Saturday, 26 September 2015

हाथों में बुध क्षेत्र

यह कनिष्ठिका उँगली के नीचे होता है । इसमें बुद्ध-ग्रह के सब गुण होते है यथा, किसी एक स्थान या कार्य से मन उकता जाना और दूसरे नवीन स्थानों पर जाना, यात्रा, या नये लोगों से सम्पर्क स्थापित करना, शीघ्र विचार कर लेने की या बोलने की शक्ति, हाजिर-जवाबी, मजाक आदि । यदि हाथ में अन्य शुभ लक्षण हों तो ये सब गुण शुभ फल देने वाले होते है । यदि अन्य अशुभ लक्षण हों और बुघ-क्षेत्र दोषयुक्त हो तो चालाकी, धोखा देना, जालसाजी आदि द्वारा मनुष्य अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करता है ।
यदि बुध क्षेत्र नीचा हो तो हिसाब-किताब, वैज्ञानिक कार्य या किसी ऐसे व्यापारिक कार्य में भी मनुष्य की तबियत नहीं लगती जिसमें हिसाब-किताब की विशेष आवश्यकता हो ।
यदि साधारण उच्च हो तो ऐसा मनुष्य सुन्दर वक्ता, व्यापारिक चतुरतामुक्त, बुद्धिमान, शीघ्र कार्य करने वाला, यात्रा-प्रेमी होता है । उसमें नवीन आविष्कारक बुद्धि भी विशेष होती है । यदि उंगलियों के अग्रभाग (१) नुकीले हो तो बहुत सुन्दर वकतृत्व-शक्ति होती है, (२) चतुष्कोणाकृति हों तो तर्क-शक्ति बलवान होती है ।(३) यदि आगे से फैली हुई हों तो उसकी जिरह या दलील बहुत प्रभावयुक्त होती है ।
जिनका बुध-क्षेत्र उच्च होता है वे हास्यप्रिय, गोष्ठी पसन्द करने वाले होते हैं । यदि बुध-क्षेत्र चिकना और रेखा-रहित हो तो ऐसे व्यक्ति जिस काम को प्रारम्भ करते हैं उसे अन्त तक पूरा करते है । यदि बुध-क्षेत्र अति उच्च हो तो मनुष्य को जितना ज्ञान होता है उससे कहीं अधिक विद्वान् होने का ढोंग करता है । ऐसे लोगों में धोखा देना या फरेब की प्रवृत्ति भी होती है । कनिष्ठिका जंगली टेढी होने से बेईमानी की पुष्टि होती है ।
यदि बुध क्षेत्र पर तीन खड़ी रेखा हों और क्षेत्र साधारण उन्नत हो तो मनुष्य कुशल डॉक्टर या वैद्य हो सकता है । यदि कनिष्टिका ऊँगली का प्रथम पर्व लम्बा और नाख़ून छोटे हों तो ऐसा व्यक्ति सफल वकील हो सकता है । यदि यह उँगली नुकीली भी हो तो ऐसा व्यक्ति सुन्दर वक्ता होता है । यदि द्वितीय पर्व लम्बा हो तो कुशल वैज्ञानिक या डॉक्टर हो सकता है । यदि तृतीय पर्व लम्बा हो तो व्यापार द्वारा विशेष धन कमा सकता है ।
बुध-क्षेत्र का स्नायु-विकार, पित्तज रोग, उदर-विकार, यकृत रोग, मन्दाग्नि आदि से विशेष सम्बन्ध है ।

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