किन्तु उंगलियों में गांठे बहुत निकली हों और चिटत्ती उगली बहुत छोटी हो तो जातक में व्यावहारिक कुशलता या नीतिज्ञता नहीं होती ।
7) शीर्ष-रेखा सारी हथेली पर फैली हुई हो और यकृत-रेखा साफ तथा सीधी हो और अधिक चौडी न हो तो स्मरण-शक्ति अच्छी होती है ।
8) (क) यदि, सारी हथेली पर सेसिल की भांति बिलकुल सीधी रेखा हो और जीवन-रेखा, शीर्ष-रेखा तथा भाग्य-रेखा से सुन्दर त्रिकोण न बनता हो तो लोभ की प्रवृत्ति अधिक होती है । यदि शीर्ष-रेखा के मध्य भाग में बिलकुल झुकाव या गोलाई न हो तो उदारता या उपकार-बुद्धि या दूसरे की बात मान जाना यह गुण नहीं होता ।
(ख) यदि सूर्य तथा वृहस्पति के क्षेत्र उन्नत और विस्तीर्ण हों या अन्य शुभ लक्षणों से युक्त हों, तर्जनी का अग्रभाग नुकीला हो तथा शीर्ष-रेखा लम्बी, सीधी और स्पष्ट हो तो जातक पढ़ने का शौकीन होता है ।
9) यदि शीर्ष-रेंखा लम्बी तथा सुन्दर हो तथा शीर्ष एवं हृदय-रेखा के बीच का भाग चौडा हो, तर्जनी का अग्रभाग नुकीला व अन्य उँगलियों का अग्रभाग चतु७कोणाकार हो तो जातक में न्याय प्रियता होती है । वह सबके साथ इन्साफ़ चाहता है और किसी का हक नहीं छीनना चाहता ।
10) यदि यह रेखा तथा हृदय-रेखा भी-दोनों लम्बी और सुंदर हों और जीवन- रेखा के अन्तिम भाग पर त्रिकोण चिह्न हो तो जातक में नीतिज्ञता, बुद्धिपूर्वेक कार्य साधन की योग्यता होती है ।
11) यदि शीर्ष तथा हृदय-रेखाएँ लम्बी और अच्छी हों और तर्जनी विशेष लम्बी हो तो ऐसा जातक अपने दोस्ती की खातिरदारी, दावत आदि तो खूब करता है किन्तु उसकी दोस्ती इतने तक ही सीमित रहती है ।
12) यदि शीर्ष-रेखा बिलकुल सीधी (डंडे की तरह) हो और हृदय-रेखा अच्छी न हो तो जातक स्वयं अपने भोगविलास पर व्यय करेगा, अन्य लोगों के लिए नहीं ।
13) यदि सूर्य-रेखा लम्बी हो, मलिमा-अनामिका बराबर हो और शीर्ष-रेखा लम्बी व चन्द्र-शेत्र की ओर झुकी हुई हो तो जातक ऐसी यात्रायें करता है जो भय से खाली न हो (यथा जंगलों में, तूफानी समुद्रो में, वायुयानों के उडान-प्रदर्शन में) ।
14) यदि शीर्ष-रेखा छोटी हो, साथ ही हृदय-रेखा भी अच्छी न हो और जीवन-रेखा के अन्त भाग पर त्रिकोण-चिह्न हो तो ऐसा आदमी बहुत बोलता है, जिसका उसके लिये शुभ परिणाम न होकर अशुभ परिणाम ही होता है । बुद्धि की कमी तथा कूर प्रकृति होने से मनुष्य उचित-अनुचित अवसर का विचार न कर पर-निन्दक होता है ।
15) यदि बृहस्पति-क्षेत्र तो अवनत (नीचा) हो और शुक तथा चन्द्रमा के क्षेत्र उन्नत हों, और शीर्ष-रेखा छोटी हो तो जातक आरामपसन्द तथा सुस्त होता है । बृहस्पति का क्षेत्र नीचा रहने से महत्वाकांक्षा नहीं होती ।
16) यदि शीर्ष-रेखा छोटी हो, शुक्र-क्षेत्र नीचा हो, शीर्ष-रेखा तथा हृदय-रेखा का मध्यभाग सकड़ा हो तो मानसिक (ह्रदय की) क्षुद्रता तथा अनुदारता का लक्षण है । यदि चन्द्र-क्षेत्र नीचा हो तो दूसरों के साथ सहानुभूति नहीं होती |
गुण होता है ।
(2) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सुन्दर हो और मंगल, बुध तथा बृहस्पति के क्षेत्र उन्नत तथा विस्तीर्ण हों तो एकाग्रचित्तता (अध्ययन-विचार, किंवा आध्यात्मिक उन्नति के लिये) का गुण होता है । ऐसा जातक किसी विषय पर अपने चित्त को एकाग्र कर सकता है ।
3) यदि दोनो हाथों में शीर्ष-रेखा लम्बी तथा चन्द्र-गोत्र की ओर घुमावदार हो, चन्द्र-क्षेत्र बलवान हो और अनामिका तथा मध्यमा बराबर लम्बी हो तो जातक ऐसा व्यापारिक कार्य करता है जिसमें एकदम बहुत लाभ हो या चाहे घाटा ही हो जावे (यथा शेयर, चाँदी, रुई आदि का सट्टा) ।
4) शीर्ष-रेखा लम्बी और चन्द्र-क्षेत्र की ओर घूमी हुई हो, बृहस्पति-क्षेत्र अति उच्च हो और उस पर जाल-चिह्न हो तो प्रसिध्द राजनीतिक वक्ता होता है । उसका भाषण बहुत ओजस्वी और प्रभावपूर्ण होता है । जाल-चिह्न जहाँ होता है उस स्थान के गुण को बढा देता है, किन्तु उस गुण का जातक सदुपयोग न कर दुरुपयोग करता है (यथा-राजनीति में प्राय: ओजस्विता पार्टीबांजी के ही उपयोग में आती है) ।
5) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सीधी हो, हाथ लम्बे हों और हाथों की उँगलियाँ भी लम्बी हों तो ऐसा जातक प्रत्येक बात के विवरण की जाच-पड़ताल करता है (उदाहरण केलिये यदि वह दावत देगा तो क्या-क्या भोजन बनेगा, क्या चीज क्या भाव आई, कौन मेहमान कहाँ बैठेगा आदि छोटी-से-ओटी बात के विश्लेषण और प्रबन्ध की ओर ध्यान देगा ) ।
6) यदि शीर्ष-रेखा लम्बी और सीधी हो किन्तु उंगलियों में गांठे बहुत निकली हों और चिटत्ती उगली बहुत छोटी हो तो जातक में व्यावहारिक कुशलता या नीतिज्ञता नहीं होती ।
7) शीर्ष-रेखा सारी हथेली पर फैली हुई हो और यकृत-रेखा साफ तथा सीधी हो और अधिक चौडी न हो तो स्मरण-शक्ति अच्छी होती है ।
8) (क) यदि, सारी हथेली पर सेसिल की भांति बिलकुल सीधी रेखा हो और जीवन-रेखा, शीर्ष-रेखा तथा भाग्य-रेखा से सुन्दर त्रिकोण न बनता हो तो लोभ की प्रवृत्ति अधिक होती है । यदि शीर्ष-रेखा के मध्य भाग में बिलकुल झुकाव या गोलाई न हो तो उदारता या उपकार-बुद्धि या दूसरे की बात मान जाना यह गुण नहीं होता ।
(ख) यदि सूर्य तथा वृहस्पति के क्षेत्र उन्नत और विस्तीर्ण हों या अन्य शुभ लक्षणों से युक्त हों, तर्जनी का अग्रभाग नुकीला हो तथा शीर्ष-रेखा लम्बी, सीधी और स्पष्ट हो तो जातक पढ़ने का शौकीन होता है ।
9) यदि शीर्ष-रेंखा लम्बी तथा सुन्दर हो तथा शीर्ष एवं हृदय-रेखा के बीच का भाग चौडा हो, तर्जनी का अग्रभाग नुकीला व अन्य उँगलियों का अग्रभाग चतु७कोणाकार हो तो जातक में न्याय प्रियता होती है । वह सबके साथ इन्साफ़ चाहता है और किसी का हक नहीं छीनना चाहता ।
10) यदि यह रेखा तथा हृदय-रेखा भी-दोनों लम्बी और सुंदर हों और जीवन- रेखा के अन्तिम भाग पर त्रिकोण चिह्न हो तो जातक में नीतिज्ञता, बुद्धिपूर्वेक कार्य साधन की योग्यता होती है ।
11) यदि शीर्ष तथा हृदय-रेखाएँ लम्बी और अच्छी हों और तर्जनी विशेष लम्बी हो तो ऐसा जातक अपने दोस्ती की खातिरदारी, दावत आदि तो खूब करता है किन्तु उसकी दोस्ती इतने तक ही सीमित रहती है ।
12) यदि शीर्ष-रेखा बिलकुल सीधी (डंडे की तरह) हो और हृदय-रेखा अच्छी न हो तो जातक स्वयं अपने भोगविलास पर व्यय करेगा, अन्य लोगों के लिए नहीं ।
13) यदि सूर्य-रेखा लम्बी हो, मलिमा-अनामिका बराबर हो और शीर्ष-रेखा लम्बी व चन्द्र-शेत्र की ओर झुकी हुई हो तो जातक ऐसी यात्रायें करता है जो भय से खाली न हो (यथा जंगलों में, तूफानी समुद्रो में, वायुयानों के उडान-प्रदर्शन में) ।
14) यदि शीर्ष-रेखा छोटी हो, साथ ही हृदय-रेखा भी अच्छी न हो और जीवन-रेखा के अन्त भाग पर त्रिकोण-चिह्न हो तो ऐसा आदमी बहुत बोलता है, जिसका उसके लिये शुभ परिणाम न होकर अशुभ परिणाम ही होता है । बुद्धि की कमी तथा कूर प्रकृति होने से मनुष्य उचित-अनुचित अवसर का विचार न कर पर-निन्दक होता है ।
15) यदि बृहस्पति-क्षेत्र तो अवनत (नीचा) हो और शुक तथा चन्द्रमा के क्षेत्र उन्नत हों, और शीर्ष-रेखा छोटी हो तो जातक आरामपसन्द तथा सुस्त होता है । बृहस्पति का क्षेत्र नीचा रहने से महत्वाकांक्षा नहीं होती ।
16) यदि शीर्ष-रेखा छोटी हो, शुक्र-क्षेत्र नीचा हो, शीर्ष-रेखा तथा हृदय-रेखा का मध्यभाग सकड़ा हो तो मानसिक (ह्रदय की) क्षुद्रता तथा अनुदारता का लक्षण है । यदि चन्द्र-क्षेत्र नीचा हो तो दूसरों के साथ सहानुभूति नहीं होती |
Pt.P.S.Tripathi
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Feel free to ask any questions
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