हाथ जहाँ से आरम्भ होता है वहाँ कलाई पर भीतर की और (हथेली की तरफ) जो रेखाएँ होती हैं उन्हें संस्कृत में मणिबन्ध कहते है । इस स्थान को सामुद्रिक शास्त्र में 'पाणिमूल' या हाथ की जड़ या प्रारम्भ भी कहा गया है । यदि कलाई का यह भाग मांसल (मसिम-जिसमें हडूडी ,दिखाई न दे), पुष्ट, अच्छी सन्धि सहित (अच्छी तरह जुड़ा हुआ अर्थात् दृढ़) हो तो जातक भाग्य-शाली होता है । यदि इसके विपरीत हो अर्थात् देखने से यह मालूम हो कि हाथ और बाहू का, जो कलाई के पास जोड़ है वह ढीला, लटकता मनिबन्ध हाथ (बिप्र नै० ८) हुआ, असुन्दर कमजोर है और हाथ को हिलाने से वहाँ कुछ आवाज होती है (हड्डी का जोड़ पुष्य न होने के कारण) तो मनुष्य निर्धन होता है और यदि अन्य अशुभ लक्षण हों तो राज-दण्ड का भागी हो या किसी दुर्घटना के कारण हाथ पर आधात लगे । 'गरुड़ पुराण' तथा "वाराही सहिता' दोनों के अनुसार मणिबन्ध की हहिडयाँ दिखाई नहीं देनी चाहिए और वह जोड़ दृढ़ होना सौभाग्य का लक्षण है ।
पाश्चात्य मत
मणिबन्ध से रेखाओं का निकलकर उगलियों की ओर जाना अच्छा माना गया है किन्तु हथेली की कोई रेखा नीचे की ओर मणिबन्ध की ओर आवे तो यह अच्छा नहीं ।
(१) यदि मणिबन्ध पर एक ही रेखा हो और टूटी न हो तो २३-२८ वर्ष तक की आयु जातक की होगी ।
(२) यदि दो रेखा हों तो आयु ४६ से ५६ तक ।
(३) यदि तीन रेखा सम्पूर्ण हों तो ६९ से ८४ वर्ष तक जातक का जीव-योग समझना चाहिये ।
यदि मणिबन्ध की रेखा अच्छी हों किन्तु जीवन-रेखा अच्छी न हो तो भाग्य अच्छऱ किन्तु स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा ।
यदि स्त्रियों के हाथ में मणिबन्ध की प्रथम रेखा हथेली की ओर बही हुई हो और उसी ओर गोलाई लिये हुए हो तो प्रसव कठिनता से होता है । यदि मणिबन्ध की तीनों रेखायें सुस्पष्ट, सुंदर और अच्छे वर्ण की हों तो जातक दीर्धायु, स्वस्थ और भाग्यशाली होता है । यदि सुस्पष्ट न हों तो जातक अपव्ययी होने के कारण धन का संग्रह नहीं कर पाता और यदि अन्य लक्षण भी आज्ञ जावें तो विषय-भोग के कारण स्वास्थ्य-हानि भी करता है ।
यदि प्रथम रेखा (हाथ की ओर से गिनना चाहिये) श्रृंखलाकार हो तो परिश्रम और चिन्तायुक्त जीवन रहता है किन्तु परिणाम में सफलता प्राप्त होती है ।
पाश्चात्य मत
मणिबन्ध से रेखाओं का निकलकर उगलियों की ओर जाना अच्छा माना गया है किन्तु हथेली की कोई रेखा नीचे की ओर मणिबन्ध की ओर आवे तो यह अच्छा नहीं ।
(१) यदि मणिबन्ध पर एक ही रेखा हो और टूटी न हो तो २३-२८ वर्ष तक की आयु जातक की होगी ।
(२) यदि दो रेखा हों तो आयु ४६ से ५६ तक ।
(३) यदि तीन रेखा सम्पूर्ण हों तो ६९ से ८४ वर्ष तक जातक का जीव-योग समझना चाहिये ।
यदि मणिबन्ध की रेखा अच्छी हों किन्तु जीवन-रेखा अच्छी न हो तो भाग्य अच्छऱ किन्तु स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा ।
यदि स्त्रियों के हाथ में मणिबन्ध की प्रथम रेखा हथेली की ओर बही हुई हो और उसी ओर गोलाई लिये हुए हो तो प्रसव कठिनता से होता है । यदि मणिबन्ध की तीनों रेखायें सुस्पष्ट, सुंदर और अच्छे वर्ण की हों तो जातक दीर्धायु, स्वस्थ और भाग्यशाली होता है । यदि सुस्पष्ट न हों तो जातक अपव्ययी होने के कारण धन का संग्रह नहीं कर पाता और यदि अन्य लक्षण भी आज्ञ जावें तो विषय-भोग के कारण स्वास्थ्य-हानि भी करता है ।
यदि प्रथम रेखा (हाथ की ओर से गिनना चाहिये) श्रृंखलाकार हो तो परिश्रम और चिन्तायुक्त जीवन रहता है किन्तु परिणाम में सफलता प्राप्त होती है ।
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