यह मध्यमा उँगली के नीचे होता है । इसके स्वाभाविक गुण है एकान्तप्रियता, शांति, बुद्धिमता, दूरदर्शिता, परिश्रमशीलता किसी वस्तु का गभीरतापूर्वक अध्ययन । धार्मिक संगीत या दु:खान्त, गभीर स्वर वाले संगीत की इच्छा आदि ।
यदि किसी हाथ में शनि-क्षेत्र बिलकुल गुणरहित हो (अर्थात् न ग्रह-क्षेत्र गुणयुक्त हो, न उस पर कोई रेखा हो और न मध्यमा ऊँगली ही अच्छी,बलिष्ठ और सुन्दर हो) तो उस मनुष्य के जीवन में कोई भी महत्वयुक्त बात नहीं होती । यदि साधारण उन्नत हो तो मनुष्य विचारशील होता है । किसी खतरे के काम में नहीं जाता । ऐसे लोग प्राय: ऐसा काम करते हैं जिसमें परिश्रम अधिक हो पर निश्चित कमाई हो, रुपये में घाटा न लगे । प्राय: ऐसे व्यक्तियों की लम्बी उँगलियों हो तो प्रथम तथा द्वितीय पर्व के बीच की गाँठ निकली हुई, गठीली होती है । यदि शनि-क्षेत्र बहुत अधिक उन्नत हो तो मनुष्य पर शनि का प्रभाव अधिक होने से दुखी, विशेष चिनंतायुक्त, सदैव मृत्यु की बाबत सोचता रहता है । उसमें अविश्वास की मात्रा अधिक होती है । अन्य अशुभ लक्षण होने से आत्महत्या
की प्रवृति अधिक होती है ।
प्राय: हाथों में शनि-क्षेत्र अति उन्नत दिखाई नहीं देता । किन्तु यदि मध्यमा उंगली बहुत अधिक बडी हो (साधारणता तर्जनी या अनामिका से आधा पर्व लम्बी होती है, यदि इससे भी अधिक लम्बी हो) तो शनि के गुण उस मनुष्य में विशेष होते हैं । यदि मध्यमा विशेष बडी और बलिष्ठ हो और अन्य उगलियाँ मध्यमा उंगली की ओर झुकी हों तो भी शनि-क्षेत्र को बलवान, समझना चाहिए ।
सभी ग्रहों के प्रभाव के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि थोडी मात्रा में जो गुण होते है वहीं अधिक मात्रा में अवगुण हो जाते है । शनिक्षित्र थोडा उन्नत हो तो विचारशीलता, मितव्ययता, दूरदर्शिता आदि गुण होते है । अधिक मात्रा में उन्नत होने से मनुष्य कंजूस और लोभी हो जाता है । दूसरो के साथ रहना पसन्द नहीं करता, विवाह में रुचि नहीं होती, किसी नये कार्य में उत्साह नहीं होता । यदि हाथ में अन्य अशुभ लक्षण हो तो ऐसे व्यक्ति पाप या जुर्म करने वाले या अन्य दोषयुक्त होते है । यदि उँगलियों के प्रथम पर्व लम्बे हो तो ऐसे व्यक्ति गभीर शास्त्र-अध्ययन करने वाले, गुप्त विद्याओं के प्रेमी होते है । द्वितीय पर्व लम्बा हो तो जमीन, रसायन, लोहा या खनिज पदार्थों का व्यापार करते है । सूक्ति पर्व लम्बा हो तो दुनिया की चालाकी या नीच वृत्ति अधिक होगी ।
शनि-क्षेत्र यदि बिगडा हो तो स्वास्थ्य की दृष्टि से दांत या कान की बीमारी, वातरोग, गठिया, नसों का फूल जानता या सरुत हो जाना, हड्डी टूटना, दुर्घटना, दम घुटना या लम्बे समय तक जारी रहने वाली बीमारी होती है ।
यदि किसी हाथ में शनि-क्षेत्र बिलकुल गुणरहित हो (अर्थात् न ग्रह-क्षेत्र गुणयुक्त हो, न उस पर कोई रेखा हो और न मध्यमा ऊँगली ही अच्छी,बलिष्ठ और सुन्दर हो) तो उस मनुष्य के जीवन में कोई भी महत्वयुक्त बात नहीं होती । यदि साधारण उन्नत हो तो मनुष्य विचारशील होता है । किसी खतरे के काम में नहीं जाता । ऐसे लोग प्राय: ऐसा काम करते हैं जिसमें परिश्रम अधिक हो पर निश्चित कमाई हो, रुपये में घाटा न लगे । प्राय: ऐसे व्यक्तियों की लम्बी उँगलियों हो तो प्रथम तथा द्वितीय पर्व के बीच की गाँठ निकली हुई, गठीली होती है । यदि शनि-क्षेत्र बहुत अधिक उन्नत हो तो मनुष्य पर शनि का प्रभाव अधिक होने से दुखी, विशेष चिनंतायुक्त, सदैव मृत्यु की बाबत सोचता रहता है । उसमें अविश्वास की मात्रा अधिक होती है । अन्य अशुभ लक्षण होने से आत्महत्या
की प्रवृति अधिक होती है ।
प्राय: हाथों में शनि-क्षेत्र अति उन्नत दिखाई नहीं देता । किन्तु यदि मध्यमा उंगली बहुत अधिक बडी हो (साधारणता तर्जनी या अनामिका से आधा पर्व लम्बी होती है, यदि इससे भी अधिक लम्बी हो) तो शनि के गुण उस मनुष्य में विशेष होते हैं । यदि मध्यमा विशेष बडी और बलिष्ठ हो और अन्य उगलियाँ मध्यमा उंगली की ओर झुकी हों तो भी शनि-क्षेत्र को बलवान, समझना चाहिए ।
सभी ग्रहों के प्रभाव के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि थोडी मात्रा में जो गुण होते है वहीं अधिक मात्रा में अवगुण हो जाते है । शनिक्षित्र थोडा उन्नत हो तो विचारशीलता, मितव्ययता, दूरदर्शिता आदि गुण होते है । अधिक मात्रा में उन्नत होने से मनुष्य कंजूस और लोभी हो जाता है । दूसरो के साथ रहना पसन्द नहीं करता, विवाह में रुचि नहीं होती, किसी नये कार्य में उत्साह नहीं होता । यदि हाथ में अन्य अशुभ लक्षण हो तो ऐसे व्यक्ति पाप या जुर्म करने वाले या अन्य दोषयुक्त होते है । यदि उँगलियों के प्रथम पर्व लम्बे हो तो ऐसे व्यक्ति गभीर शास्त्र-अध्ययन करने वाले, गुप्त विद्याओं के प्रेमी होते है । द्वितीय पर्व लम्बा हो तो जमीन, रसायन, लोहा या खनिज पदार्थों का व्यापार करते है । सूक्ति पर्व लम्बा हो तो दुनिया की चालाकी या नीच वृत्ति अधिक होगी ।
शनि-क्षेत्र यदि बिगडा हो तो स्वास्थ्य की दृष्टि से दांत या कान की बीमारी, वातरोग, गठिया, नसों का फूल जानता या सरुत हो जाना, हड्डी टूटना, दुर्घटना, दम घुटना या लम्बे समय तक जारी रहने वाली बीमारी होती है ।
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