हथेली पर मौजूद हर रेखा अपने आपमें एक प्रकार के जीवन शक्ति प्रवाह की परिचायक होती है, तथा यही रेखायें व्यक्ति के जीवन की सूक्ष्मतर स्थितियों का संकेत करती हैं। इन्ही रेखाओं के दोषी होने पर व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट और अटूट रेखाएँ व्यक्ति के जीवन के सफलता को प्रमाणित करती हैं। हस्त रेखाएँ पूरे जीवन की व्याख्या कर देती हैं। हथेली की प्रत्येक रेखा व्यक्ति के किसी न किसी घटना को स्पष्ट करती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि घटनाओं की निश्चित् तिथियाँ नहीं बतायी जा सकती पर स्थान, नाम आदि बताना सम्भव है। गहन अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर घटित घटनाओं को ठीक पास में लाया जा सकता है। अधिक अभ्यास हो जाने के बाद आप घटना के लिए जो तिथि निर्णय करेंगे तो आम तौर पर उस तिथि पर वह घटना घटेगी, यह परिश्रम अध्ययन और फलादेश की प्रमाणिक युक्ति है। यह भी ध्यान रखना होता है कि मस्तिष्क के गुणों, दोषों के अनुसार रेखायें परिवर्तित होती रहती हैं।
हृदय रेखा 16 प्रकार की मानी गई हैः- जगती , राजपददात्री , कुमारी , गान्धारी , सेनानित्वप्रदा , दरिद्रकारी , धृती , वासवी , चम्पकमाला ,वैश्वदेवी , त्रिपदी , महाराजकरी , रमणी , चपलवदना , कुग्रहणी आदि।कभी-कभी हथेली पर बहुत अधिक और कभी-2 बिल्कुल कम रेखाएँ देखने में आती हैं। जीवन रेखा एक ऐसी रेखा है जो प्रत्येक मनुष्य के हथेली में होती है, अन्य रेखाओं की अनुपस्थिति में दूसरी छोटी रेखाओं द्वारा पूर्ण की जाती है।प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं। ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती हैं। अतः इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है। प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं। ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती है। अतः
इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है। मुख्यतः रेखायें चार प्रकार की होती हैं।
1. गहरी रेखा- यह रेखा पतली होने के साथ-2 गहरी (मोटी) भी होती है।
2. ढलुआ रेखा- यह रेखा शुरु में मोटी होती है तथा ज्यों-जयों आगे बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों पतली होती जाती है।
3. पतली रेखा- वह रेखा शुरु से आखिर तक एक आकार (पतली) में होती है।
4. मोटी रेखा- यह रेखा चैड़ायी लिये होती है और पूर्णतः स्पष्ट होती है। मनुष्य के हाथ में गहरी, स्पष्ट और सरल रक्त वर्ण की, हृदय रेखा व्यक्ति को मानवीय गुणों से सम्पन्न करती है। दाहिने हाथ की हृदय रेखा जितनी ज्यादा साफ और गहराई लिये होगी व्यक्ति उतना ही अधिक सरस, न्यायप्रिय तथा परोपकारी माना जाता है। किन्तु हृदय रेखा यदि कटी, टूटी या अस्पष्ट होगी, तो व्यक्ति देखने में, चाहे जितना सज्जन क्यों न हो वह दिल से पापी और कलुषित होगा। ऐसा व्यक्ति असभ्य, बद्चलन चरित्रहीन विवेकशून्य आदि अवगुणों वाला होगा। ऐसे व्यक्तियों का आसानी से यकीन करना अपने आप को धोखा देने के बराबर है। इसका हृदय से सीधा सम्बन्ध माना गया है। जो कि जीवन का प्राथमिक अंग है, जहां से संचालन का नियन्त्रण होता है। निर्दोष और सबल हृदय रेखा स्वस्थ्य हृदय की परिचायक है। करीब एक सौ हाथों में एकाध हथेली ही ऐसी होती है जिसमें हृदय रेखा का अभाव होता है। हथेली में इस रेखा की अनुपस्थिति व्यक्ति के अमानवीय प्रवृत्तियों को स्पष्ट करती है। यह रेखा व्यक्ति को दुर्गुण एवं गुण दोनों प्रदान करती है। प्राचीन हस्तरेखा ग्रन्थों के अनुसार हृदय रेखा तीन स्थानों से शुरु होती है। 1. शनि और गुरु पर्वत के मध्य से 2. गुरु पर्वत के केन्द्र से 3. शनि पर्वत के केन्द्र से।
हृदय रेखा 16 प्रकार की मानी गई हैः- जगती , राजपददात्री , कुमारी , गान्धारी , सेनानित्वप्रदा , दरिद्रकारी , धृती , वासवी , चम्पकमाला ,वैश्वदेवी , त्रिपदी , महाराजकरी , रमणी , चपलवदना , कुग्रहणी आदि।कभी-कभी हथेली पर बहुत अधिक और कभी-2 बिल्कुल कम रेखाएँ देखने में आती हैं। जीवन रेखा एक ऐसी रेखा है जो प्रत्येक मनुष्य के हथेली में होती है, अन्य रेखाओं की अनुपस्थिति में दूसरी छोटी रेखाओं द्वारा पूर्ण की जाती है।प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं। ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती हैं। अतः इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है। प्रत्येक मनुष्य के हाथ में कुछ गौण और कुछ मुख्य रेखायें होती हैं। ये रेखायें मनुष्य के चारित्रिक गुणों को उत्पन्न करने वाली होती है। अतः
इनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति भी हो सकती है। मुख्यतः रेखायें चार प्रकार की होती हैं।
1. गहरी रेखा- यह रेखा पतली होने के साथ-2 गहरी (मोटी) भी होती है।
2. ढलुआ रेखा- यह रेखा शुरु में मोटी होती है तथा ज्यों-जयों आगे बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों पतली होती जाती है।
3. पतली रेखा- वह रेखा शुरु से आखिर तक एक आकार (पतली) में होती है।
4. मोटी रेखा- यह रेखा चैड़ायी लिये होती है और पूर्णतः स्पष्ट होती है। मनुष्य के हाथ में गहरी, स्पष्ट और सरल रक्त वर्ण की, हृदय रेखा व्यक्ति को मानवीय गुणों से सम्पन्न करती है। दाहिने हाथ की हृदय रेखा जितनी ज्यादा साफ और गहराई लिये होगी व्यक्ति उतना ही अधिक सरस, न्यायप्रिय तथा परोपकारी माना जाता है। किन्तु हृदय रेखा यदि कटी, टूटी या अस्पष्ट होगी, तो व्यक्ति देखने में, चाहे जितना सज्जन क्यों न हो वह दिल से पापी और कलुषित होगा। ऐसा व्यक्ति असभ्य, बद्चलन चरित्रहीन विवेकशून्य आदि अवगुणों वाला होगा। ऐसे व्यक्तियों का आसानी से यकीन करना अपने आप को धोखा देने के बराबर है। इसका हृदय से सीधा सम्बन्ध माना गया है। जो कि जीवन का प्राथमिक अंग है, जहां से संचालन का नियन्त्रण होता है। निर्दोष और सबल हृदय रेखा स्वस्थ्य हृदय की परिचायक है। करीब एक सौ हाथों में एकाध हथेली ही ऐसी होती है जिसमें हृदय रेखा का अभाव होता है। हथेली में इस रेखा की अनुपस्थिति व्यक्ति के अमानवीय प्रवृत्तियों को स्पष्ट करती है। यह रेखा व्यक्ति को दुर्गुण एवं गुण दोनों प्रदान करती है। प्राचीन हस्तरेखा ग्रन्थों के अनुसार हृदय रेखा तीन स्थानों से शुरु होती है। 1. शनि और गुरु पर्वत के मध्य से 2. गुरु पर्वत के केन्द्र से 3. शनि पर्वत के केन्द्र से।
1)i. शनि गुरु के मध्य से- ऐसे व्यक्ति व्यवहार कुशल और स्नेही होते हैं। इनका प्रेम जीवन की प्राथमिकता पूर्ति के बाद शुरु होता है।
ii. गुरु पर्वत के केन्द्र से- यह हृदय रेखा मनुष्य के प्रणव सम्बन्धों और स्नेह को आदर्शवादी आधार प्रदान करती है। ऐसे व्यक्ति विषम परिस्थिति एवं आपत्ति काल में भी सम्बन्धों का निर्वाह करने में सफल होते हैं।
iii. शनि पर्वत से- यह हृदय रेखा स्वार्थ भावना उत्पन्न करती है तथा ऐसे लोग वासना के प्रति यकीन रखते हैं। ऐसी भावना रखते हैं कि जिसमें अपना स्वार्थ झलकता हो और प्रेम वासना अधिक पायी जाती है, इसलिए प्रेम सम्बन्धों में स्वार्थी होते हैं।
ii. गुरु पर्वत के केन्द्र से- यह हृदय रेखा मनुष्य के प्रणव सम्बन्धों और स्नेह को आदर्शवादी आधार प्रदान करती है। ऐसे व्यक्ति विषम परिस्थिति एवं आपत्ति काल में भी सम्बन्धों का निर्वाह करने में सफल होते हैं।
iii. शनि पर्वत से- यह हृदय रेखा स्वार्थ भावना उत्पन्न करती है तथा ऐसे लोग वासना के प्रति यकीन रखते हैं। ऐसी भावना रखते हैं कि जिसमें अपना स्वार्थ झलकता हो और प्रेम वासना अधिक पायी जाती है, इसलिए प्रेम सम्बन्धों में स्वार्थी होते हैं।
2.i. मस्तिष्क रेखा के निकट से आरम्भ होने वाली हृदय रेखा असाधारण रूप से दीर्घ हो तो ईष्र्या की भावना उत्पन्न करती है तथा प्रेम सम्बन्धों में ये असफल होते हैं।
2.ii. अधिक दीर्घ हृदयरेखा भावनात्मक प्रवृत्ति को उत्पन्न करने वाली होती है, तथा छोटी हृदय रेखा अच्छी मानी गयी है।
2.iii. हृदय रेखा जिस पर्वत को छूती हुई या स्पर्श करती हुई आगे की ओर जाती है या वहीं झुक जाती है, तो ऐसी हालत में पर्वत विशेष का गुण हृदय में अधिक पाया जाता है।
2.ii. अधिक दीर्घ हृदयरेखा भावनात्मक प्रवृत्ति को उत्पन्न करने वाली होती है, तथा छोटी हृदय रेखा अच्छी मानी गयी है।
2.iii. हृदय रेखा जिस पर्वत को छूती हुई या स्पर्श करती हुई आगे की ओर जाती है या वहीं झुक जाती है, तो ऐसी हालत में पर्वत विशेष का गुण हृदय में अधिक पाया जाता है।
3.i. यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा में पूरी तरह शामिल हो जाय, तो उस आयु में हृदय की स्वतंत्र ईकाई नष्ट हो जाती है और हृदय मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
3.ii. जब कई सूक्ष्म रेखायें नीचे से चलकर हृदय रेखा पर धावा बोल दें तो व्यक्ति प्रेम का जाल इधर उधर फेंकता फिरता है। निरन्तर किसी को प्रेम न करके वे व्यभिचारी बन जाते हैं।
3.iii. यदि हृदय रेखा चैड़ी और श्रृंखला युक्त हो तथा शनि क्षेत्र से शुरु हो तो वह स्त्री या पुरुष विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित नहीं होता तथा एक दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखता है।
3.ii. जब कई सूक्ष्म रेखायें नीचे से चलकर हृदय रेखा पर धावा बोल दें तो व्यक्ति प्रेम का जाल इधर उधर फेंकता फिरता है। निरन्तर किसी को प्रेम न करके वे व्यभिचारी बन जाते हैं।
3.iii. यदि हृदय रेखा चैड़ी और श्रृंखला युक्त हो तथा शनि क्षेत्र से शुरु हो तो वह स्त्री या पुरुष विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित नहीं होता तथा एक दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखता है।
4.i. हृदय रेखा लाल और चमकीले रंग की होने पर व्यक्ति को हिंसात्मक वासना (बलात्कार) पूर्ति के लिए उत्सुक करती है।
4.ii. यदि बृहस्पति क्षेत्र से दोमुंही हृदय रेखा आती है तो व्यक्ति प्रेम के क्षेत्र में उत्साही, इमानदार और सच्चे दिल का स्वामी होता है।
4.iii. हृदय रेखा शाखाहीन और पतली होने से व्यक्ति रुखे स्वभाव का होता है तथा उसके प्रेम में गरिमा नहीं होती।
4.ii. यदि बृहस्पति क्षेत्र से दोमुंही हृदय रेखा आती है तो व्यक्ति प्रेम के क्षेत्र में उत्साही, इमानदार और सच्चे दिल का स्वामी होता है।
4.iii. हृदय रेखा शाखाहीन और पतली होने से व्यक्ति रुखे स्वभाव का होता है तथा उसके प्रेम में गरिमा नहीं होती।
5.i. यदि हृदय रेखा है पर बाद में फीकी पड़ जाय तो प्रेम में भीषण निराशा का सामना होता है। जिस कारण वह हृदय हीन और प्रेम विमुख हो जाता है।
5.ii. हृदय रेखा पर क्रास या नक्षत्र का निशान होने से हृदय गति प्रभावित होती है।
5.iii हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर शनि पर्वत के नीचे तक जाते-जाते समाप्त हो जाये, तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामले में धोखेबाज होता है।
5.iv. बुध पर्वत के नीचे से निकलकर गुरु पर्वत के नीचे तक आती हुई प्रतीत हो तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामले में धैर्यवान होता है तथा पत्नी को महत्त्व देता है और ईश्वर से डरने वाला तथा विशुद्ध प्रेम का पुजारी होता है।
5.ii. हृदय रेखा पर क्रास या नक्षत्र का निशान होने से हृदय गति प्रभावित होती है।
5.iii हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर शनि पर्वत के नीचे तक जाते-जाते समाप्त हो जाये, तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामले में धोखेबाज होता है।
5.iv. बुध पर्वत के नीचे से निकलकर गुरु पर्वत के नीचे तक आती हुई प्रतीत हो तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामले में धैर्यवान होता है तथा पत्नी को महत्त्व देता है और ईश्वर से डरने वाला तथा विशुद्ध प्रेम का पुजारी होता है।
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