Thursday, 3 September 2015

वास्तु से बढाएं दाम्पत्य सुख

भास्तीय समाज में सोलह संस्कार मुख्य माने गए है । जिनमे विवाह सर्वोपरि संस्कार है ।नव बधू के स्वागत हेतु प्रत्येक परिवारजन आतुर रहता है । नव-वधू भी यथा संभव उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करती है । फिर क्या कारण है कि सास-बहू के सबंध आत्मिक नहीं रह पाते हैं? क्यों बहू-ननद को अपनी अंतरंग सखी न मानकर उसे अवाछ्नीय समझने लगती है? क्यों पति गृह को सर्वस्व: मानने घाली पत्नी मायके चली जाती है? तलाक जो "मास्तीय समाज के लिए अपरिचित शब्द था क्यों आज इतना प्रचलित शब्द बनता जा रहा है ।
वास्तु के सहयोग से इन समस्याओं को सुलझाया जा सकता है | नव बधू के आवास स्थान, शयनकक्ष, सिरहाने की रिशति जैसे गौण लगने बाले तथ्यों को वास्तु की मदद से परिवर्तित करके सुखी भी सुदृढ़ दाम्पत्य जीवन की नींव रखी
जा सकती है |
नव दंपत्ति को कमी भी वायव्य दिशा वाला कमरा रहने के लिए नहीं देना चाहिए| वायव्य दिशा में रहने से पत्नी का ससुराल में मन नहीं लगेगा और वह मायके रहना ही ज्यादा पसंद करेगी | पति भी वास्तु रने प्रभावित होकर ज्यादातर समय इस कमरे के बाहर बिताएगा ।
नव वधु तहखाने में सोए तो वह तनावग्रस्त रहेगी| पति-पत्नी के सबंध परिवार जनो से खराब हो जाएगे । अधिकतर ऐसे मामलों में पत्नी के सबंध सास व् ननद से व पति कं सम्बन्ध पिता व् भाइयों रनै मधुर नही रहेगा और उनमे आत्मिक सबंध नहीं रहेंगे |
बीम अथवा गाटर के नीचे भी उन्हें नहीं सोना चाहिए । बीम के नीचे सोने के अनावश्यक तनाव बढ़ता है और पत्नी-पति कं बीच कलह और तलाक जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है ।
वास्तु के आग्नेय कोने मे शयनकक्ष होने से पति-पत्नी में बिना वजह कलह होते है फालतू खर्च बढते हैं और किसी न किसी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। जिससे उनका दाम्पत्य जीवन दुखमय हो जाता है । पूर्व दिशा में भी नव-दम्पत्ति को नहीं चुकाना चाहिए ।
वायव्य व उतर दिशा के बीच वाले कमरे में नव दम्पत्ति को रहना चाहिए । प्रेम में बढोतरी होती है और दाम्पत्य जीवन सुखमय बना रहता है । नव दम्पत्ति अपना सिरहाना अगर उचित दिशा में नहीं रखेंगे तो उनके प्रेम से बाधा लेगी और संतान कष्ट रहेगा। दक्षिण की और पैर करके सोने से स्वस्थ गहरी नीद नहीं आती है दुस्वप्न आते हैं मन में बुरे विचार आते है । कभी-कभी सीने पर बडे बोझ का अनुभव होता है मानसिक संतुलन बिगड़ता है ओर आयु कम होती है । अत: सोते समय हमेशा सिर दक्षिण व पैर उतर की ओर रखने चाहिए ।
कभी भी पति-पत्नी को हाथों से मुह ढंककर नहीं सोना चाहिए। आत्मविश्वास में कमी होती है। हमेशा बाएं करवट लेकर सोना चाहिए।
नव-दम्पत्ति को चाहिए कि वह अपनी  पलंग चंदन, शीशम, सागवान, देवदार और शाल की बनाएं। तेन्दूक या तेन्दु एवं आम की पलंग पर कमी भी न सोएं, क्योंकि ये रोग देने वाली व प्राण हरने वाली होती है ।
नव वधू को चाहिए कि वह वास्तु के ईशान दिशा को हमेशा साफ सुथरा रखें । ईशान दिशा में कूड़ा-करकट होने पर पति दुश्चरित्र बन जाता है । झाडू को भी ईशान दिशा में नहीं रखना चाहिए ।
शयनकक्ष में अधिक मात्रा ने ताजे फुलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा परदों पर भी फूलों की जगह छोटे फूलों कं चित्र बेहतर माने जाते है ।शयनकक्ष में पूजाघर नहीं बनाना चाहिए| यदि घर में केवल एक कमरा हो तो पूजाघर कं सामने पर्दा अवश्य लगाना चाहिए ।मुख्य द्वार के ठीक सामने वृक्ष होने पर संतान नष्ट व खम्बा होने से स्त्री वियोग संभव है |
शयनकक्ष में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए जि फर्नीचर, अलमारी या सजावटी वस्तुओ के कोने सोते समय आपकी और निशाना तो नहीं बना रहे । नव वधू को हमेशा सोते समय ताम्बे के पात्र में पानी डालकर पलंग के ईशाण कोण में रखकर सोना चाहिए| सुबह उठने पर मन प्रसन्न रहेगा|
नव वधू को पूर्वी दिशा में मुंह करके भोजन बनाना चाहिए । भोजन करते समय पति और पारिवारिक सदस्यों का मुंह भी पूर्व की और होना चाहिए । इसके अतिरिक्त घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं । नव वधू लाल वस्त्रों का प्रयोग अधिकाधिक करें | पूजा-अर्चना पूर्व, उत्तर अथवा ईशाण दिशा में मुंह करके करें ।
सोते समय कमरे में हल्का प्रकाश रखें|




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