जीवन-रेखा स्पष्ट, पुष्ट, गम्भीर और दीर्ध जीवन-रेखा बल, शक्ति और स्वास्थ्य प्रदर्शित करती है । किन्तु हाथ के और भागों से जो गुण या अवगुण प्रकट होते है उनके संयोग से क्या दुष्परिणाम पैदा होते है उनका विचार करना भी आवश्यक है--
(१) जिस मनुष्य पर बृहस्पति का प्रभाव अधिक है अर्थात गुरु का क्षेत्र उन्नत और विस्मृत हो और तर्जनी अधिक लम्बी हो तथा उसकी उँगलियों के तृतीय पर्व यदि अन्य पदों की अपेक्षा पुष्ट और फूले हुए हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन-रेखा की प्रदान की हुई बल और शक्ति का दुरुपयोग करता है और अत्यधिक भोजन (जिन परिवारों में मदिरापान प्रचलित है वहां मदिरापान) द्वारा सदैव अपनी तृप्ति करता रहता है । यदि ऐसे हाथ व हथेली में अधिक लाल वर्ण भी दिखाई दे तो समझिए कि अति भोजन और अति मदिरापान अपना काफी प्रभाव जमा चुके है ।
ऐसे हाथों में जीवन-रेखा के पुष्ट, गम्भीर और दीर्ध रहने पर भी यह भय बना रहता है कि यद्यपि शरीर और शक्ति में क्रमिक हास नहीं है किन्तु अधिक भोजन और मदिरापान के असंयम के फलस्वरूप सदैव स्वस्थ रहने वाला भी व्यक्ति रक्तचाप,आदि का सहसा शिकार हो जाता है । इन रोगों के कारण सहसा चक्कर आ जाना, बेहोशी, पक्षाघात आदि सांघातिक रोग हो जाते है ।
(२) उन्नत सूर्यक्षेत्र, सूर्य-रेखा एवं लम्बी अनामिका वाले व्यक्ति प्राणशक्ति का सदुपयोग करते है और दीर्घायु होते हैं ।
(३) जिन पर मंगल का प्रभाव अधिक हो अर्थात् मंगल के क्षेत्र उन्नत और विस्मृत हों उनकी भी वहीं प्रवृति होती है जैसी गुरु के प्रभाव वाले व्यक्तियों की होती है ।
(४) शुक्रक्षेत्र जिनका उच्च और विस्मृत है और जिनके अन्य लक्षण भी शुक का विशेष प्रभाव प्रकट करते है ऐसे व्यक्ति भी अधिक भोग-विलास द्वारा प्राणशक्ति का दुरुपयोग करते हैं और परिणाम हास ही होता है ।
(५) चन्द्र, बुध या शनि का प्रभाव जिन पर विशेष होता है उनकी वृत्तियाँ अपेक्षाकृत संयमित होती है ।
पतली और कम गहरी देखा
यदि जीवन-रेखा बहुत पतली और कम गहरी हो तो समझना चाहिए कि प्राणशक्ति सामान्य से कमं है । ऐसे व्यक्ति थोड़ा भी कारण उपस्थित होने पर बीमार हो जाते
हैं । ज्यादा शारीरिक कष्ट या परिश्रम भी सहन नहीं कर सकते । जीवन-रेखा किस हद तक पतली और उथली है यह निश्चय करने के लिए हाथ की और रेखाएँ भी देखनी चाहिएँ और फिर तुलनात्मक दृष्टि से निर्णय करना उचित है । यदि अन्य रेखाओं की अपेक्षा जीवन- .
रेखा गहरी है तो ऐसा व्यक्ति चिंता कम करेंगे । किन्तु यदि और रेखाओं की अपेक्षा जीवन-रेखा पतली है तो ऐसा व्यक्ति सदैव यह अनुभव करेगा कि वह बहुत परिश्रम कर रहा है और उस पर बडा जोर पड़ रहा है । उसके स्वास्थ्य बिगड़ने का डर रहता है । रेखा पर जहाँ भी कोई गडूढा, टूट या अन्य बीमारी का चिह्न हो तो अवश्य बीमारी होती है । बहुत पतली या उथली रेखा वाले व्यक्ति सदैव चिंतित-से रहते हैं । उन्हें भविष्य चिन्ता और विपक्षियों से ग्रस्त प्रतीत होता है । इसलिए जहाँ कष्ट, परिश्रम, आशंका या साहस का कार्य हो वहाँ ऐसे व्यक्तियों को कदापि नहीं चुनना चाहिए क्योंकि वे सदैव काल्पनिक आशंकाओं से ही भयभीत रहते है ।
जहाँ पतली रेखा के अवगुण है वहाँ इसका गुण भी यह है कि यदि बृहस्पति या मंगल का जिन पर विशेष प्रभाव है ऐसे व्यक्तियों के हाथ में पतली रेखा हो तो वे अत्यधिक भोजन नहीं करेगे और इस कारण बीमार नहीं होंगे । परन्तु क्षीण रेखा वाले व्यक्तियों का स्नायु-मडल प्राय: कमजोर रहता है और ये लोग सुस्त रहते हैं ।
चौडी और उथली रेखा
रेखा का चौडा होना गुण नहीं है । सकड़ी जगह में मात्रा उतनी ही होने से प्रवाह तीव्र होता है । किन्तु प्राणशक्ति जब चौड़ी रेखाओं में होकर प्रवाहित होती है तो उसकी गति मंद हो जाती है । इसलिए यदि आप देखें कि जीवन-रेखा गहरी नहीं है और चौडी है तो समक्रिए कि प्राण- शक्ति की कमी है । शरीर भी बलवान नहीं होता । ऐसे व्यक्ति तुरन्त रोग के शिकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति यदि देखने में मोटे भी हों तो समक्रिए कि उनमें बल अधिक नहीं है । रोग के कीटाणु ऐसे शरीर में शीघ्र ही अपना घर बना लेते हैं । ऐसे व्यक्तियों में आत्मविश्वास की भी कमी रहती है और वे सदैव किसी-न-किसी रोग की शिकायत करते रहते हैं । उन्हें प्राय: अपने मित्रों और सम्बन्धियों पर निर्भर रहने का अभ्यास हो जाता है और स्वयं जीवन में विशेष सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । ऐसे व्यक्ति केवल ऐसा काम कर सकते हैं जो एक ही क्रम का हो और जिसमें नवीन रुफूर्ति, साहस या उत्तरदायित्व न हो । यदि ऐसे व्यक्तियों को किसी साहस और उत्तरदायित्व के काम में लगा दिया जाय तो ऐसे काम में वे अधिक दिन तक नहीं लगे रह सकते । यदि ऐसी रेखा निश्शक्त से, ढीले हाथ में हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही आलसी होता है ।जिनकी ऊँगली के अग्रभाग चौड़े (आगे से फैले) होते है उनके हाथ में भी चौड़ी और उथली रेखा हो तो उनको भी यह निष्किय बना देती है और उनकी कार्य-शक्ति या क्रिया बहुत अल्प-मात्रा में रहती है । बृहस्पति, मंगल या शुक किसी भी ग्रह का प्रभाव इन मनुष्यों के ऊपर हो तो इनकी इच्छाएँ चित्त तक ही सीमित रहती है । कार्यान्वित करने की क्षमता उनमें नहीं होती । ऐसे व्यक्तियों की सन्तान भी कम ही होती हैं । चौडी और उथली रेखा
सब व्यक्तियों के हाथों में एक-सी नहीं होती । जितनी ही अधिक मात्रा में ये अवगुण हो उनके अनुरूप ही फलादेश करना चाहिए । यदि बाये हाथ की अपेक्षा दायें हाथ में रेखा अच्छी हो तो समझना चाहिए कि अब दशा सुधर रही है । किन्तु यदि दाहिने हाथ में रेखा अधिक खराब हों तो समझिये कि दशा और भी बिगड़ रहीं है ।
यदि हाथ की अन्य रेखाएँ उत्तम हों और केवल जीवन-रेखा में ही ये अवगुण हों तो समझना चाहिए कि असफलता का कारण ऐसे व्यक्ति की अस्वस्थता और निर्बलता है । शनि के क्षेत्र को भी ध्यान से देखना चाहिए । यदि यह क्षेत्र भी विस्मृत हो या शनि का प्रभाव विशेष हो तो ऐसे व्यक्ति प्राय: दुखी, गमगीन और कष्ट पाने वाले होते है और आत्महत्या तक करने की इच्छा हो जाती है ।
यदि स्त्रियों के हाथ में उपर्युक्त सब बाते हो और चन्द्रमा के क्षेत्र के नीचे के तृतीय भाग से स्त्री-रोग भी प्रकट होते हों तो उनमें उपर्युक्त निराशावाद और ऐहिक लीला समाप्त करने की
भावना और भी अधिक होती है । ऐसे हाथों में यह भी दूँढना चाहिए कि किस बीमारी के चिह्न या लक्षण है । माता-पिता को उचित है कि ऐसे लोगों का विवाह न करे ।
(१) जिस मनुष्य पर बृहस्पति का प्रभाव अधिक है अर्थात गुरु का क्षेत्र उन्नत और विस्मृत हो और तर्जनी अधिक लम्बी हो तथा उसकी उँगलियों के तृतीय पर्व यदि अन्य पदों की अपेक्षा पुष्ट और फूले हुए हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन-रेखा की प्रदान की हुई बल और शक्ति का दुरुपयोग करता है और अत्यधिक भोजन (जिन परिवारों में मदिरापान प्रचलित है वहां मदिरापान) द्वारा सदैव अपनी तृप्ति करता रहता है । यदि ऐसे हाथ व हथेली में अधिक लाल वर्ण भी दिखाई दे तो समझिए कि अति भोजन और अति मदिरापान अपना काफी प्रभाव जमा चुके है ।
ऐसे हाथों में जीवन-रेखा के पुष्ट, गम्भीर और दीर्ध रहने पर भी यह भय बना रहता है कि यद्यपि शरीर और शक्ति में क्रमिक हास नहीं है किन्तु अधिक भोजन और मदिरापान के असंयम के फलस्वरूप सदैव स्वस्थ रहने वाला भी व्यक्ति रक्तचाप,आदि का सहसा शिकार हो जाता है । इन रोगों के कारण सहसा चक्कर आ जाना, बेहोशी, पक्षाघात आदि सांघातिक रोग हो जाते है ।
(२) उन्नत सूर्यक्षेत्र, सूर्य-रेखा एवं लम्बी अनामिका वाले व्यक्ति प्राणशक्ति का सदुपयोग करते है और दीर्घायु होते हैं ।
(३) जिन पर मंगल का प्रभाव अधिक हो अर्थात् मंगल के क्षेत्र उन्नत और विस्मृत हों उनकी भी वहीं प्रवृति होती है जैसी गुरु के प्रभाव वाले व्यक्तियों की होती है ।
(४) शुक्रक्षेत्र जिनका उच्च और विस्मृत है और जिनके अन्य लक्षण भी शुक का विशेष प्रभाव प्रकट करते है ऐसे व्यक्ति भी अधिक भोग-विलास द्वारा प्राणशक्ति का दुरुपयोग करते हैं और परिणाम हास ही होता है ।
(५) चन्द्र, बुध या शनि का प्रभाव जिन पर विशेष होता है उनकी वृत्तियाँ अपेक्षाकृत संयमित होती है ।
पतली और कम गहरी देखा
यदि जीवन-रेखा बहुत पतली और कम गहरी हो तो समझना चाहिए कि प्राणशक्ति सामान्य से कमं है । ऐसे व्यक्ति थोड़ा भी कारण उपस्थित होने पर बीमार हो जाते
हैं । ज्यादा शारीरिक कष्ट या परिश्रम भी सहन नहीं कर सकते । जीवन-रेखा किस हद तक पतली और उथली है यह निश्चय करने के लिए हाथ की और रेखाएँ भी देखनी चाहिएँ और फिर तुलनात्मक दृष्टि से निर्णय करना उचित है । यदि अन्य रेखाओं की अपेक्षा जीवन- .
रेखा गहरी है तो ऐसा व्यक्ति चिंता कम करेंगे । किन्तु यदि और रेखाओं की अपेक्षा जीवन-रेखा पतली है तो ऐसा व्यक्ति सदैव यह अनुभव करेगा कि वह बहुत परिश्रम कर रहा है और उस पर बडा जोर पड़ रहा है । उसके स्वास्थ्य बिगड़ने का डर रहता है । रेखा पर जहाँ भी कोई गडूढा, टूट या अन्य बीमारी का चिह्न हो तो अवश्य बीमारी होती है । बहुत पतली या उथली रेखा वाले व्यक्ति सदैव चिंतित-से रहते हैं । उन्हें भविष्य चिन्ता और विपक्षियों से ग्रस्त प्रतीत होता है । इसलिए जहाँ कष्ट, परिश्रम, आशंका या साहस का कार्य हो वहाँ ऐसे व्यक्तियों को कदापि नहीं चुनना चाहिए क्योंकि वे सदैव काल्पनिक आशंकाओं से ही भयभीत रहते है ।
जहाँ पतली रेखा के अवगुण है वहाँ इसका गुण भी यह है कि यदि बृहस्पति या मंगल का जिन पर विशेष प्रभाव है ऐसे व्यक्तियों के हाथ में पतली रेखा हो तो वे अत्यधिक भोजन नहीं करेगे और इस कारण बीमार नहीं होंगे । परन्तु क्षीण रेखा वाले व्यक्तियों का स्नायु-मडल प्राय: कमजोर रहता है और ये लोग सुस्त रहते हैं ।
चौडी और उथली रेखा
रेखा का चौडा होना गुण नहीं है । सकड़ी जगह में मात्रा उतनी ही होने से प्रवाह तीव्र होता है । किन्तु प्राणशक्ति जब चौड़ी रेखाओं में होकर प्रवाहित होती है तो उसकी गति मंद हो जाती है । इसलिए यदि आप देखें कि जीवन-रेखा गहरी नहीं है और चौडी है तो समक्रिए कि प्राण- शक्ति की कमी है । शरीर भी बलवान नहीं होता । ऐसे व्यक्ति तुरन्त रोग के शिकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति यदि देखने में मोटे भी हों तो समक्रिए कि उनमें बल अधिक नहीं है । रोग के कीटाणु ऐसे शरीर में शीघ्र ही अपना घर बना लेते हैं । ऐसे व्यक्तियों में आत्मविश्वास की भी कमी रहती है और वे सदैव किसी-न-किसी रोग की शिकायत करते रहते हैं । उन्हें प्राय: अपने मित्रों और सम्बन्धियों पर निर्भर रहने का अभ्यास हो जाता है और स्वयं जीवन में विशेष सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । ऐसे व्यक्ति केवल ऐसा काम कर सकते हैं जो एक ही क्रम का हो और जिसमें नवीन रुफूर्ति, साहस या उत्तरदायित्व न हो । यदि ऐसे व्यक्तियों को किसी साहस और उत्तरदायित्व के काम में लगा दिया जाय तो ऐसे काम में वे अधिक दिन तक नहीं लगे रह सकते । यदि ऐसी रेखा निश्शक्त से, ढीले हाथ में हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही आलसी होता है ।जिनकी ऊँगली के अग्रभाग चौड़े (आगे से फैले) होते है उनके हाथ में भी चौड़ी और उथली रेखा हो तो उनको भी यह निष्किय बना देती है और उनकी कार्य-शक्ति या क्रिया बहुत अल्प-मात्रा में रहती है । बृहस्पति, मंगल या शुक किसी भी ग्रह का प्रभाव इन मनुष्यों के ऊपर हो तो इनकी इच्छाएँ चित्त तक ही सीमित रहती है । कार्यान्वित करने की क्षमता उनमें नहीं होती । ऐसे व्यक्तियों की सन्तान भी कम ही होती हैं । चौडी और उथली रेखा
सब व्यक्तियों के हाथों में एक-सी नहीं होती । जितनी ही अधिक मात्रा में ये अवगुण हो उनके अनुरूप ही फलादेश करना चाहिए । यदि बाये हाथ की अपेक्षा दायें हाथ में रेखा अच्छी हो तो समझना चाहिए कि अब दशा सुधर रही है । किन्तु यदि दाहिने हाथ में रेखा अधिक खराब हों तो समझिये कि दशा और भी बिगड़ रहीं है ।
यदि हाथ की अन्य रेखाएँ उत्तम हों और केवल जीवन-रेखा में ही ये अवगुण हों तो समझना चाहिए कि असफलता का कारण ऐसे व्यक्ति की अस्वस्थता और निर्बलता है । शनि के क्षेत्र को भी ध्यान से देखना चाहिए । यदि यह क्षेत्र भी विस्मृत हो या शनि का प्रभाव विशेष हो तो ऐसे व्यक्ति प्राय: दुखी, गमगीन और कष्ट पाने वाले होते है और आत्महत्या तक करने की इच्छा हो जाती है ।
यदि स्त्रियों के हाथ में उपर्युक्त सब बाते हो और चन्द्रमा के क्षेत्र के नीचे के तृतीय भाग से स्त्री-रोग भी प्रकट होते हों तो उनमें उपर्युक्त निराशावाद और ऐहिक लीला समाप्त करने की
भावना और भी अधिक होती है । ऐसे हाथों में यह भी दूँढना चाहिए कि किस बीमारी के चिह्न या लक्षण है । माता-पिता को उचित है कि ऐसे लोगों का विवाह न करे ।
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