वैज्ञानिक फ्रॉयड ने पहली बार यह सिद्ध किया कि हिस्टीरिया भी एक आत्मरति है, जो विशेष श्रेणी के स्त्री-पुरुषों में अपने आप होती है; अर्थात ऐसे स्त्री-पुरुष जिनमें यौन का आवेश दमित होता है।
विवाह में विलंब, पति की पौरुषहीनता, तलाक, मृत्यु, गंभीर आघात, धन हानि, मासिक धर्म विकार, संतान न होना, गर्भाशय की बीमारियां, पति की अवेहलना या दुर्व्यवहार आदि कई कारणों से स्त्रियां इस रोग में ग्रस्त हो जाती हैं। इस रोग का वेग या दौरा सदा किसी दूसरे व्यक्ति की उपस्थिति में होता है। कभी किसी अकेली स्त्री को हिस्टीरिया का दौरा नहीं पड़ता। जिन स्त्रियों को यह विश्वास होता है कि उनका कोई संरक्षण, पालन, परवाह एवं देखभाल करने वाला है, उन्हें ही यह रोग होता है। यदि, इसके विपरीत, रोगी को विश्वास हो जाए कि किसी को उसकी चिंता नहीं है और कोई उसके प्रति सद्भावना-सहानुभूति नहीं रखता है और न कोई देखभाल करने वाला है तो उस स्त्री का यह रोग अपने आप ठीक हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार ज्ञानवाही नाड़ियों में तमोगुण एवं वात तथा रूखेपन की वृद्धि हो कर चेतना में शिथिलता, अथवा निष्क्रियता आ जाने से यह रोग होता है। इस रोग की शुरुआत से पूर्व, या रोग होने पर किसी अंग विशेष, स्नायु, वातवाहिनी में या अन्य कहीं क्या विकार हो गया है, यह पता नहीं चलता।
हिस्टीरिया के लक्षण :
इस रोग के कोई निश्चित लक्षण नही होते, जिससे यह कहा जा सके कि रोग हिस्टीरिया ही है। अलग-अलग समय अलग- अलग लक्षण होते हैं। किन्हीं दो रोगियों के एक से लक्षण नहीं होते। रोगी जैसी कल्पना करता है, वैसे ही लक्षण दिखाई पड़ते हैं। साधारणतः रोगी बिना कारण, या बहुत मामूली कारणों से, हंसने या रोने लगता है। प्रकाश या किसी प्रकार की आवाज उसे अप्रिय लगते हैं। सिर, छाती, पेट, शरीर की संधि, रीढ़ तथा कंधों की मांसपेशियों में काफी वेदना होने लगती है। प्रायः दौरे से पहले रोगी चीखता, किलकारी भरता है तथा उसे लगातार हिचकियां आती रहती हैं। मूर्च्छा में रोगी के दांत भी भिंच सकते है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण :
विवाह में विलंब, पति की पौरुषहीनता, तलाक, मृत्यु, गंभीर आघात, धन हानि, मासिक धर्म विकार, संतान न होना, गर्भाशय की बीमारियां, पति की अवेहलना या दुर्व्यवहार आदि कई कारणों से स्त्रियां इस रोग में ग्रस्त हो जाती हैं। इस रोग का वेग या दौरा सदा किसी दूसरे व्यक्ति की उपस्थिति में होता है। कभी किसी अकेली स्त्री को हिस्टीरिया का दौरा नहीं पड़ता। जिन स्त्रियों को यह विश्वास होता है कि उनका कोई संरक्षण, पालन, परवाह एवं देखभाल करने वाला है, उन्हें ही यह रोग होता है। यदि, इसके विपरीत, रोगी को विश्वास हो जाए कि किसी को उसकी चिंता नहीं है और कोई उसके प्रति सद्भावना-सहानुभूति नहीं रखता है और न कोई देखभाल करने वाला है तो उस स्त्री का यह रोग अपने आप ठीक हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार ज्ञानवाही नाड़ियों में तमोगुण एवं वात तथा रूखेपन की वृद्धि हो कर चेतना में शिथिलता, अथवा निष्क्रियता आ जाने से यह रोग होता है। इस रोग की शुरुआत से पूर्व, या रोग होने पर किसी अंग विशेष, स्नायु, वातवाहिनी में या अन्य कहीं क्या विकार हो गया है, यह पता नहीं चलता।
हिस्टीरिया के लक्षण :
इस रोग के कोई निश्चित लक्षण नही होते, जिससे यह कहा जा सके कि रोग हिस्टीरिया ही है। अलग-अलग समय अलग- अलग लक्षण होते हैं। किन्हीं दो रोगियों के एक से लक्षण नहीं होते। रोगी जैसी कल्पना करता है, वैसे ही लक्षण दिखाई पड़ते हैं। साधारणतः रोगी बिना कारण, या बहुत मामूली कारणों से, हंसने या रोने लगता है। प्रकाश या किसी प्रकार की आवाज उसे अप्रिय लगते हैं। सिर, छाती, पेट, शरीर की संधि, रीढ़ तथा कंधों की मांसपेशियों में काफी वेदना होने लगती है। प्रायः दौरे से पहले रोगी चीखता, किलकारी भरता है तथा उसे लगातार हिचकियां आती रहती हैं। मूर्च्छा में रोगी के दांत भी भिंच सकते है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण :
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम इस तथ्य पर पहुंचे कि हिस्टीरिया उन स्त्री-पुरुषों को होता है जिनके यौन का आवेश दमित रहता है और शारीरिक रूप से वे असंतुष्ट रहते हैं। ज्योतिष में कुंडली का बारहवां भाव यौन सुख का होता है और सप्तम भाव जीवन साथी, अर्थात पति/पत्नी का होता है। इन दोनों भावों के शुभ प्रभावों में रहने से जातक यौन सुख का पूर्ण आनंद उठाता है। इसलिए ज्योतिष दृष्टिकोण से देखें, तो सप्तम भाव, सप्तमेश, द्वादश भाव और द्वादशेश अगर अशुभ प्रभावों में हैं, तो हिस्टीरिया रोग हो सकता है। इसके साथ, क्योंकि इसमें दौरा पड़ता है, इसलिए सूर्य, मंगल, चंद्र और लग्नेश के अशुभ प्रभावों में रहना जातक को हिस्टीरिया रोग से पीड़ित करता है।
विभिन्न लग्नों में हिस्टीरिया रोग
मेष लग्न : सप्तमेश छठे भाव में लग्नेश से युक्त, बुध अष्टम भाव में गुरु से युक्त हो, द्वादश भाव में चंद्र केतु से युक्त या दृष्ट हो, तो हिस्टीरिया रोग होने की संभावना होती है।
वृष लग्न : मंगल अष्टम् भाव में सूर्य से अस्त हो और बुध से युक्त हो, चंद्र सप्तम भाव में हो, और राहु-केतु से युक्त हो, लग्नेश शनि से युक्त, या दृष्ट हो और लग्न गुरु से दृष्ट हो, तो हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
मिथुन लग्न : सप्तमेश केंद्र में चंद्र से दृष्ट या युक्त हो, द्वादशेश और लग्नेश मंगल से दृष्ट हों, बुध त्रिक भावों में अस्त हो, द्वादश भाव में केतु हो, तो जातक की कामेच्छा दमित रहती है, जिससे हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
कर्क लग्न : शनि सूर्य से अस्त हो, लग्नेश राहु और केतु से दृष्ट या युक्त हो, बुध अस्त हो, मंगल-गुरु षष्ठ भाव में हों, तो जातक की यौन इच्छा दमित रहती है।
सिंह लग्न : शनि सप्तम भाव में राहु से दृष्ट हो और सूर्य शनि से दृष्ट हो, चंद्र त्रिकोण भाव में मंगल से युक्त हो और द्वादश भाव में शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक को हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
कन्या लग्न : गुरु (सप्मेश) द्वादश भाव में मंगल से दृष्ट या युक्त हो, सप्तम भाव केतु से दृष्ट हो, सूर्य पंचम भाव में और चंद्र सप्तम भाव में हों, बुध षष्ठ भाव में अस्त हो, तो जातक की कामेच्छा दमित होने से शारीरिक विकृतियां होती हैं।
तुला लग्न : शुक्र षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, केतु लग्न में चंद्र से युक्त हो, सप्तमेश द्वादश भाव में गुरु से दृष्ट, या युक्त हो, शनि शुभ प्रभावों से रहित हो, तो जातक अपनी कामेच्छा पूर्ण नहीं कर पाता।
वृश्चिक लग्न : शुक्र त्रिक स्थानों में, गुरु-केतु द्वादश भाव में हों, या दृष्टि रखें, लग्नेश अस्त हो, सूर्य सप्तम भाव में, या दृष्टि रखे, चंद्र राहु-केतु से दृष्ट हो, तो यौन इच्छाएं दमित होती हैं।
धनु लग्न : सप्तमेश बुध द्वादश भाव में, सूर्य एकादश भाव में हों, शुक्र लग्न में चंद्र से युक्त हो और केतु से दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में और शनि सप्तम भाव पर दृष्टि रखें, तो जातक को हिस्टीरिया हो सकता है।
मकर लग्न : गुरु लग्न में और मंगल से दृष्ट हो, केतु द्वादश भाव में चंद्र से युक्त हो, बुध सप्तम भाव में, शुक्र षष्ट भाव में अस्त हो, तो जातक शारीरिक रूप से असंतुष्ट रहता है।
कुंभ लग्न : सप्तमेश सूर्य और द्वादशेश शनि षष्ठ भाव में हों और शनि अस्त हो, चंद्र लग्न में राहु-केतु से युक्त, या दृष्ट हो, गुरु सप्तम भाव में हो, या दृष्टि रखे, मंगल द्वादश भाव में हो, तो जातक की यौन इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती।
मीन लग्न : गुरु (लग्नेश) षष्ठ भाव में अस्त हो, बुध पंचम भाव में शुक्र से युक्त हो, शनि द्वादश भाव में केतु से दृष्ट, या युक्त हो, चंद्र अष्टम भाव में मंगल से दृष्ट, या युक्त हो, तो जातक हिस्टीरिया जैसे रोग से ग्रस्त हो सकता है। उपर्युक्त सभी योग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा में और गोचर के अनुसार होते हैं।
मेष लग्न : सप्तमेश छठे भाव में लग्नेश से युक्त, बुध अष्टम भाव में गुरु से युक्त हो, द्वादश भाव में चंद्र केतु से युक्त या दृष्ट हो, तो हिस्टीरिया रोग होने की संभावना होती है।
वृष लग्न : मंगल अष्टम् भाव में सूर्य से अस्त हो और बुध से युक्त हो, चंद्र सप्तम भाव में हो, और राहु-केतु से युक्त हो, लग्नेश शनि से युक्त, या दृष्ट हो और लग्न गुरु से दृष्ट हो, तो हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
मिथुन लग्न : सप्तमेश केंद्र में चंद्र से दृष्ट या युक्त हो, द्वादशेश और लग्नेश मंगल से दृष्ट हों, बुध त्रिक भावों में अस्त हो, द्वादश भाव में केतु हो, तो जातक की कामेच्छा दमित रहती है, जिससे हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
कर्क लग्न : शनि सूर्य से अस्त हो, लग्नेश राहु और केतु से दृष्ट या युक्त हो, बुध अस्त हो, मंगल-गुरु षष्ठ भाव में हों, तो जातक की यौन इच्छा दमित रहती है।
सिंह लग्न : शनि सप्तम भाव में राहु से दृष्ट हो और सूर्य शनि से दृष्ट हो, चंद्र त्रिकोण भाव में मंगल से युक्त हो और द्वादश भाव में शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक को हिस्टीरिया रोग हो सकता है।
कन्या लग्न : गुरु (सप्मेश) द्वादश भाव में मंगल से दृष्ट या युक्त हो, सप्तम भाव केतु से दृष्ट हो, सूर्य पंचम भाव में और चंद्र सप्तम भाव में हों, बुध षष्ठ भाव में अस्त हो, तो जातक की कामेच्छा दमित होने से शारीरिक विकृतियां होती हैं।
तुला लग्न : शुक्र षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, केतु लग्न में चंद्र से युक्त हो, सप्तमेश द्वादश भाव में गुरु से दृष्ट, या युक्त हो, शनि शुभ प्रभावों से रहित हो, तो जातक अपनी कामेच्छा पूर्ण नहीं कर पाता।
वृश्चिक लग्न : शुक्र त्रिक स्थानों में, गुरु-केतु द्वादश भाव में हों, या दृष्टि रखें, लग्नेश अस्त हो, सूर्य सप्तम भाव में, या दृष्टि रखे, चंद्र राहु-केतु से दृष्ट हो, तो यौन इच्छाएं दमित होती हैं।
धनु लग्न : सप्तमेश बुध द्वादश भाव में, सूर्य एकादश भाव में हों, शुक्र लग्न में चंद्र से युक्त हो और केतु से दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में और शनि सप्तम भाव पर दृष्टि रखें, तो जातक को हिस्टीरिया हो सकता है।
मकर लग्न : गुरु लग्न में और मंगल से दृष्ट हो, केतु द्वादश भाव में चंद्र से युक्त हो, बुध सप्तम भाव में, शुक्र षष्ट भाव में अस्त हो, तो जातक शारीरिक रूप से असंतुष्ट रहता है।
कुंभ लग्न : सप्तमेश सूर्य और द्वादशेश शनि षष्ठ भाव में हों और शनि अस्त हो, चंद्र लग्न में राहु-केतु से युक्त, या दृष्ट हो, गुरु सप्तम भाव में हो, या दृष्टि रखे, मंगल द्वादश भाव में हो, तो जातक की यौन इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती।
मीन लग्न : गुरु (लग्नेश) षष्ठ भाव में अस्त हो, बुध पंचम भाव में शुक्र से युक्त हो, शनि द्वादश भाव में केतु से दृष्ट, या युक्त हो, चंद्र अष्टम भाव में मंगल से दृष्ट, या युक्त हो, तो जातक हिस्टीरिया जैसे रोग से ग्रस्त हो सकता है। उपर्युक्त सभी योग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा में और गोचर के अनुसार होते हैं।
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