जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है जिसके लिए कई बार जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है। ऐसी कुंडली में गुरु चांडाल योग बनता है जिसके दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है तथा ऐसा जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु को चांडाल माना गया है किसी कुंडली में राहु का गुरु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है जिसके चलते जिस भाव में योग फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है। यदि जन्म कुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो जीवन में कष्ट कई गुना बढ़ जाता है। इसकी शांति हेतु राहु की शांति, गुरूवार को भगवान विष्णु की पूजा, मंत्रजाप एवं एकादशी को किसी बुजूर्ग को एक आहार देवें इससे जीवन में सुचिता एवं यश की प्राप्ति होगी।
Pt.P.S.Tripathi
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