यदि मणिबन्ध से कोई रेखा निकलकर शुक्रक्षेत्र पर होती हुई बृहस्पति के क्षेत्र पर जावे तो किसी लम्बी यात्रा द्वारा सफलता प्राप्त होती है । यदि मणिबन्ध से निकलकर दो रेखा शनिक्षेत्र को जावे और यदि ये दोनों रेखा एक-दूसरे को काटे तो दुर्भाग्य प्रकट करती है । संभवत: जातक दूर देश को जाकर वापस नहीं आएगा ।
यदि मणिबंध से निकलकर कोई रेखा सूर्य के क्षेत्र पर जावे तो यात्रा के फलस्वरूप विशिष्ट व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से मनुष्य को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है । यदि सूर्यक्षेत्र की बजाय यह रेखा बुधक्षेत्र पर आये तो अकस्मात् धन-प्राप्ति होती है । ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य-रेखा के पास ही यह दिखाई देगी ।मणिबन्ध से निकलकर यदि रेखा चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो जल-
यात्रा अर्थात् समुद्र-पार देशों को मनुष्य जाता है । जितनी रेखा हों उतनी ही यस्कायें समझनी चाहिये । लम्बी रेखा हो तो लम्बी यात्रा, छोटी हो तो छोटी । किन्तु यदि दो रेखा बिलकुल समानान्तर रूप से चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो लाभयुक्त होने के साथ-साथ यात्रा में भय
भी रहता है । यदि मणिबन्ध की तीनो रेखा एक के ऊपर एक-एक ही स्थान पर खंडित हो तो असत्य-भाषण तथा वृथा अभिमान के कारण कष्ट पाता है । यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर जीवन-रेखा पर आकर समाप्त हो जाए तो यह प्रकट करता है कि किसी यात्रा में ही जातक की मृत्यु होगी । यदि मणिबन्ध से अस्पष्ट, लहरदार रेखा निकलकर स्वास्थ्य-रेखा को काटे तो जातक आजीवन मन्दभागी रहता है ।
मणिबन्ध पर चिह्न
(१) यदि मणिबन्ध की रेखा सुन्दर हों और प्रथम रेखा के मध्य में 'काँस' का चिह्न हो तो जीवन के प्रथम भाग में कठिनाइयों का सामना करना पडेगा किन्तु बाद का जीवन सुख और शान्ति से व्यतीत होगा ।
(२) यदि मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर कोई रेखा बृहस्पति के क्षेत्र पर जाए और मणिबन्ध की प्रथम रेखा पर क्रॉस या कोण का चिह्न हो तो किसी विशेष सफल यात्रा से धन-लाभ प्रकट
करता है ।
(३) यदि मनिबन्ध की प्रथम रेखा के मध्य में कोण-चिह्न हो तो वृद्धावस्था में किसी की विरासत पाने से भाग्योदय होता है । यह त्रिकोण चिह्न हो और त्रिकोण के अन्दर 'काँस' हो तो उत्तराधिकार द्वारा धन-प्राप्ति होती है ।
प्र) यदि हाथ में अन्य लक्षण उत्तम हों और प्रथम मणिबन्ध रेखा के मध्य में 'तारे' का चिह्न हो तो विरासत से धन-प्राप्ति । यदि यहीं चिह्न ऐसे हाथ में हो जिसमें असंयम और दुराचार प्रकट होता हो तो यह व्यभिचारी प्रवृत्ति का धोतक है ।
यदि मणिबंध से निकलकर कोई रेखा सूर्य के क्षेत्र पर जावे तो यात्रा के फलस्वरूप विशिष्ट व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से मनुष्य को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है । यदि सूर्यक्षेत्र की बजाय यह रेखा बुधक्षेत्र पर आये तो अकस्मात् धन-प्राप्ति होती है । ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य-रेखा के पास ही यह दिखाई देगी ।मणिबन्ध से निकलकर यदि रेखा चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो जल-
यात्रा अर्थात् समुद्र-पार देशों को मनुष्य जाता है । जितनी रेखा हों उतनी ही यस्कायें समझनी चाहिये । लम्बी रेखा हो तो लम्बी यात्रा, छोटी हो तो छोटी । किन्तु यदि दो रेखा बिलकुल समानान्तर रूप से चन्द्रक्षेत्र पर आवे तो लाभयुक्त होने के साथ-साथ यात्रा में भय
भी रहता है । यदि मणिबन्ध की तीनो रेखा एक के ऊपर एक-एक ही स्थान पर खंडित हो तो असत्य-भाषण तथा वृथा अभिमान के कारण कष्ट पाता है । यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर जीवन-रेखा पर आकर समाप्त हो जाए तो यह प्रकट करता है कि किसी यात्रा में ही जातक की मृत्यु होगी । यदि मणिबन्ध से अस्पष्ट, लहरदार रेखा निकलकर स्वास्थ्य-रेखा को काटे तो जातक आजीवन मन्दभागी रहता है ।
मणिबन्ध पर चिह्न
(१) यदि मणिबन्ध की रेखा सुन्दर हों और प्रथम रेखा के मध्य में 'काँस' का चिह्न हो तो जीवन के प्रथम भाग में कठिनाइयों का सामना करना पडेगा किन्तु बाद का जीवन सुख और शान्ति से व्यतीत होगा ।
(२) यदि मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर कोई रेखा बृहस्पति के क्षेत्र पर जाए और मणिबन्ध की प्रथम रेखा पर क्रॉस या कोण का चिह्न हो तो किसी विशेष सफल यात्रा से धन-लाभ प्रकट
करता है ।
(३) यदि मनिबन्ध की प्रथम रेखा के मध्य में कोण-चिह्न हो तो वृद्धावस्था में किसी की विरासत पाने से भाग्योदय होता है । यह त्रिकोण चिह्न हो और त्रिकोण के अन्दर 'काँस' हो तो उत्तराधिकार द्वारा धन-प्राप्ति होती है ।
प्र) यदि हाथ में अन्य लक्षण उत्तम हों और प्रथम मणिबन्ध रेखा के मध्य में 'तारे' का चिह्न हो तो विरासत से धन-प्राप्ति । यदि यहीं चिह्न ऐसे हाथ में हो जिसमें असंयम और दुराचार प्रकट होता हो तो यह व्यभिचारी प्रवृत्ति का धोतक है ।
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