Thursday, 24 September 2015

द्वादश भाव में शनि

जन्मकुंडली के बारहवें भाव में शनि की उपस्थिति अनिष्ट फलकारक मानी गई है । ऐसा जातक निर्लज्ज, धन से हीन, पुत्र-सुख से वंचित, विकलांग (शरीर के किसी भी भाग में विकलता) और मूर्ख होता है । हमारा अनुभव है कि द्वादश भाव में शनि दांतों को तो खराब करता ही है, आंखों को भी नुकसान पहुंचाता है ।द्वादश भावस्थ शनि वाला जातक अति व्यय से दुखी रहता है । वह प्रमाद सेग्रस्त तथा कुत्सित व्यक्तियों का संगी होता है । यदि शनि लनंनाथिपति हो तो पैतृक स्थान से दूर जाने पर जातक की प्रगति के मार्ग खुल जाते हैं । द्वादश भावस्थ शनि के प्रभाव से जातक आत्मीयों से कलहपूर्ण संबंध रखता है तथा जीवन भर व्यय की अधिकता से संत्रस्त रहता है । अप्रत्याशित अनुचित व्यय, निंदित कृत्यों में अभिरुचि, आगत-अनागत का अविचार तथा मानवीय व्यवहार जैसे लक्षण प्रकट होते है । ऐसा जातक सबल, अस्थिर चित्तवृत्ति एवं अप्रिय वेशभूषा से युक्त घोर स्वार्थी होता है । वह अपने व्यवहार से आत्मीय जनों को अपने विरुद्ध कर लेता है। जातक अपने सुख, उत्कर्ष एवं हर्ष का नाश स्वयं करता है । वह प्रवास, पलायन अथवा मिध्यापवार्श से पीडित रहता है । जेल की हवा खाना भी संभव है । उस पर विषादि का आधात हो सकता है । अप्रत्यक्ष द्वेशियों द्वारा उसके मार्ग में निरंतर गंभीर अवरोध उत्पन्न किए जाते हैं । इसके अलावा ऐसे जातक को पशुओं से भय होता है । वह क्रमशः एकांतिक अथवा संन्यासवृत्ति की और उन्मुख होता है । पाप प्रभावों से अशुभ परिणाम तीक्ष्ण हो जाते हैं। सकारात्मक प्रभाव अथवा शुभ ग्रह की युति होने पर चिकित्सालय, कारावास (जेल) तथा भिक्षुकगृह आदि से लाभ होता है । शनि की बुध से अशुभ युति विक्षिप्तावस्था उत्पन्न करती है । मंगल से शनि की युति रक्तपात या आत्महत्या अथवा आकस्मिक आक्रमण से जीवन की क्षति करती है । यदि शानि का सूर्य और चंद्रमा से अप्रिय संबंधृ स्थापित हो तो निकटस्थ व्यक्ति का देहावसान गहरा शोक उत्पन्न करता है । ऐसा जातक जीवन-जगत से विरक्त हो जाता है । मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन राशिस्थ शनि अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करता है । कुछ अंतर्विरोध भी होते हैं । जातक बुद्धिमान, किसी शाखा का विशेषज्ञ, संस्था-स्थापक या विधिवेता होता है और राजनीतिज्ञ के रूप में विशिष्ट प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यधपि जातक के वंश की विशेष उन्नति नहीं होती, किंतु धर्मपत्नी अवश्य ही गंभीर वृति की होती है । वृष, कन्या, तुला, मकर एवं कुंभ राशिगत शनि से भी आजीविका की उपरलिखित दशाएं प्राप्त होती है। प्रथम संतति कन्या होती है । इसका परिवार प्रचुर होता है । आत्म केंदित होने की भीषण व्याधि होती है । ज्येष्ठ व्यक्तियों से स्नेह प्राप्त होता है और सामाजिकता संदिग्ध होती है । मिथुन, वृश्चिक एवं कुंभ राशिस्थ शनि आंदोलनकारी उग्र व्यक्तित्व विकसित करता है। ऐसा जातक चिरकालिक सुयश प्राप्त करता है ।

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