बृहस्पति-क्षेत्र के नीचे तथा जीवन-रेखा के प्रारम्भ के ऊपरी भाग से प्रारम्भ होकर मंगल के प्रथम क्षेत्र या चन्द्र-गोत्र की ओर यह जाती है । बहुत से हाथों में यह वृहस्पति-क्षेत्र के अन्दर से प्रारम्भ होती है या कभी-कभी जीवन-रेखा के भीतर मंगल के द्वितीय क्षेत्र से ही प्रारम्भ हो जाती है । यदि बृह्रस्पति-क्षेत्र से प्रारम्भ हो और शीर्ष-रेखा तथा जीवन-रेखा प्रारम्भ में एक दूसरे से स्पर्श करती हों तो इसका प्रारम्भ शुभ समझना चाहिये । यह योग रेखा को बल प्रदान करता है और यदि रेखा लम्बी भी हो तो बलिष्ठ रेखा समझनी चाहिए । ऐसा व्यक्ति शासन में निपुण होता है और उसमें अधिकार तथा महत्वाकांक्षा की भावना प्रबल होती है । बुहस्पति-क्षेत्र से संयोग होने के कारण शीर्ष-रेखा में उदात्त भावना और महत्वाकांक्षा के साथ-साथ न्यायप्रियता, दयालुता और समझदारी भी होती है, इस कारण वह अधिकार प्रयोग में उद्दण्डता या कठोरता का व्यवहार नहीं करता । जीवन-रेखा से योग होने के कारण उससे बौद्धिक शक्ति का प्राणशक्ति से समन्वय होता है । वह साहसपूर्वक कार्य को आगे बढाता है किन्तु विचार, सावधानी और सतर्कता भी उसमें पर्याप्त मात्रा में होती है ।यदि वृहस्पति के क्षेत्र से तो शीर्ष-रेखा प्रारम्भ हो किन्तु जीवन-रेखा से इसका योग न हो, दोनों में थोडा अन्तर हो तो ऐसे जातक में उपर्युक्त गुण तो विद्यामान होंगे किन्तु सतर्कता और सावधानी कम होगी । साहस अधिक होने से बिना गुण-दोष का विचार किये वह काम को जरुदी से कर डालेगा । 'नीति' की अपेक्षा उसमें साहस विशेष होगा । इसलिए जिन कार्यों में सहसा साहसपूर्वक कार्य निपटा लेना चाहिए उनमें उसे सफलता मिलेगी किन्तु अदूरदर्शिता के दुष्परिणाम से भी ऐसे लोग नहीं बच सकते ।
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