यदि जन्मकुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि उपस्थित हो तो जातक उत्तम आय वाला, शूर, निरोगी, स्वस्थ, धनी, दीर्घायु, स्थिर संपत्ति वाला, प्रपंच शिरोमणि तथा अनेक आयामों से सौभाग्यशाली सिद्ध होता है। वह मेधा, पराक्रम, आयुष्य एवं संपत्ति के श्रेष्ठ सुख प्राप्त करता है । उसे स्वास्थ्य को गंभीर समस्या कभी नहीं होती । वह निश्चिंत रहता है, यद्यपि संतति पक्ष तथा पर-चिन्द्रन्वेशन से उसे यदा-कदा मानसिक उत्ताप होता है ।
एकादश भावस्थ शनि का जातक समृद्धिशाली होता है और उसे बहुमूल्य पशुओं का सुख प्राप्त होता है । अनुचरों की दृष्टि से वह भाग्यवान होता है । कृषि कार्य से उसे प्रचुर लाभ होता है। वह विभिन्न विद्याओं में दक्ष होता है । उसके जीवन का मूलमंत्र संतोष होता है|
यदि एकादश भावस्थ शनि तुला, मकर या कुंभगत (विशेषकर शुभ प्रभाव होने पर) हो तो चल-अचल संपत्ति का विशेष सुख मिलता है । जीवन के बीच का भाग श्रेयस्कर होता है । अल्प आत्मीय तथा संतति पीडा का योग होता है । निकृष्ट संतति, विलंब संतति अथवा मृत संतति जैसे परिणाम उजागर होते हैं ।
शनि के पत्पाक्रांत होने पर मित्रों अथवा आर्थिक विषयों से उत्पीड़न संभव है । सूर्य यां चंद्रमा का शनि से संयोग भीषण अर्थाभाव घोषित करता है । ऐसा शनि चर राशिस्थ होने पर मित्रों द्वारा सर्वस्व हरण, स्थिर राशिस्थ होने पर पुर्वायु में आपदाएं तथा उभय राशिस्थ होने पर सार्वधिक हताशा का परिणाम प्रत्यक्ष होता है। सामान्यत: एकादश भावस्थ शनि पुत्र संतति हेतु शुभ नहीं कहा जा सकता । विशेषता मिथुन, सिंह और धनु राशिगत एकादश भावस्थ शनि पुत्र-सुख में बाधक होता है । भृगुसूत्र के अनुसार ऐसा शनि किसी कार्य को निर्विघ्न संपन्न नहीं होने देता, किन्तु जातक को शासन से बहुमुखी स्थायी लाभ अवश्य हो सकता है। तुला, मकर तथा कुंभस्थ शनि ज्ञान, भाग्य एवं सुख-साधन संवर्द्धक होता है ।
एकादश भावस्थ शनि का जातक समृद्धिशाली होता है और उसे बहुमूल्य पशुओं का सुख प्राप्त होता है । अनुचरों की दृष्टि से वह भाग्यवान होता है । कृषि कार्य से उसे प्रचुर लाभ होता है। वह विभिन्न विद्याओं में दक्ष होता है । उसके जीवन का मूलमंत्र संतोष होता है|
यदि एकादश भावस्थ शनि तुला, मकर या कुंभगत (विशेषकर शुभ प्रभाव होने पर) हो तो चल-अचल संपत्ति का विशेष सुख मिलता है । जीवन के बीच का भाग श्रेयस्कर होता है । अल्प आत्मीय तथा संतति पीडा का योग होता है । निकृष्ट संतति, विलंब संतति अथवा मृत संतति जैसे परिणाम उजागर होते हैं ।
शनि के पत्पाक्रांत होने पर मित्रों अथवा आर्थिक विषयों से उत्पीड़न संभव है । सूर्य यां चंद्रमा का शनि से संयोग भीषण अर्थाभाव घोषित करता है । ऐसा शनि चर राशिस्थ होने पर मित्रों द्वारा सर्वस्व हरण, स्थिर राशिस्थ होने पर पुर्वायु में आपदाएं तथा उभय राशिस्थ होने पर सार्वधिक हताशा का परिणाम प्रत्यक्ष होता है। सामान्यत: एकादश भावस्थ शनि पुत्र संतति हेतु शुभ नहीं कहा जा सकता । विशेषता मिथुन, सिंह और धनु राशिगत एकादश भावस्थ शनि पुत्र-सुख में बाधक होता है । भृगुसूत्र के अनुसार ऐसा शनि किसी कार्य को निर्विघ्न संपन्न नहीं होने देता, किन्तु जातक को शासन से बहुमुखी स्थायी लाभ अवश्य हो सकता है। तुला, मकर तथा कुंभस्थ शनि ज्ञान, भाग्य एवं सुख-साधन संवर्द्धक होता है ।
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