Friday, 4 March 2016

ग्रहों का बलवान एवं अच्छी स्थिति में होना सफलता की कुंजी क्यों है?

अगर लग्न एवं लग्नेश बलवान है तो वह व्यक्ति स्वयं ऊर्जावान एवं क्षमतावान होगा और उसकी प्रतिकूल परिस्थितियों एवं बाधाओं से निपटने की क्षमता तथा प्रतिरोधात्मक शक्ति भी दुगनी होगी जिससे वह अपना बचाव करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता निकाल सकता है। लग्न एवं लग्नेश के निर्बल होने पर उनकी प्रतिरोधक क्षमता नगण्य हो जाती है और उसे थोड़ा भी प्रतिकूल प्रभाव अधिक महसूस होता है। फलस्वरूप उसकी प्रगति में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि अगर किसी पहलवान को चोट लग जाए तो वह उससे जल्दी स्वस्थ हो जाएगा, जबकि एक निर्बल व्यक्ति के लिए वह जानलेवा भी हो सकती है। अस्तु बलशाली लग्न एवं लग्नेश वाले व्यक्ति को अरिष्ट योगों का अपेक्षाकृत कम बुरा परिणाम परिलक्षित होगा और व्यक्ति के ऊर्जावान होने से अच्छे योगों का वह और अधिक लाभ उठाएगा, जबकि निर्बल लग्न एवं लग्नेश वाले व्यक्ति के ऊर्जाहीन रहने से उसे अनिष्ट योगों का प्रभाव ज्यादा कष्टप्रद महसूस होगा और अच्छे योगों का फल भी उसे अपेक्षाकृत कम लाभ ही दे पायेगा। ऐसी स्थिति जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों के सम्बन्ध में दृष्टिगोचर होती है। अगर ग्रह बलवान है तो उसका प्रभाव अच्छा परिलक्षित होगा, जबकि निर्बल ग्रह का प्रभाव कम या नगण्य ही रहेगा। वैसे तो ग्रहों का बल कई प्रकार से आकलित किया जाता है किन्तु राशि अंशों के आधार पर 0 से 6 अंश तक ग्रह को बालक 6 से 12 अंश तक कुमार, 12 से 18 अंश तक युवा, 18 से 24 अंश तक प्रौढ़ तथा 24 से 30 अंश तक वृद्ध माना गया है। इस प्रकार किसी राशि में ग्रह 10 अंश से 24 अंश के बीच बलशाली रहेगा। ग्रह की नीच, अशुभ या शत्रुभाव में स्थिति, क्रूर, अशुभ, शत्रु ग्रहों की युति या दृष्टि ग्रहों की शुभता को कम कर उसकी अशुभता में वृद्धि करती है। उच्च, शुभ या मित्र भाव में ग्रह की स्थिति, शुभ एवं मित्र ग्रहों से युति या उसकी दृष्टि ग्रह की अशुभता को कम कर उसकी शुभता में वृद्धि करती है। चन्द्रमा की सबलता व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मानसिकता का परिचायक है। कई बार देखने में आता है कि जन्मकुण्डली में प्रथम दृष्टया राजयोग एवं कई अच्छे योग होने के बावजूद व्यक्ति का जीवन साधारण स्तर का ही व्यतीत होता है, जबकि अशुभ एवं अनिष्टकारी योग होने के बावजूद कई व्यक्तियों का जीवन अस्त-व्यस्त नहीं होता और मामूली कुछ झटके सहकर वे संभल जाते हैं। यह परिणामों की विसंगति लग्न, लग्नेश, चन्द्र एवं योग निर्मित करने वाले ग्रहों के बल एवं उनकी स्थिति के कारण होती है। अगर योग निर्मित करने वाले ग्रह निर्बल हैं, अच्छी स्थिति में नहीं हैं, पीड़ित हैं तो वे अपना प्रभाव देने में असमर्थ रहेंगे। लग्न एवं लग्नेश की सबलता योग की शुभता में वृद्धि करेगी, जबकि निर्बलता अशुभता को बढ़ा देगी। यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है कि शक्ति के समक्ष सब नतमस्तक होते हैं।

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