शनि धामों में अनेक शनितीर्थ क्षेत्र ऐसे हैं, जिनका पौराणिक ग्रंथों में जिक्र है और कई तीर्थ क्षेत्र ऐसे हैं जिनका पौराणिक कथाओं में जिक्र तो नहीं है, किंतु वे अपनी महिमा के कारण लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बने हुए हैं। शनि के 8 अंक की प्रधानता के कारण ही 8 तीर्थ क्षेत्र शनि तीर्थों के अंतर्गत आते हैं। मोक्ष की प्राप्ति की कामना से लोग इन आठों तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करते है। धामों का जिक्र जहां आता है, वहां पर ढाई धाम शनिदेव जी के लिए बड़े ही श्रेष्ठ माने जाते हैं। जब भी किसी पर शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैया आती है, तब वह शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और शनि दशा को शुभफलकारी बनाने के लिए शनि धामों की यात्रा करता है। शनि धाम के अंतर्गत तीन क्षेत्र आते हैं। दो क्षेत्रों को पूरा धाम और एक क्षेत्र को आधा धाम माना जाता है। शनि देव की श्रद्धा भक्ति में महाराष्ट्र क्षेत्र सबसे आगे है। महाराष्ट्र के मूल निवासियों के घरों में से 70 प्रतिशत घरों में मराठी भाषा में प्रचलित पौराणिक ‘‘शनि माहात्म्य’’ ग्रंथ (पोथी) देखी गई है, जहां पुरानी पीढ़ी से शिक्षा पाकर 50 प्रतिशत नई पीढ़ी भी दैनिक साधना में शनि पोथी का पाठ करती है। महाराष्ट्र के प्रत्येक नगर, जिले, कस्बे व गांव में शनि मंदिर स्थापित हैं। महाराष्ट्र में पुराणकालीन शनि मंदिर भी हैं और सन् 1857 ई. के बाद से राजा महाराजाओं द्वारा पौराणिक गाथाओं और प्रसंगों के अनुसार निर्मित शनि मंदिर भी जिनमें गरुड़ पर सवार शनि की मूर्तियां स्थापित हैं। हाल में पौराणिक मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ है, पर मूर्ति वैसी की वैसी ही है। महाराष्ट्र के अधिकतर क्षेत्रों में गरुड़ पर सवार शनिदेव जी की मूर्तियां स्थापित हैं। सिंहासन रथ पर सवार शनिदेव जी पूरे भारत वर्ष में प्रचलित हैं। भारत के प्रमुख धार्मिक स्थानों में रथ पर सवार शनिदेव जी (प्रसन्न मुद्रा में) कौए के साथ देखने में आते हैं। दक्षिण भारत में 80 प्रतिशत क्षेत्र में कौओं के साथ शनिदेव जी के दर्शन होते हैं। शनिदेव जी की मूर्ति के आगे, पीछे या बगल में कौआ जरूर दिखाया जाता है। कौए की सवारी वाले शनिदेव तमिलनाडु क्षेत्र में अधिक हैं। इस संबंध में एक कथा भी प्रचलित है, जो प्रेरणादायी भी है। वहां के भक्त बताते हैं कि कौओं में बहुत सारी ऐसी विशेषताएं हैं, जो इन्सानों में नहीं हैं। उसके गुणों के कारण ही शनिदेव जी का प्यार उसे मिला है। हम कौए को कभी एक रोटी डालते हैं तो वह कभी भी अकेला नहीं खाता है। कांव-कांव करके अनेक साथियों को पहले बुला लेता है। फिर मिल बैठकर सभी बांटकर उसके टुकड़े करके खाते हैं। वह कौआ ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना रखता है। कहता है कि अपनी रोटी मिल बांटकर खाओ ताकि तुम्हारे परिवार के सारे लोग सुखी रह सकें और एकता में बंधे रहें। कौए को इसीलिए शनिदेव ने यह वरदान दिया कि पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) में तुम्हारा मान बढ़ेगा, लोग पितरों की शांति के लिये तुम्हें बुला बुलाकर भोजन कराएंगे। अंततः शनिदेव जी, जो पूर्व जन्म के पुण्य/पाप का फल भी लोगों को देते हैं, इस कौए के भोज के द्वारा पूर्व पापों का प्रायश्चित भी स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि दक्षिण भारत के शनि क्षेत्रों में कौए को शनिवार को भोजन कराने की परंपरा है। फिर कौए का रंग काला होने से उसे डाला गया अन्न शनिदान के रूप में बड़ा पुण्य फल भी दे जाता है। श्री शनि क्षेत्र शिगणापुर महाराष्ट्र महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले के शिगणापुर गांव में यह शनिक्षेत्र है। यह औरंगाबाद से लगभग 100 किमी. और साईं बाबा की शिरडी से 80 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। अहमदनगर जिले से इसकी दूरी 30 कि.मी. है। तब से शनिवार हो या रविवार, प्रतिदिन हजारों की संख्या में शनि भक्त यहां आकर स्वयंभू शनिमूर्ति पर तेल का अभिषेक किया करते हैं। इस क्षेत्र के बारे में कहावत प्रचलित है- देव है देवालय नहीं घर है द्वार नहीं वृक्ष है पर छाया नहीं। 15 फुट लंबे, 15 फुट चैड़े व 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर ‘1’ आकार की 5 फुट 8 इंच लंबी स्वयंभू प्रतिमा विराजमान है। जब भी भक्तों ने यहां मंदिर, छत व शिखर का निर्माण किया, वह दूसरी ही रात्रि को ढह गया। शनिदेव भक्तों से स्वप्न में आकर कह गए कि मैं छायानंदन हूं, मुझे छाया की जरूरत नहीं है। लोगों की मान्यता है कि यहां कोई चोरी नहीं कर सकता है। यदि कोई चोरी करता भी है तो अंधा या कोढ़ी होकर फिर वापस शनि दरबार में माफी मांगने व अमानत लौटाने आता है। शनि प्रतिमा के पास एक बड़ा वृक्ष है, उसमें छाया नहीं है। इसके संदर्भ में एक पौराणिक कथा है कि एक बार यहां पत्थर की मूर्ति बहती हुई आई। वहां पशु चराने वाले ग्वालों ने लकड़ी से उसे छेड़ा, तो जहां लकड़ी की चोटें लगीं वहां से खून बहने लगा। तब बच्चों ने अपने घर जाकर माता-पिता को यह समाचार सुनाया और उनके माता-पिता ने गांव वालों को इकट्ठा करके मूर्ति को निकालना चाहा, पर मूर्ति किसी से नहीं उठी। थककर सभी सो गए। तब वहां के प्रसिद्ध सच्चे शनि भक्त ‘उदासी महाराज’ के स्वप्न में आकर शनिदेव जी बोले- ‘‘मैं शनि हूं, कलयुग के कल्याण के लिए यहां आया हूं। इस गांव में जो भी मामा-भांजा होंगे, वे व्रत करके मुझे सच्ची श्रद्धा से उठाएंगे तो मैं उठ जाऊंगा, यहां मेरी स्थापना करो।’’ दूसरे दिन ऐसा ही हुआ, एक चबूतरा तैयार कराकर शनिमूर्ति को मामा भांजे के सहयोग से स्थापित किया गया। लोगों को उनकी श्रद्धा से फलों की प्राप्ति होने लगी, धीरे-धीरे वहां सारी सुविधाएं आने लगीं। बाजार आदि बन गए। आज शनि अमावस्या और शनि जयंती पर्व पर लाखों लोग वहां दर्शन करके अपनी शनि पीड़ा शांत करते हैं। शनि तीर्थ बिरझापुर इस शनिधाम की स्थापना अप्रैल 1995 में हुई। यहां शनिदेव के साथ राहु-केतु की एक-एक फुट वाली दो मूर्तियां भी हैं। यह स्थान दुर्ग जिले से 30 कि.मी. दूर बिरझापुर गांव में आधा एकड़ की भूमि में है। इसमें स्थापित शनि बिल्कुल शिगणापुर के शनि महाराज जी ही लगते हैं। यहां सपत्नीक शनि पूजन होता है और महिलाएं भी अकेले पूजन कर सकती हैं। आज भी प्रति शनिवार, अमावस्या और शनि जयंती पर हजारों भक्तगण यहां आते हैं। शनि धाम सिडको सन् 1999 में महाराष्ट्र में एन-2 सिडको के पास एक अभिषिक्त मूर्ति के शनि मंदिर व एक साढ़े 5 फुट की हाथी पर सवार विशाल सेनापति स्वरूप राजकुमार शनि मूर्ति का देवालय स्थापित हुआ। यहां से 10 कि. मी. की दूरी पर 4 एकड़ की भूमि में शनि आश्रम है, जिसकी स्थापना 3 सितंबर 2005 की शनैश्चरी अमावस्या को हुई। भक्तों की बढ़ती भीड़ को देखकर 6 माह के अंदर ही वहां महाराष्ट्र सरकार द्वारा शनि आश्रम तक पहुंचने वाली कच्ची सड़क को पक्की डामर सड़क का रूप दे दिया गया। बड़ा शनैश्वर धाम तमिलनाडु क्षेत्र में पांडिचेरी क्षेत्र से 120 कि. मी. की दूरी पर तिरुनल्लार ग्राम में शनि महाराज बड़ा शनैश्वर तीर्थ के रूप में राजा नल के समय से विराजमान हैं। राजा नल को जब शनि की दशा आई थी तब नल और दमयंती बिछुड़ गए थे। तब दमयंती ने अपने पति की वापसी, सलामती और उनके खोए हुए राज्य की प्राप्ति के लिए अपने पिता के सहयोग से यहां बड़े शनैश्वर जी का मंदिर बनवाया था। तिरु अर्थात् क्षेत्र, नल्लार अर्थात् राज नल का। शनिकृपा से राजा नल की वापसी हुई, उनका खोया हुआ वैभव उन्हंे मिला। इस क्षेत्र के संबंध में कई आंखों देखी प्रेरणादायी बातें प्रचलित हैं। कोकिला वन में शनि धाम दिल्ली (राजधानी) से 120 कि. मी. की दूरी पर मथुरा जिले (उ. प्र.) में मथुरा से 40 किलोमीटर की दूरी पर कोसी तहसील में कोकिलावन ग्राम में शनि महाराज भगवान श्री कृष्ण के द्वापर युग से विराजमान हैं। मुख्य कथाओं में प्रसंग है कि जब शनि देव श्रीकृष्ण भगवान के जन्मोत्सव पर उनका बाल रूप देखने गए, तब यशोदा मां ने उन्हें दर्शन नहीं करने दिए और कहा कि तुम्हारा रूप देखकर मेरा कान्हा डर जाएगा। श्रीकृष्ण भगवान झूला तोड़कर, घुटनों के बल चलकर शनिदेव के पास पहुंच गए और मन ही मन में बातें भी कीं- शनिदेव तुम कोकिलावन में पीपल के नीचे मेरा इंतजार करो, मैं उत्सव पूरा होने पर वहां पहुंचंूगा। रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण भगवान ने शनिदेव को दर्शन दिए और कहा कि यहां मेरे मंदिर (बांके बिहारी) के साथ तुम्हारा मंदिर भी बनेगा। जो भक्त तुम्हारे दर्शन के बाद मेरे दर्शन करेंगे, उनके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। उज्जैन के शनिदेव जी मध्यप्रदेश उज्जैन में इंदौर मार्ग पर उज्जैन शहर से 20 किमी. की दूरी पर नवग्रह शनि मंदिर है जिसकी स्थापना शनि भक्त राजा विक्रमादित्य ने की थी। इसे शनि के ढाई धामों में पूरा एक धाम कहा जाता है। यहां शनिदेव अपने ढैया व साढ़ेसाती रूप के साथ विराजमान हैं। नस्तनपुर के शनिदेव जी महाराष्ट्र के नासिक जिले में नंदगांव तहसील से 15 कि.मी. और औरंगाबाद से 140 कि.मी. की दूरी पर शनिदेव जी का आधा धाम स्थित है, जिसका उल्लेख रामायण में मिलता है। भगवान राम ने इसकी स्थापना की थी। भगवान राम जब सूर्य उपासना कर रहे थे, बनवास के समय, जब विजय प्राप्ति की कामना कर रहे थे, तब भगवान सूर्यदेवता ने शनि मूर्ति (जो ढाई फुट की है और गरुड़ पर सवार है) रामजी के हाथों में प्रगट की थी। पौराणिक कथाओं के आधार पर तब से यहां शनिदेव जी की पूजा होती है। रामायण में जो नंदनवन था, वही आज नंदगांव कहलाता हैै। बीड़ का राक्षस भुवन श्री शनि क्षेत्र महाराष्ट्र के बीड़ जिले से 25 किमी. की दूरी पर औरंगाबाद - बीड़ हाईवे पर राक्षस भुवन गांव में सड़क से 8 कि.मी. अंदर यह श्री शनि क्षेत्र स्थित है। कहते हैं यहां जब राक्षसों का आतंक बढ़ गया था तब, अगस्त ऋषि के सहयोग से राक्षसों का संहार करने के लिए गुरु बृहस्पति देवता के साथ भगवान राम ने शनिदेव की मूर्ति की स्थापना उनके ढैया व साढ़ेसाती दोनों रूपों के साथ की थी। गंगा और गोदावरी के मध्य पीपल के विशाल पेड़ के नीचे स्थित विशाल ऊंचे चबूतरे पर गुरु बृहस्पति देवता के साथ शनिदेव जी विराजमान है । यहीं इसके स्थापना दिवस जनवरी माह की शुक्ल अष्टमी को लाखों भक्तों का मेला लगता है। ग्वालियर का शनैश्चरा तीर्थ क्षेत्र मध्यप्रदेश के ग्वालियर में ग्वालियर हवाई अड्डा रोड से 25 किमी. अंदर शनैश्चरा गांव में शनि महाराज स्थापित हैं जहां शनैश्चरी अमावस्या को लाखों पदयात्री शनि पीड़ा निवारण के लिए आते हैं। यहां की स्थापना भी भगवान राम के कर कमलों द्वारा मानी जाती है। शनि तीर्थ क्षेत्र शनि माॅडल महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में दोडाइचा तहसील से 30 कि.मी. की दूरी पर यह शनि धाम स्थित है। कहते हैं कि इन्हीं शनिदेव जी ने विक्रमादित्य को रंक से फिर से राजा बनाया था और विक्रमादित्य के कंधे पर प्रगट हुये थे। दिल्ली में चांदनी चैक स्थित शनि मंदिर यह कांच का बड़ा सुहावना मंदिर है। इस शनि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रीय विधि से हुई है। अन्य ग्रहों की मूर्तियां भी यहां स्थापित हैं। यहां शनिवार को लोग तेल का दीपक जलाते हैं। यहां सवा किलो चने का प्रसाद बांटना चाहिए। ऐसा करने से शनि के कष्टों से छुटकारा मिलता है। असोल शनि धाम यह शनि मंदिर दिल्ली स्थित महरौली में छतरपुर से 5 किलोमीटर दूर असोला गांव में स्थित है। शनि की मूर्ति अष्टधातु से बनी है। एक में शनि महाराज गिद्ध पर सवार हैं और दूसरी मूर्ति में भैंसे पर। यह शनि शक्तिपीठ आज लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां हर शनिवार या शनि अमावस्या को श्रद्धालु शनि की मूर्ति पर तेल, उड़द और काला वस्त्र चढ़ाते हैं। लोगों को शनि की साढ़ेसाती के कारण मिलने वाले कष्टों का यहां निवारण होता है।
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