प्राय: करतल के बगल से ही जीवन-रेखा प्रारम्भ होती है । यह इसकी स्वाभाविक स्थिति है परन्तु यदि यह बृहस्पति के क्षेत्र से प्रारम्भ हो तो यह समझना चाहिए कि वह व्यक्ति बहुत धनाकांक्षी है और यश तथा मान की इच्छा रखता है । शनि, गुरु, सूर्य, बुध, और, चन्द्र आदि-जिनके भी क्षेत्र ऐसे व्यक्ति के हाथ पर विशेष उन्नत होंगे उसी के अनुसार उसकी महत्वाकांक्षा होगी । यदि बुध का प्रभाव उस पर विशेष है तो वक्ता, विज्ञान या व्यापार में वह प्रसिद्धि चाहेगा । यदि सूर्य का स्थान और अनामिका प्रमुख है तो धन और कला-सम्बन्धी उसकी आकांक्षाएँ होंगी, ऐसा ही सर्वत्र समझना चाहिए अर्थात् गुरु का प्रभाव अधिक हो तो पद, मान की निष्ठा आदि । जीवन-रेखा के प्रारम्भ होने के उपर्युक्त दो ही स्थान हैं |
जीवन-रेखा शुक्रक्षेत्र को 'चाप' की तरह घेरे रहती है, किन्तु बहुत हाथों में तो घेरा बडा होता है अर्थात शुकक्षेत्र बड़ा और विस्मृत होता है, किन्तु कुछ हाथों में जीवन रेखा की गोलाई कम रहती है इस कारण शुक्रक्षेत्र छोटा, सीमित और संकुचित हो जाता है । जितनी गोलाई अधिक होगी उतना ही शुक्रक्षेत्र का विस्तार अधिक होगा । जितनी गोलाई कम होगी उतना ही शुक्रक्षेत्र छोटा हो जायगा ।
शुक्रक्षेत्र से आकर्षण, अनुराग, रुत्री- पुरुष का पारस्परिक प्रेम, इच्छा, कामुकता आदि का विचार किया जाता है । इस कारण जिनका शुक्रक्षेत्र सीमित और संकुचित होगा उनके हृदय में प्रेम, आकर्षण, स्त्री का पुरुष के प्रति और पुरुष का स्त्री के प्रति झुकाव कम होगा । ऐसे व्यक्तियों में जब अनुराग की भावना में ही कमी है तो सन्तान उत्पादन-शक्ति भी कम हो होगी और इस कारण विवाह होने पर भी उतनी अधिक संख्या में संतान नहीं होती जितनी उन लोगों की जिनका शुक्रक्षेत्र पुष्ट और विस्मृत है | इस कारण जीवन रेखा कितना भाग घेरती है यह संतति के दृष्टिकोण से भी
महत्व का है । सामान्य नियम यह है कि जीवन-रेखा जितनी ही बडी होगी उतनी ही मनुष्य की आयु अधिक होगी । ॰
बहुत बार तो यह देखा कि मृत व्यक्तियों की जीवनरेखा से जितनी आयु प्रतीत होती थी उतनी आयु पूर्ण होने पर उनका शरीरान्त हुआ । किन्तु कई बार यह भी देखा कि जिस अवस्था में उस व्यक्ति की मृत्यु हुई उसके बहुत बाद तक की अवस्था जीवन-रेखा से प्रकट होती थी अर्थात् जीवन-रेखा सुस्पष्ट और लम्बी थी । ऐसी स्थिति में यह शंका उठती है कि जब जीवन-रेखाओं से उन व्यक्तियों की मृत्यु नहीं प्रकट होती थी तो उनकी मृत्यु पहले ही कैसे हो गई । इसका उत्तर यही है कि जीवनं रेखा से ही आयु के अन्तिम निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए । जीवन-रेखा स्वाभाविक प्राण-शक्ति प्रकट करती है । ह्रदय-रेखा, शीर्ष-रेखा, स्वास्थ्य-रेखा तथा अन्य रेखाओं व चिन्हों से भी यह देखना चाहिए कि सांयातिक बीमारी या मृत्यु के चिह्न हैं क्या ? यदि ये रेखा दाहिने और बायें हाथ में भिन्न-भिन्न प्रकार की हों अर्थात् एक में बडी और एक में छोटों हो तो निम्नलिखित
निष्कर्ष निकालना चाहिए-
1) यदि दाहिने हाथ में रेखा बडी हो तो समझिये कि पैदा होने के समय यह व्यक्ति उतनी प्राणशक्ति लेकर उत्पन्न नहीं हुआ था किन्तु बाद में आहार, विहार, विचार और संयम द्वारा इसकी प्राणशक्ति बढी है और इस कारण इसकी आयु लम्बी हो गई ।
2) यदि बाये हाथ में रेखा बडी हो तो यह समझना चाहिए कि माता के गर्भ से तो यह पर्याप्त प्राणशक्ति लेकर आया था किन्तु बाद में उपर्युक्त विविध कारणों से यह शक्ति कम हो गई ।
3) जहाँ भी जीवन-रेखा सुस्पष्ट, गम्भीर और दीर्घ हो यह समझना चाहिए कि जीवन और स्वास्थ्य को कायम रखने के लिए काफी प्राणशक्ति है और इसके विपरीत जहाँ जीवन-रेखा छोटी हो समझना चाहिए कि उतनी आयु पूर्ण होने पर जीवन को भय है ।
जीवन-रेखा शुक्रक्षेत्र को 'चाप' की तरह घेरे रहती है, किन्तु बहुत हाथों में तो घेरा बडा होता है अर्थात शुकक्षेत्र बड़ा और विस्मृत होता है, किन्तु कुछ हाथों में जीवन रेखा की गोलाई कम रहती है इस कारण शुक्रक्षेत्र छोटा, सीमित और संकुचित हो जाता है । जितनी गोलाई अधिक होगी उतना ही शुक्रक्षेत्र का विस्तार अधिक होगा । जितनी गोलाई कम होगी उतना ही शुक्रक्षेत्र छोटा हो जायगा ।
शुक्रक्षेत्र से आकर्षण, अनुराग, रुत्री- पुरुष का पारस्परिक प्रेम, इच्छा, कामुकता आदि का विचार किया जाता है । इस कारण जिनका शुक्रक्षेत्र सीमित और संकुचित होगा उनके हृदय में प्रेम, आकर्षण, स्त्री का पुरुष के प्रति और पुरुष का स्त्री के प्रति झुकाव कम होगा । ऐसे व्यक्तियों में जब अनुराग की भावना में ही कमी है तो सन्तान उत्पादन-शक्ति भी कम हो होगी और इस कारण विवाह होने पर भी उतनी अधिक संख्या में संतान नहीं होती जितनी उन लोगों की जिनका शुक्रक्षेत्र पुष्ट और विस्मृत है | इस कारण जीवन रेखा कितना भाग घेरती है यह संतति के दृष्टिकोण से भी
महत्व का है । सामान्य नियम यह है कि जीवन-रेखा जितनी ही बडी होगी उतनी ही मनुष्य की आयु अधिक होगी । ॰
बहुत बार तो यह देखा कि मृत व्यक्तियों की जीवनरेखा से जितनी आयु प्रतीत होती थी उतनी आयु पूर्ण होने पर उनका शरीरान्त हुआ । किन्तु कई बार यह भी देखा कि जिस अवस्था में उस व्यक्ति की मृत्यु हुई उसके बहुत बाद तक की अवस्था जीवन-रेखा से प्रकट होती थी अर्थात् जीवन-रेखा सुस्पष्ट और लम्बी थी । ऐसी स्थिति में यह शंका उठती है कि जब जीवन-रेखाओं से उन व्यक्तियों की मृत्यु नहीं प्रकट होती थी तो उनकी मृत्यु पहले ही कैसे हो गई । इसका उत्तर यही है कि जीवनं रेखा से ही आयु के अन्तिम निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए । जीवन-रेखा स्वाभाविक प्राण-शक्ति प्रकट करती है । ह्रदय-रेखा, शीर्ष-रेखा, स्वास्थ्य-रेखा तथा अन्य रेखाओं व चिन्हों से भी यह देखना चाहिए कि सांयातिक बीमारी या मृत्यु के चिह्न हैं क्या ? यदि ये रेखा दाहिने और बायें हाथ में भिन्न-भिन्न प्रकार की हों अर्थात् एक में बडी और एक में छोटों हो तो निम्नलिखित
निष्कर्ष निकालना चाहिए-
1) यदि दाहिने हाथ में रेखा बडी हो तो समझिये कि पैदा होने के समय यह व्यक्ति उतनी प्राणशक्ति लेकर उत्पन्न नहीं हुआ था किन्तु बाद में आहार, विहार, विचार और संयम द्वारा इसकी प्राणशक्ति बढी है और इस कारण इसकी आयु लम्बी हो गई ।
2) यदि बाये हाथ में रेखा बडी हो तो यह समझना चाहिए कि माता के गर्भ से तो यह पर्याप्त प्राणशक्ति लेकर आया था किन्तु बाद में उपर्युक्त विविध कारणों से यह शक्ति कम हो गई ।
3) जहाँ भी जीवन-रेखा सुस्पष्ट, गम्भीर और दीर्घ हो यह समझना चाहिए कि जीवन और स्वास्थ्य को कायम रखने के लिए काफी प्राणशक्ति है और इसके विपरीत जहाँ जीवन-रेखा छोटी हो समझना चाहिए कि उतनी आयु पूर्ण होने पर जीवन को भय है ।
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