प्रथम भाव में राहु का फल राहु यदि लग्न में हो तो जातक लापरवाह, पराक्रमी और अभिमानी होता है। उसे शीघ्र कीर्ति मिलती है। शक्तिवान होकर जातक लोगों की दृष्टि में श्रेष्ठ कहा जाता है। शिक्षा की ओर ऐसे जातकों का रूझान नहीं होता, इसलिये ये उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। दूसरे भाव में राहु का फल यदि किसी जातक की कुंडली में दूसरे भाव में राहु हो तो जातक रोगी और चिड़चिडे़ स्वभाव का होता है तथा पारिवारिक जीवन में उसे कई व्याघात सहन करने पड़ते हैं। यदि अन्य धन योग न हो तो आर्थिक दृष्टि से स्थिति डावांडोल ही रहती है। फिर भी ऐसा जातक बाल्यावस्था में तो द्रव्याभाव से पीड़ित रहता है, परंतु ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है उसके पास अर्थ संचय होता रहता है। तृतीय भाव में राहु का फल तीसरे भाव में राहु हो तो वह जातक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति होता है। पराक्रम एवं बल में उसकी समानता कम ही लोग कर पाते हैं। जातक की जान पहचान भी विस्तृत क्षेत्र में होती है एवं अपने प्रभाव से वह लोगों को अपने पक्ष में करने की युक्ति जानता है। सुंदर, दृढ़ शरीर, मांसल भुजाएं, उन्नत वक्ष स्थल एवं सामथ्र्ययुक्त व्यक्ति होता है। जातक प्रारंभ में संकट देखता है व शीघ्र ही उसे मन लायक पद प्राप्त हो जाता है एवं उत्तरोत्तर उन्नति करता है। ऐसा जातक पुलिस या सेना में विशेष सफल होता है। इसके छोटे भाई नहीं होते, अगर होते भी हैं तो जातक को उनसे नहीं के बराबर लाभ प्राप्त होता है। बोलने में असभ्यता प्रकट करता है तथा कई बार वाणी के कारण अपना कार्य बिगाड़ देता है। धोखा देने में यह जातक कुशल होता है तथा समय पड़ने पर बड़े से बड़ा झूठ बोल लेता है। राजनीतिक क्षेत्र में यह पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। पुत्रों की अपेक्षा कन्या संतान इसके ज्यादा होती है। पंचम भाव में राहु का फल पंचम भाव में राहु की स्थिति नुकसानदायक ही होती है। जीवन में मित्रों का अभाव रहता है। लेकिन शत्रुओं से प्रताड़ित होने पर भी यह जीवट वाला व्यक्ति होता है। संतान-दुख इसे सहन करना पड़ता है तथा गृह-कलह से भी यह चिंतित रहता है, ऐसा जातक क्रोधी एवं हृदय का रोगी होता है। छठे भाव में राहु का फल राहु छठे भाव में बैठकर जातक की कठिनाइयों को सुगम कर देता है। शत्रुओं से वह सम्मान प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति प्रबलरूपेण शत्रु संहारक तथा बलवान होता है। जातक की बहुत आयु होती है तथा उसे धन लाभ भी श्रेष्ठ रहता है। पूर्ण सुख सुविधा इस जातक को प्राप्त होती रहती है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं। इसका मस्तिष्क अस्थिर रहता है तथा मानसिक परेशानियां दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं। जातक परस्त्रीगामी होता है। ऐसा जातक दो प्रकार के जीवन को जीने वाला होता है। ऐसा जातक लेखक होता है और जीवन में उसे बहुत शोक झेलने पड़ते हैं। मुकदमों का सामना करना पड़ता है। 42 वर्ष के बाद उसके तमाम संकट समाप्त हो जाते हैं तथा उसे यश प्राप्त होता है। सप्तम भाव में राहु का फल यदि सप्तम भाव में राहु हो तो जातक को रोगिणी पत्नी/पति मिलती/ मिलता है तथा धन हानि करता है। वह स्त्री दुर्बुद्धि एवं संकीर्ण मनोवृत्ति की भी हो सकती है। यदि कोई शुभ ग्रह उसको नहीं देख रहा हो तो यह स्त्री विलासी प्रकृति की होती है। ऐसा जातक कई मामलों में भाग्यहीन होता है। बाल्यावस्था में इसे कठोर श्रम करना पड़ता है। साथ ही यह सद्गुणों को लेकर चलने पर भी कदम-कदम पर बाधाओं का सामना करता है। वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न होती है। ष्टम भाव में राहु का फल जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में राहु होता है, वह दीर्घजीवी होता है। ऐसा व्यक्ति कवि, लेखक, क्रिकेटर, पत्रकार होता है। धर्म कर्म को समझते हुए भी, यह उसमें आंशिक अभिरूचि रखता हुआ विद्रोही स्वभाव का होता है। जातकों का बचपन परेशानियों में बीतता है। जलघात एवं वृक्षपात दोनों ही संभव है। गृहस्थ जीवन सुखद कहा जा सकता है। जातक की आयु 70 वर्ष से ज्यादा होती है।अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए ऐसा जातक सचेष्ट रहता है तथा अधिकारियों से जो भी आदेश मिलता है उसका कठोरता से पालन करता है। स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की कुंडली में राहु की यही स्थिति थी। दशम भाव में राहु का फल दशम भाव में राहु की स्थिति इस बात की सूचक है कि जातक देर सवेर निश्चय ही राजनीति के क्षेत्र में घुसेगा और सफलता प्राप्त करेगा। राजनीतिक दांव-पेंच जितनी कुशलता से यह जानता है उतना अन्य नहीं।
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