Friday, 25 September 2015

सूर्य क्षेत्र

यह अनामिका ऊँगली के नीचे होता है । यह उन्नत होने से मनुष्य में उत्साह और सौदर्यप्रियता होती है । चाहे मनुष्य कलाकार या संगीतज्ञ न हो किन्तु काव्य-कला और संगीत में उसकी रुचि अवश्य रहती है । ये इस ग्रह-क्षेत्र के साधारण गुण है । अब निम्न, साधारण, उच्च या अति उच्च इन तीनों लक्षणों के अलग-अलग फल बताये जाते हैं…-
यदि यह क्षेत्र बिलकुल धंसा हुआ हो तो उत्साह-शक्ति कम होती है । कला, काव्य आदि की ओर मन बिलकुल नहीं जाता । न अध्ययन की ओर रुचि होती है । तमाशा देखना, खाना-पीना बस यहीं जीवन का ध्येय होता है । बुद्धि प्रखर नहीं होती ।
यदि साधारण उच्च हो तो जो गुण प्रारम्भ में बताये गये है वहीं होते है । कला, काव्य, सौन्दर्यप्रियता आदि की ओर प्रवृत्ति रहते हुए भी सृजन-शक्ति नहीं होती ।
यदि अच्छी प्रकार उच्च हो तो यश, मान, प्रतिष्ठा, धन-संग्रह आदि में सफलता होती है । सौन्दर्यप्रियता विशेष होती है, विवाह की ओर रुचि होते हुए भी या विवाह कर लेने पर भी इन्हें पूर्ण वैवाहिक सुख प्राप्त नहीं होता, क्योंकि इनका आदर्श बहुत ऊंचा होता है । ये लोग आभूषण-प्रेमी होते है । धार्मिकता की ओर भी इनकी रुचि होती है । यदि उगलियों का प्रथम पर्व लम्बा हो तो काव्य या साहित्यकर्ता या कलाकार होते है ।यदि बहुत अधिक उच्च हो तो 'अति' माना में गुण भी अवगुण हो जाते हैं । 'अहं' भाव या अभिमान बहुत बढ़ जाता है । इनमें ईष्यदें, खुशामदप्रियता आदि दुमुँग्नप्ला होते है । यदि साथ ही अंगूठे का प्रथम पर्व अधिक लम्बा और द्वितीय पर्व छोटा हो,उंगलियाँ टेढी हों तो ये दुर्गुण विशेष मात्रा में होते है ।
स्वास्थ्य की दृष्टि से नेत्र-विकार, कम दिखाई देना, हृदय-रोग आदि का सूर्य-क्षेत्र से विशेष सम्बन्ध है । यदि शीर्ष-रेखा पर सूर्य-क्षेत्र के नीचे बिन्दु-चिह्न हो तो अंधापन, यदि हृदय-रेखा द्वीपयुक्त या अन्य दोषयुक्त हो तो हृदय-रोग होता है ।

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