गुरु या बृहस्पति-क्षेत्र- बृहस्पति को ही गुरु कहते हैं । जिस व्यक्ति के हाथ में बृहस्पति-क्षेत्र उच्च हो उसमें महत्वाकांक्षा, अभिमान, उत्साह और हुकूमत करने की इच्छा अधिक मात्रा में होती है । यदि किसी व्यक्ति के हाथ में गुरु-क्षेत्र बहुत चपटा हो तो उसमें धार्मिक विश्वास, माता-पिता या गुरु-जनों में श्रद्धा नहीं होती । उचित मात्रा में उन्नत होने से धार्मिक विश्वास, प्रकृति-प्रेम, कुछ खुशामदप्रियता, बाहरी तड़क-भड़क या दिखावे की भावना होती है । यदि यह क्षेत्र अधिक उन्नत हो तो हृदय में अहंकार बहुत अधिक होता है । ऐसा व्यक्ति झूठी शान दिखाने के लिए अपव्यय भी बहुत करता है । दूसरी को दबाने में कुरता का उपयोग या अहं- भाव के कारण ईष्या-द्देष, स्वार्थपरता आदि अवगुण भी होते हैं । यदि गुरु-क्षेत्र अति उन्नत हो और उंगलियों के अग्रभाग (१) नुकीले हों तो अंधविश्वास विशेष होता है, (२) चतुष्कोणाकृति हों तो क्रूरता विशेष होती है । यदि उँगलियों लम्बी हों और जोड़ (उंगलियों की गांठे) निकली हुई न हो और गुरु-क्षेत्र अति उक्त हो तो ऐसे व्यक्ति बहुत आरामपसन्द, विलासी और खर्चीले होते हैं ।
यदि मनुष्य पर बृहस्पति का प्रभाव अधिक हो (जो ग्रह-क्षेत्र की उन्नति और तर्जनी की बलिष्ठता से साबित होगा) तो यह देखना चाहिए कि तर्जनी ऊँगली का कौनसा पर्व लम्बा है । यदि प्रथम पर्व बड़ा हो तो ऐसा व्यक्ति राजनीतिक, धार्मिक या बौद्धिक (पठन-पाठन, ग्रन्थ-लेखन) क्षेत्र में सफल होगा । यदि द्वितीय पर्व बड़ा और लम्बा हो तो व्यापारिक क्षेत्र में सफलता होगी । खूब धन कमाएगा । यदि तृतीय पर्व बड़ा और पुष्ट हो तो खाने-पीने का शौकीन व विलासी होगा । ऐसे व्यक्ति को अधिक खाने से मिरगी आदि रोग भी विशेष होते है ।
यदि मनुष्य पर बृहस्पति का प्रभाव अधिक हो (जो ग्रह-क्षेत्र की उन्नति और तर्जनी की बलिष्ठता से साबित होगा) तो यह देखना चाहिए कि तर्जनी ऊँगली का कौनसा पर्व लम्बा है । यदि प्रथम पर्व बड़ा हो तो ऐसा व्यक्ति राजनीतिक, धार्मिक या बौद्धिक (पठन-पाठन, ग्रन्थ-लेखन) क्षेत्र में सफल होगा । यदि द्वितीय पर्व बड़ा और लम्बा हो तो व्यापारिक क्षेत्र में सफलता होगी । खूब धन कमाएगा । यदि तृतीय पर्व बड़ा और पुष्ट हो तो खाने-पीने का शौकीन व विलासी होगा । ऐसे व्यक्ति को अधिक खाने से मिरगी आदि रोग भी विशेष होते है ।
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