ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पृथ्वी माता के प्रकट होने से लेकर पुत्र मंगल को उत्पन्न करने तक की पूरी कहानी दी गई है। साथ ही देवी का पूजन किन मंत्रों व स्तुति से किया जाए कि देवी प्रसन्न हो। और भूमि सुख प्रदान करें। श्री वसुधा के पूजन में इन मंत्रों व स्तुति का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास से किया जाने से पृथ्वी माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
पृथ्वी पूजन मंत्र
मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं वसुधायै स्वाहा।
पृथ्वी पूजन स्तोत्र
यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे। जयेऽजये जयाधरे जयशीले जयप्रदे।।
सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते। सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे।।
सर्वशस्यालये सर्वशस्याढये सर्वशस्यदे। सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे।।
मंगले मंगलाधरे मंगल्ये मंगलप्रदे। मंगलार्थे मंगलेशे मंगलं देहि मे भवे।।
भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे। भूमिपाहंकाररूपे भूमि देहि च भूमिदे।।
अर्थ- सफलता प्रदान करने वाली देवी हे वसुधे। मुझे सफलता दो। आप यज्ञवराह की पत्नि हो। हे जये! आपकी कभी भी हार नहीं होती है। इसलिए आप विजय का आधार, विजय दायिनी, विजयशालिनी हो। देवी! आप सबकी आधारभूमि हो। सर्वबीजस्वरूपिणी और सभी शक्तियों से सम्पन्न हो। समस्त कामनाओं को देने वाली देवि! आप इस संसार में सभी चाही गई वस्तुओं को प्रदान करो। आप सब प्रकार के सुखों का घर हो। आप सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न हो। सभी सुखों को देने वाली भी हो और समय आने पर उन सुखों को छुपा देने वाली भी हो। इस संसार में आप सर्वसुखस्वरूपिणी भी हो। आप मंगलमयी हो। मंगल का आधार हों मंगल के योग्य हो। मंगलदायिनी हो। मंगलदेने वाली वस्तुएं आपका ही स्वरूप हैं। मंगलेश्वरि! आप इस संसार में मुझे मंगल प्रदान करो। आप ही भूमिपालों का सर्वस्व हो। भूमिपालपरायणा हो। भूपालों के अहंकार का मूर्तिरूप हो। हे भूमिदायिनी देवी! मुझे भूमि दो।
पृथ्वी पूजन मंत्र
मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं वसुधायै स्वाहा।
पृथ्वी पूजन स्तोत्र
यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे। जयेऽजये जयाधरे जयशीले जयप्रदे।।
सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते। सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे।।
सर्वशस्यालये सर्वशस्याढये सर्वशस्यदे। सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे।।
मंगले मंगलाधरे मंगल्ये मंगलप्रदे। मंगलार्थे मंगलेशे मंगलं देहि मे भवे।।
भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे। भूमिपाहंकाररूपे भूमि देहि च भूमिदे।।
अर्थ- सफलता प्रदान करने वाली देवी हे वसुधे। मुझे सफलता दो। आप यज्ञवराह की पत्नि हो। हे जये! आपकी कभी भी हार नहीं होती है। इसलिए आप विजय का आधार, विजय दायिनी, विजयशालिनी हो। देवी! आप सबकी आधारभूमि हो। सर्वबीजस्वरूपिणी और सभी शक्तियों से सम्पन्न हो। समस्त कामनाओं को देने वाली देवि! आप इस संसार में सभी चाही गई वस्तुओं को प्रदान करो। आप सब प्रकार के सुखों का घर हो। आप सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न हो। सभी सुखों को देने वाली भी हो और समय आने पर उन सुखों को छुपा देने वाली भी हो। इस संसार में आप सर्वसुखस्वरूपिणी भी हो। आप मंगलमयी हो। मंगल का आधार हों मंगल के योग्य हो। मंगलदायिनी हो। मंगलदेने वाली वस्तुएं आपका ही स्वरूप हैं। मंगलेश्वरि! आप इस संसार में मुझे मंगल प्रदान करो। आप ही भूमिपालों का सर्वस्व हो। भूमिपालपरायणा हो। भूपालों के अहंकार का मूर्तिरूप हो। हे भूमिदायिनी देवी! मुझे भूमि दो।
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