Thursday, 3 September 2015

वैवाहिक विलम्ब में शुक्र की विशिष्ट संस्थिति

शुक्र और चन्द्रमा की पारस्परिक शत्रुता है । चन्द्र और सूर्य दोनों ही शुक्र के शत्रु हैं । यदि शुक्र, सूर्यं अथवा चन्द्रमा की राशि कर्क या सिंह में स्थित हो एवं सूर्य और चन्द्रमा उससे द्वितीयस्थ एवं द्वादशस्थ हों तो विवाह नहीं होता अथवा उसमें अनेकानेक बाधाएं समुपस्थित होती हैं । बहुधा वैवाहिक सम्बन्ध निश्चित होकर भी भंग हो जाता है ।28 वैवाहिक विलम्ब कै विविध आयाम एवं सत्र शुक्र और चन्द्रमा की सप्तम भाव में स्थिति भी पर्याप्त चिन्तनीय है । यदि शनि व मंगल उनसे सप्तम हों अर्थात लग्न में हों तो विवाह निश्चित रूप से नहीं हो पाता । यदि यह योग बृहस्पति से दुष्ट हो तो विवाह पर्याप्त विलम्ब के बाद सम्पन्न होता है । शुक्र और चन्द्र यदि सप्तम भाव में कर्क, सिंह, तुला या वृषभ राशिगत होकर स्थित हों या नवांश लग्न से सप्तमस्थ हों अथवा शुक्र और चन्द्रमा षडाष्टक हों तो विवाह में अवरोध जाता है । यदि शुक्र शत्रु राशिगत होकर सप्तमस्य हो और चन्द्रमा उसे देख रहा हो अर्थात् कुम्भ या मकर लग्न में चन्द्रमा स्थित हो तथा शुक्र सप्तमस्य हो तो विवाह में अनेक अवरोध जाते हैं और विलम्ब होता है । यदि सप्तमेश शुक्र हो और उसके साथ सूर्य और चन्द्रमा स्थित हों तो शुक्र अत्यन्त पापी हो जाता है । ऐसी स्थिति में विवाह नहीं होता । यदि हो जाय तो अविवाहित की तरह ही जीवनयापन करना पड़ता है । इसी प्रकार यदि शुक्र सूर्य और चन्द्रमा से युक्त होकर सप्तमस्थ हो तब भी विवाह का सुख-निषेध होता है । यह स्थिति सतर्कतापूर्वक देखनी चाहिए ।

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