तकरीबन तीन सौ वर्षों तक बिहार, बंगाल व झारखंड क्षेत्र में शासन सत्ता स्थापित कर अपने गौरवनामा का परचम लहराने वाला पालवंश भारतीय कला संस्कृति के अभ्युदय काल के स्वरूप का स्पष्ट दिग्दर्शन है। इस युग में जहां एक ओर तथागत और उनसे जुड़े मूत्र्त विग्रह व स्थल का उद्धार हुआ तो हिंदू धर्म से जुड़े स्मारकों का भी श्रीउदय हुआ । इनमें शिव मंदिर यत्र-तत्र-सर्वत्र विराजमान हैं। राजकीय शासन क्षेत्र में रहने के कारण, राजमार्ग पर अवस्थित होने के कारण, राजकीय समारोह स्थल होने के कारण अथवा अंग्रेज सर्वेयर की निगाह पड़ने से कितने ही शिवालय का स्वतः प्रचार-प्रसार हो गया पर कुछ उत्कृष्टता के बावजूद स्थानीय स्तर तक ही चर्चित हो पाया। ऐसा ही एक बेशकीमती शिवालय गया जिले के टनकुपा प्रखंड के चोवार गांव में स्थित है जिसे ‘जटा-शंकर’, ‘जटाजूट महादेव’ या ‘जटाधारी स्थान’ कहा जाता है। चोवार का शिव मंदिर अपनी विशिष्टता, प्राचीनता, पुरातात्विक महत्व व अचरज भरे दास्तान के लिए प्रदेश प्रसिद्ध है जहां शिवलिंग के नाम पर प्राचीन अनगढ़ पाषाण खंड गर्भगृह के अरधे के बीच में अंदर की ओर विराजमान हैं। मंदिर से जुड़े वृत्तांत का अध्ययन व गांव में मंदिर व गढ़ क्षेत्र का दर्शन यह स्पष्ट करता है कि मगध क्षेत्रीय शिवालयों में चोवार का महत्व अप्रतिम है। फतेहपुर मार्ग पर अवस्थित पथरा मोड़ (बरतारा मोड़ से ढाई किमी. आगे मुख्य मार्ग पर ही) से छः किमी. अंदर आकर इस शिव मंदिर का दर्शन लाभ किया जा सकता है जिसके दर्शन से ही बीते जमाने की याद जीवन्त हो जाती है। मगध का वह क्षेत्र जो पुरातन काल में कोलगढ़ी प्रक्षेत्र के रूप में आबाद रहा उसमें चोवार भी एक है। चोवार के चातुर्दिक भी गढ़ क्षेत्र का बाहुल्य है जिनमें टनकुपा, जयपुर, टिवर, कंधरिया, फतेहपुर, पुनावां आदि का नाम लिया जा सकता है। कोल राजाओं के परम आराध्य शिव शंकर का देवालय कितने ही गढ़ क्षेत्र के समीप मिलता है पर यहां का देवालय निर्माण की दृष्टि से एक उत्कृष्ट कृति है। भले ही इसका प्रचार-प्रसार इसके नाम व यशःकृति के अनुरूप नहीं हो पाया। लाल गेरूए रंग से रंगा यह शिव मंदिर एक आयताकार प्लेटफाॅर्म पर बना है जिसके ठीक सामने एक प्राचीन कूप है। यहीं पर कुछ प्राचीन मूर्तियों के खंडित अंश व मनौती स्तूप देखे जा सकते हैं। मंदिर के बाहरी दीवार पर भी शिवलिंग, मनौती स्तूप व पाषाण खंड का अलंकृत रूप देखा जा सकता है और ये सब के सब पाल कालीन हैं। यह मंदिर दो तल विभाज्य रूप में है जहां से प्रवेश कर गर्भ गृह तक जाया जा सकता है। मंदिर के प्रवेश द्वार का चैखट 1.58 मीटर ऊंचा और 68 से.मी. चैड़ा है। सामने गर्भगृह 2.16 मीटर का वर्गाकार है जिसके ईशान कोण में शिवलिंग की आकृति के पाषाण खंड व गणेश जी का स्थान देखा जा सकता है। यहां का प्रधान शिवलिंग अनगढ़ पाषाण खंड का बना है जो अरधे के अंदर है। इस लिंग के अरधे की लंबाई 1.25 मीटर व चैड़ाई 1.4 मीटर है। शिवलिंग हेतु बने गोलाकार खंड का व्यास 34 से. मी. है। इस गर्भगृह के बाहर के कक्ष में बारह पाषाण स्तंभों को आमने-सामने लगाकर छत को सहारा प्रदान किया गया है। इस प्रथम प्रवेश कक्ष में दाहिनी ओर ऊंचा ताखा बनाकर विष्णु, बुद्ध, मनौती स्तूप भैरव, उमाशंकर, विशाल फलक, बड़ा मिट्टी के गागर सहित कुल 36 पुरावशेष या तो रखे हैं या दीवार के ताखे में स्थापित कर दिए गए हैं। चोवार के शिवालय में बुद्ध मूर्ति अथवा मनौती स्तूप का मिलना इस बात का प्रमाण है कि कभी यह स्थान बौद्ध स्थवीरों से भी आबाद रहा। ऐसे यह बात जानने योग्य है कि प्राचीन राजगृह व बोधगया मार्ग के एकदम सन्निकट है चोवार, अतः बहुत संभव है कि मार्ग विश्राम स्थल के रूप में चोवार की महत्ता वर्षों कायम रही। मंदिर क्षेत्र से उत्तर की ओर 1/2 किमी. चलने पर विशालगढ़ का अवलोकन किया जा सकता है जो भू-तल से 92 फीट तक ऊंचा है। यहां के टीले पर बनी दीवारें आज भी इसकी विशालता की कथा कहती हैं। इस गढ़ क्षेत्र के चातुर्दिक कृष्ण लौहित मृद्भांड, चित्रित मृद्भांड, लौहित मृद्भांड व बहुत कम मात्रा में एन. बी. पी. भी प्राप्त होते हैं। ग्रामीण कहते हैं कभी यहां तीन मंजिला राज भवन था जहां कोल राजा निवास करते थे। यहां से आगे बढ़कर मार्ग तक आने में एक प्राचीन देवी स्थान और उसके आगे गुरु नानक के जमाने का उपेक्षित संगत दर्शनीय है। विवरण है कि अपनी धर्मयात्रा के सिलसिले में श्री नानक देव 1508 ईमें गया आए और इसी रास्ते रजौली (नवादा) गए। जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया, वहीं आज संगत है। यहां भी एक प्राचीन व विशाल कूप है और पास में एक और आश्चर्य कि एक तार के पेड़ से निकली पांचों शाखा पुनः जड़ में प्रवेश कर गयी है। गया क्षेत्र के चातुर्दिक द्वादश प्रधान शिव क्षेत्र में चोवार की गणना प्राच्य काल से की जाती है। पर पर्यटन की दृष्टि से इसके नव उद्धार का प्रयास अभी तक नहीं किया जाना दुखद है। साल के किसी भी पर्व-त्योहार में खासकर पूरा श्रावण, सरस्वती पूजा,अनंत चतुर्दशी और शिवरात्रि में यहां की गहमागहमी देखते बनती है। चोवार आने के लिए गया के मानपुर बस स्टैंड से जाना सहज है। ऐसे निजी गाड़ी से भी दूर-देश के भक्त यहां आकर बाबा के दरबार में हाजिरी जरूर लगाते हैं। जानकार विद्वान कविवर पं. धनंजय मिश्र का मानना है कि संपूर्ण मगध ही नहीं वरन् पूरे उत्तर भारत में ऐसा शैव स्थल अनूठा ही नहीं दुर्लभ है। सचमुच अपनी पुरासंपदा के कारण ‘चोवार’ एक ऐतिहासिक गांव के रूप में स्थापित हो गया है जहां के शिवालय और पालकालीन मूर्तियां शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण है जहां किसी भी शिव पर्व में दूर-दूर से लोगों के आने के कारण मेला लग जाता है।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment