Friday, 2 October 2015

आय तो है पर बचत नहीं...

आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी व्यक्ति के पास कितनी धन संपत्ति होगी तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा आय का योग तथा नियमित साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति के संबंध में जानकारी मिलती है इस स्थान को धनभाव या मंगलभाव भी कहा जाता है अत: इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो धन तथा मंगल जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। चतुर्थ स्थान को सुखेश कहा जाता है इस स्थान से सुख तथा घरेलू सुविधा की जानकारी प्राप्त होती है अत: चतुर्थेश या चतुर्थभाव उत्तम स्थिति में हो तो घरेलू सुख तथा सुविधा, खान-पान तथा रहन-सहन उच्च स्तर का होता है तथा घरेलू सुख प्राप्ति निरंतर बनी रहती है। पंचमभाव से धन की पैतृक स्थिति देखी जाती है अत: पंचमेश या पंचमभाव उच्च या अनुकूल होतो संपत्ति सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी होती है।
अधिकतर देखने में आता है कि लोगों के आय में बाधा बनी रहती है, या फिर आय तो रही है, बचत नहीं हो पाती जिससे आय किसी काम का नहीं हो पाता। आय भाव एकादश भाव को कहते हैं व एकादश भाव में बैठे ग्रह को एकादशेश कहते हैं। धन भाव द्वितीय भाव को कहते हैं। आय हो लेकिन बचत न हो तब भी थोड़ी परेशानी रहती है। जितनी परेशानी आय न होने पर रहती है उतनी बचत न होने पर नहीं रहती।
जब आय भाव एकादश का स्वामी अष्टम भाव में हो तो आय के मामलों में बाधा का कारण बनता है। ऐसी स्थिती में एकादश भाव को बलवान किया जाए तो आय के क्षेत्र में बाधा दूर होती है।
षष्ट भाव का स्वामी अष्टम में हो तो कर्ज बढ़ता है व कर्ज जल्दी चूकता नहीं। ऐसी स्थिति किसी की पत्रिका में हो तो उन्हें कर्ज नहीं लेना चाहिए। लग्नेश षष्ट भाव में हो तो ऐसा जातक कर्ज लेता है। और यदि षष्टेश अष्टम में हो तो फिर कर्ज नहीं चूकता। और किसी कारण से कर्ज लेना पड़ जाए तो लग्न के स्वामी के रत्न को धारण करना चाहिए।

No comments: